16.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

राजनीतिक दुराग्रह से मुक्ति कब?

उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गुजरात का नाम आते ही बच्चों की मौत पर राजनीति का निर्मम चेहरा सामने आता है. अलग बात है कि जो जन्म लेगा, उसकी एक दिन मृत्यु निश्चित होगी, जैसा विधि का विधान है. तो क्या हमें आयुर्विज्ञान के खोजों और नवजातों पर दुनिया भर की चिंताओं से मुंह मोड़ लेना […]

उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, गुजरात का नाम आते ही बच्चों की मौत पर राजनीति का निर्मम चेहरा सामने आता है. अलग बात है कि जो जन्म लेगा, उसकी एक दिन मृत्यु निश्चित होगी, जैसा विधि का विधान है. तो क्या हमें आयुर्विज्ञान के खोजों और नवजातों पर दुनिया भर की चिंताओं से मुंह मोड़ लेना चाहिए?

बच्चे मर रहें हैं और हम लाशों पर राजनीति में व्यस्त हैं, यह अच्छी बात नहीं है. आंकड़ों की प्रतिस्पर्धा से न तो बच्चों की मौत रोकी जा सकती है, न ही उनकी मां का दर्द कम किया जा सकता है. ऐसा नहीं है कि नवजातों की मौत हमें नहीं झकझोरती.
देश के कई राज्य में जहां शिशु मृत्यु दर संख्या दस प्रति हजार के आस-पास है, ऐसे आंकड़े नि हमारी संवेदनशीलता भी दिखाते हैं. लेकिन, कमजोर स्वास्थ्य सेवाएं और कुपोषण के प्रति हमारी राष्ट्रनीति के कृष्ण-पक्ष भी उजागर होते रहते हैं. असमय मरनेवाले बच्चों को लेकर राष्ट्रनीति बनाने का समय आ गया है. बच्चों के मामले में राजनीतिक दुराग्रह से मुक्ति मिले.
एमके मिश्रा, रातू, झारखंड

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें