Holi 2022: जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर निकलेगी राधा-कृष्ण की दोल यात्रा, भक्तों के संग खेलेंगे रंग-गुलाल

Holi 2022: दोल यात्रा पर सरायकेला में भगवान श्रीकृष्ण अपनी प्रेयसी राधारानी के साथ नगर भ्रमण करेंगे. इस दौरान शहर के हर घर में दस्तक देकर भक्तों के साथ रंग-गुलाल खेलेंगे. दोल यात्रा के दौरान कृष्ण-हनुमान मिलन व हरिहर मिलन भी आयोजन होता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 18, 2022 11:04 AM

Holi 2022: झारखंड की सांस्कृतिक नगरी सरायकेला की होली इस वर्ष भी अन्य शहरों से कई मायनों में अलग होगी. सरायकेला में आज 18 मार्च को होलिका दहन के दिन वर्षों से चली आ रही उत्कल की प्राचीन व समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा की झलक दिखाई देगी. यहां जगन्नाथ पुरी की तर्ज पर राधा-कृष्ण की दोल यात्रा निकाली जायेगी. 18 मार्च को दोल पूर्णिमा के दिन दोपहर तीन बजे के बाद यहां राधा-कृष्ण के पवित्र दोल यात्रा का आयोजन किया जायेगा. दोल यात्रा पर सरायकेला में भगवान श्रीकृष्ण अपनी प्रेयसी राधारानी के साथ नगर भ्रमण करेंगे. इस दौरान शहर के हर घर में दस्तक देकर भक्तों के साथ रंग-गुलाल खेलेंगे. दोल यात्रा के दौरान कृष्ण-हनुमान मिलन व हरिहर मिलन भी आयोजन होता है.

मृत्युंजय खास मंदिर से होगी दोल यात्रा की शुरुआत

भगवान श्रीकृष्ण व राधा रानी की दोल यात्रा की शुरुआत कंसारी टोला स्थित मृत्युंजय खास श्री राधा कृष्ण मंदिर से शुरू होगी. 1818 में राजा उदित नारायण सिंहदेव के कार्यकाल में मृत्युंजय खास मंदिर का निर्माण हुआ था. इस दौरान राधा-कृष्ण की कांस्य प्रतिमाओं का भव्य श्रंगार किया जायेगा. इसके बाद विशेष विमान (पालकी) पर राधा-कृष्ण होंगे. यहां उन्हें मलाई भोग लगाया जायेगा. फिर कान्हा राधारानी भगवान कृष्ण के साथ पालकी पर सवार हो कर भक्तों के साथ होली खेलने के लिये नगर भ्रमण पर निकलेंगे. नगर भ्रमण के दौरान राधा रानी के साथ कान्हा हर घर में दस्तक देंगे और नगरवासियों के साथ गुलाल की होली खेलेंगे.

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शंखध्वनि व उलुध्वनि से होगा राधा-कृष्ण का स्वागत

दोल पूर्णिमा पर राधा-कृष्ण के नगर भ्रमण के दौरान भक्त पारंपरिक वाद्य यंत्र मृदंग, झंजाल, गिनी आदि के साथ दोल यात्रा में शामिल होते हैं. इस दौरान हर घर में शंखध्वनि, उलुध्वनि के साथ भगवान श्रीकृष्ण का स्वागत किया जाता है. हर घर में दीपक जला कर आरती उतारी जाती है. इस दौरान महिलायें मन्नत मांगने के साथ साथ मन्नत पूरी होने पर चढ़ावा भी चढ़ाती हैं. राधा-कृष्ण के स्वागत के लिये श्रद्धालु अपने घर के सामने गोबर लेपने के साथ-साथ रंग बिरंगी अल्पना भी बनाते हैं.

काठी नाच व ढाक बाजा आकर्षण का केंद्र

दोल पूर्णिमा के दौरान काठी नाच व ढाक बाजा आकर्षण का मुख्य केंद्र होता है. भगवान राधा-कृष्ण के विमान के आगे कलाकार ढाक बाजा व काठी नाच प्रस्तुत कर उत्कल की समृद्ध परंपरा को प्रदर्शित करेंगे. साथ ही ‘कोरोना वध’ थीम पर झांकी निकाली जायेगी.

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दोल यात्रा का आयोजन

सरायकेला में दोल यात्रा का आयोजन आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली के द्वारा किया जाता है. आयोजन समिति के प्रमुख ज्योतिलाल साहु ने बताया कि आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली 1990 से ये आयोजन करती आ रही है. वर्तमान में पूरा आयोजन स्थानीय लोगों के सहयोग से होता है.

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पहले सात दिनों की होती थी दोल पूर्णिमा

कहा जाता है कि यहां पहली बार 1818 में दोल यात्रा की शुरुआत हुई थी. करीब 203 सौ साल पुरानी इस मंदिर में विधि पूर्वक राधा-कृष्ण की विशेष पूजा-अर्चना होगी. राजा-राजवाड़े के समय में इसका आयोजन फागु दशमी से दोल पूर्णिमा तक होता था. वर्तमान में दोल यात्रा का आयोजन एक ही दिन दोल पूर्णिमा पर होता है.

दोले तु दोल गोविंदम

दोले तु दोल गोविंदम, चापे तु मधुसुदनम, रथे तु मामन दृष्टा, पुनर्जन्म न विद्यते…क्षेत्र में प्रचलित इस श्लोक के अनुसार दोल (झुला या पालकी), रथ व नौका में प्रभु के दर्शन के मनुष्य को जन्म चक्र से मुक्ति मिलती है. इस कारण दोलो यात्रा के दौरान प्रभु के दर्शन को दुर्लभ माना जाता है. दोल यात्रा एक मात्र ऐसा धार्मिक अनुष्ठान है, जब प्रभु अपने भक्त के साथ गुलाल खेलने के लिये उसकी चौखट में पहुंचते हैं. इस क्षण का क्षेत्र के हर किसी व्यक्ति को इंतजार रहता है. दोल यात्रा जगत के पालनहार कोटी ब्रम्हांडपति श्रीकृष्ण के द्वादश यात्राओं में से एक महत्वपूर्ण यात्रा है.

पारंपरिक घोड़ा नाच आकर्षण का केंद्र

आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली के संस्थापक ज्योतिलाल साहु कहते हैं कि आध्यात्मिक उत्थान श्री जगन्नाथ मंडली के द्वारा हर वर्ष दोल यात्रा का आयोजन किया जाता है. प्रभु राधा-कृष्ण बिमान पर सवार हो कर घर-घर दस्तक देते हैं. दोल यात्रा एक धार्मिक कार्यक्रम है. धार्मिक मान्यता के अनुसार दोल यात्रा के दौरान प्रभु राधा-कृष्ण के दर्शन से मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस वर्ष की दोल यात्रा कार्यक्रम ऐतिहासिक होगा. पारंपरिक घोड़ा नाच आकर्षण का केंद्र होगा.

रिपोर्ट: शचिंद्र कुमार दाश

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