देश की जनता की बात सुनें

योगेंद्र यादव अध्यक्ष, स्वराज इंडिया yyopinion@gmail.com प्रधानमंत्री जी, इस पत्र के जरिये मैं आपसे देश हित में तत्काल कुछ कदम उठाने का अनुरोध करना चाहता हूं. पिछले कुछ दिनों से देश में जो हालात बन रहे हैं, वह न तो दीर्घकालिक राष्ट्रीय हित में हैं और न ही आपकी व्यक्तिगत छवि और लोकप्रियता के लिए […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 10, 2020 4:34 AM

योगेंद्र यादव

अध्यक्ष, स्वराज इंडिया
yyopinion@gmail.com
प्रधानमंत्री जी,
इस पत्र के जरिये मैं आपसे देश हित में तत्काल कुछ कदम उठाने का अनुरोध करना चाहता हूं. पिछले कुछ दिनों से देश में जो हालात बन रहे हैं, वह न तो दीर्घकालिक राष्ट्रीय हित में हैं और न ही आपकी व्यक्तिगत छवि और लोकप्रियता के लिए यह उचित है. अगर आप तत्काल कुछ घोषणाएं कर दें, तो देश में बन रहा यह माहौल टाला जा सकता है. आशा है आप इस अनुरोध पर तुरंत विचार करेंगे.
महीनेभर से देश में जो अभूतपूर्व माहौल बना है, वह आप से छुपा नहीं है. मेरी जानकारी टीवी, अखबार फोन और सोशल मीडिया तक सीमित है, लेकिन आपके पास तो जानकारी के बेहतर स्रोत होंगे. जब से नागरिकता संशोधन कानून को संसद में पेश किया गया, तभी से देशभर में प्रदर्शन और आंदोलन हो रहे हैं.
इस बीच जामिया, अलीगढ़ मुस्लिम विवि और जेएनयू सहित देश के अनेक कैंपसों में विद्यार्थियों पर पुलिस का दमन हुआ, जिसके खिलाफ देशभर के युवा खड़े हो रहे हैं. लेखक और कलाकार जो पहले नहीं बोल रहे थे, वह भी आज बोलने पर मजबूर होने लगे हैं. नागरिकता संशोधन कानून, राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर और जनगणना के राष्ट्रीय रजिस्टर को लेकर आज अलग-अलग वर्ग के लोगों में अलग-अलग तरह की चिंताएं हैं.
पूर्वोत्तर में पिछले एक महीने से चल रहे जन प्रतिरोध की खबर राष्ट्रीय मीडिया में ठीक से नहीं आती, लेकिन आप तक तो यह खबर पहुंच रही होगी. हिंदू और मुसलमान दोनों स्तब्ध हैं कि 1985 में हुए असम समझौते को एकतरफा तरीके से तोड़ दिया गया है. उन्हें आशंका है कि अब बांग्लादेश से आये लाखों हिंदू बंगालियों को नागरिकता दे दी जायेगी और असमिया भाषा अपने ही घर में अल्पसंख्यक हो जायेगी.
यही डर त्रिपुरा के हिंदू आदिवासी समाज का भी है, जो पहले ही बंगाली प्रवासियों के संख्या बोझ के तले दब चुका है. यह आशंका उन राज्यों में भी है, जिन्हें फिलहाल नागरिकता संशोधन कानून से मुक्त रखा गया है, पर उन्हें लगता है कि देर-सवेर उनका भी नंबर आयेगा. पूर्वोत्तर के इस संवेदनशील इलाके के करोड़ों नागरिकों को आज अपनी पहचान खोने का डर है.
उत्तर प्रदेश के करोड़ों मुस्लिम नागरिकों को भारतीय नागरिकता खोने का डर है. यह बात सही है कि खाली नागरिकता संशोधन कानून से ऐसे किसी व्यक्ति की नागरिकता नहीं छीनी जा सकती, जो आज भारत का नागरिक है, लेकिन डर यह है कि जब नागरिकता का रजिस्टर बनेगा और अगर असम की तरह उन्हें अपनी नागरिकता का प्रमाण देने को कहा जायेगा, तो करोड़ों लोग पक्के कागज ना जुटा पाने की वजह से शक के दायरे में आ जायेंगे.
इनमें खानाबदोश और गरीब लोग होंगे, हाशिये पर रहनेवाले लोग होंगे. ऐसे में नागरिकता संशोधन कानून के चलते गैर-मुस्लिम तो बच पायेंगे, लेकिन लाखों मुसलमानों के सिर पर अपने ही घर में विदेशी करार दिये जाने की तलवार लटक जायेगी.
