हर कदम पर मुट्ठी गरम करने के बाद होता है इलाज

सदर अस्पताल का दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा है.यहां मरीजों के पीड़ा पर सिस्टम का दर्द भारी पड़ रहा है.जिसे हर दिन यहां ङोलने का मरीज विवश हो रहे हैं. प्रसव पीड़ा से परेशान प्रसूताओं को यहां पग-पग पर आर्थिक दोहन का शिकार होना पड़ रहा है. परची के निर्धारित शुल्क दो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 9, 2014 3:25 AM

सदर अस्पताल का दर्द कम होने का नाम नहीं ले रहा है.यहां मरीजों के पीड़ा पर सिस्टम का दर्द भारी पड़ रहा है.जिसे हर दिन यहां ङोलने का मरीज विवश हो रहे हैं. प्रसव पीड़ा से परेशान प्रसूताओं को यहां पग-पग पर आर्थिक दोहन का शिकार होना पड़ रहा है. परची के निर्धारित शुल्क दो रुपये की जगह 10 से 50 रुपये तक देने पड़ते हैं.दवा काउंटर पर 10 से 50 रुपये,नर्स व ममता को सौ से पांच रुपये तक देने पड़ते हैं.

मरहम व पट्टी के नाम पर वसूली : दुर्घटना व हादसे के शिकार व्यक्ति को मरहम पट्टी के लिए भी राशि देनी पड़ती है.महादेवा निवासी सरोज प्रसाद कहते हैं कि बिना रुपये दिये कोई काम नहीं होता है. इंजेक्शन लगाने से लेकर मरहम-पट्टी तक करने के लिए 50 रुपये तक मरीज से लिये जाते हैं.
भरती मरीजों को ङोलनी पड़ती है जलालत : सदर अस्पताल के वार्ड में भरती मरीजों को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. बेड पर बिछाने के लिए चादर घर से लानी पड़ती है. भोजन व नाश्ता समय से न मिलने की शिकायत आम है.भरती मरीजों के देखने के लिए प्रत्येक दिन का चिकित्सकों का शिड्यूल निर्धारित है, लेकिन यहां इसका अनुपालन नहीं होता है.ऐसे हालात में सुविधा संपन्न मरीज लाचार होकर प्राइवेट नर्सिग होम में जाने को मजबूर हो जाते हैं.
अस्पताल में नहीं हैं 40 फीसदी दवाएं : सरकारी अस्पताल के आंकड़े भी बता रहे हैं कि यहां मरीजों को दवाएं नहीं मिलती हैं. विभाग को शासन की तरफ से आउट डोर में 36 प्रकार की दवाएं उपलब्ध रखने का आदेश है.इसके जगह 24 ब्रांड की दवाएं ही उपलब्ध हैं. इसी तरह इंडोर में 112 की जगह 72 दवाएं ही उपलब्ध हैं. इसके अलावा सामान कंपोजिशन की दवा उपलब्ध होने के बाद भी कुछ चिकित्सक अपने खुद के कमीशन के चक्कर में यह दवाएं बाजार से खरीदने को मजबूर करते हैं.
कैंपस में दिखता है प्राइवेट एंबुलेंस : शासन ने सदर अस्पताल के लिए तीन एंबुलेंस उपलब्ध कराये गये हैं, जिनसे आपात स्थिति में रेफर मरीज को इलाज के लिए अन्य अस्पतालों में ले जाया जा सके. हालात यह है कि परिसर में दिन भर प्राइवेट एंबुलेंस लगे रहते हैं, जिनका नेटवर्क अस्पताल प्रशासन के कर्मचारियों से जुड़ा है, जिन्हें बदले में कमीशन मिलता है.

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