आज जिस तरह से भारत में शिक्षा का स्तर दिन-प्रतिदिन उन्नत होता जा रहा है, उससे एक बात तो निर्विवाद रूप से स्पष्ट होती जा रही है कि आने वाले कुछ वर्षो में शिक्षा व्यक्तित्व का सबसे अहम हिस्सा हो जायेगी. आधुनिक युग में शिक्षा का महत्व बहुत बढ़ गया है. तकनीकी, प्रौद्योगिकी, कला, विज्ञान, कंप्यूटर आदि शिक्षा की सभी दिशाओं में महाक्रांति का सूत्रपात हो गया है.
इसमें सबसे महत्वपूर्ण आयाम एक ही है, प्रतियोगिता. लेकिन क्या इस प्रतियोगिता का हिस्सा केवल मेधावी और प्रतिभाशाली छात्र ही हैं, अन्य नहीं? कहने का तात्पर्य है कि आज की शिक्षा व्यवस्था स्कूलों, महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों पर आधारित न हो कर कोचिंग पर टिकी हुई है. यों कहें कि आज की शिक्षा पद्धति ट्यूशनों के बिना अधूरी जान पड़ती है.
आज केजी से पीजी तक की शिक्षा ट्यूशन पर ही टिकी है. इसकी सबसे बड़ी वजह स्कूलों और महाविद्यालयों के शिक्षकों के पास समय की कमी है. वे पाठ्यक्रमों को समयानुसार पूरा नहीं कर पा रहे हैं, जिससे छात्रों को अलग-अलग विषयों के लिए अलग से ट्यूशन लेने पड़ रहे हैं. लेकिन ट्यूशन मास्टर भी कम चालाक नहीं हैं. वे अपने छात्रों को ज्ञान तथा पाठ्यक्रम की पूरी जानकारी देने के लिए कम, बल्कि व्यवसाय करने के लिए ज्यादा पढ़ा रहे हैं. यही वजह है कि वे अपने विद्यार्थियों को पाठ्यक्र मानुसार किताबों को पढ़ा कम रहे हैं और नोट्स ज्यादा दे रहे हैं. और इन्हीं नोट्स के सहारे विद्यार्थी अपनी परीक्षाएं पास कर ले रहे हैं. लेकिन ऐसा करने से उनका ज्ञान चिरसंचित नहीं रह पा रहा है जिससे वे साक्षत्कार में विफल हो जाते हैं और साथ ही बेरोजगार भी. मतलब यह कि कोचिंग की यह शॉर्टकट शिक्षा किसी काम की नहीं.
ओमप्रकाश प्रसाद, ई-मेल से