इस मामले में आशंकित लोगों में मेरे जैसे नागरिक भी हैं, जिन्हें सीधे-सीधे अपनी पहचान या नागरिकता खोने का भय नहीं है. हमारा डर अपने संवैधानिक मूल्यों को खोने का है. डर यह है कि आजाद भारत में पहली बार नागरिकता को धर्म से जोड़ने पर हमारे संविधान का पंथनिरपेक्ष चरित्र नहीं बचेगा.
डर यह है कि मुस्लिम और गैर-मुस्लिम में भेदभाव करनेवाला यह कानून हमारे संविधान प्रदत्त समता के मौलिक अधिकार का हनन करता है. डर यह भी है कि ऐसे कानून पास करके हम मोहम्मद अली जिन्ना के उस द्वि-राष्ट्र सिद्धांत को स्वीकार कर रहे हैं, जिसे हमारे आजादी के आंदोलन ने खारिज किया था.
आपकी सरकार का और आपकी पार्टी का यह मानना है कि ये सब फर्जी हैं. आपने बार-बार कहा है कि इस मुद्दे पर लोगों को गुमराह किया जा रहा है और लोगों में झूठे डर का प्रचार किया जा रहा है. मैंने गृह मंत्री जी के बयानों और सरकारी दस्तावेजों को ध्यान से पढ़ा है. मुझे नहीं लगता कि इन तीनों समूहों की आशंकाएं निराधार हैं. अगर एक बार मान भी लें कि लोग बिना वजह डरे हुए हैं, फिर भी यह तो सच है न कि वे डरे हुए हैं?
देश कि इतनी बड़ी आबादी अगर भय और आशंका से ग्रस्त है, तो उसकी चिंता तो आपको होनी चाहिए न? आप भी चाहेंगे कि जनता के मन से डर खत्म हो और उसके बाद ही ऐसे कानूनों को लागू किया जाये. आप भी जानते हैं कि इस कानून को एकदम लागू करने की कोई जल्दी नहीं है. अगर इस कानून को सही मान भी लें, तब भी इसे चार-पांच साल लागू न करने से देश का कोई बड़ा नुकसान होनेवाला नहीं है.
मैं आपसे अनुरोध कर रहा हूं कि देश में व्याप्त भय, आशंका, तनाव, प्रतिरोध और दमन के माहौल को देखते हुए आप नागरिकता संबंधी सारे मामले पर किसी भी कार्यवाही को रोक दें. अगर आप देश की जनता को स्पष्ट आश्वासन देते हैं कि आपकी सरकार जनता के साथ संवाद कर इस मुद्दे पर एक राय बनायेगी और तभी इसे लागू किया जायेगा, तो देश में माहौल बेहतर होगा.
इस आश्वासन का मतलब होगा कि सरकार घोषित करे कि अप्रैल के महीने में शुरू होनेवाली जनगणना की प्रक्रिया में वह दो सवाल हटा दिये जायेंगे, जिनको लेकर नागरिकता की आशंका है यानी कि राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर में ये नये सवाल नहीं जोड़े जायेंगे, जो हर व्यक्ति के मां-पिता के जन्म स्थान और जन्म की तारीख पूछते हैं. साथ ही आप स्वयं स्पष्ट घोषणा करें कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर बनाने की सरकार की कोई योजना नहीं है, या फिर आप कोई समयावधि बांध सकते हैं.
इसे पक्का करने के लिए आप यह घोषणा भी कर सकते हैं कि हालांकि नागरिकता संशोधन कानून संसद से पास हो चुका है, उस पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर हो चुके हैं, लेकिन उसे सरकार अभी नोटिफाई नहीं करेगी, ताकि उस पर तत्काल अमल शुरू ना हो. उसके लिए भी आप कोई समय अवधि घोषित कर सकते हैं.
प्रधानमंत्री जी, मुझ जैसे विरोधियों की बात ना सुनकर, देश की जनता की बात सुनें. मुझे विश्वास है कि यदि आप स्पष्ट शब्दों में यह घोषणा करेंगे, तो देश में फैली आशंका और तनाव का माहौल तुरंत सुधर जायेगा. मुझे यह भी विश्वास है कि अपने पद की गरिमा को देखते हुए आप ऐसी और कोई टिप्पणी नहीं करेंगे, जिससे हालात और बिगड़े. पार्टियां चुनाव जीतेंगी-हारेंगी, लेकिन देश का हित सर्वोपरि है. मुझे विश्वास है कि आप देश के हित को ध्यान में रखते हुए तुरंत कोई कदम उठायेंगे.
भवदीय
हम भारत के लोग
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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