पूरे शहर के लिए बस एक रावण!

दक्षा वैदकर प्रभात खबर, पटना दशहरे के दिन सुबह पापा का इंदौर से फोन आया. दशहरे की बधाई के आदान-प्रदान के साथ ही हम पुरानी यादों में खो गये.. किस तरह पापा लूना पर बिठा कर मुङो रावण दिखाने ले जाया करते थे और जब भीड़ के कारण रावण ठीक से नहीं दिखता था, तो […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 9, 2014 5:13 AM

दक्षा वैदकर

प्रभात खबर, पटना

दशहरे के दिन सुबह पापा का इंदौर से फोन आया. दशहरे की बधाई के आदान-प्रदान के साथ ही हम पुरानी यादों में खो गये.. किस तरह पापा लूना पर बिठा कर मुङो रावण दिखाने ले जाया करते थे और जब भीड़ के कारण रावण ठीक से नहीं दिखता था, तो मुङो कंधों पर उठा लेते थे. कई सालों तक यह सिलसिला चला.

पापा ने मुझसे पूछा, इस बार रावण दहन देखने कहां जा रही है बेटा. मैंने उन्हें कहा कि अभी सोच रही हूं कि देखने जाऊं भी या नहीं. दरअसल मेरा मूड इसके एक दिन पहले पटना की दुर्गापूजा देखने के दौरान बिगड़ गया था. सड़कों पर इतनी भीड़ थी कि सभी रेंग-रेंग कर चल रहे थे. डाक बंगला चौराहे पर लड़के एक-दूसरे से सट कर चलने का ‘फायदा’ उठा रहे थे. कोई कहीं से धक्का मारता, तो कोई छूने के बाद सॉरी बोलता और गंदी-सी स्माइल देता. भीड़ से निकलनेवाले इन हाथों से खुद को बचाने के लिए मैं रिक्शा करके सीधे घर आ गयी थी. पापा को मैंने यह वाकया बताते हुए कहा कि यहां पूरे शहर में एक ही जगह रावण जलता है. एक बड़ा-सा मैदान है, जिसका नाम है गांधी मैदान. वहीं रावण जलता है और दूर-दूर से लोग उसे देखने आते हैं.

पापा ने आश्चर्य से पूछा, पूरे शहर में सिर्फ एक ही जगह रावण जलता है? बाप रे.. तब तो बहुत भीड़ होती होगी. बेटा, तू बिल्कुल मत जा. इतनी भीड़ में लड़कियों का जाना तो बिल्कुल ठीक नहीं. पापा की बात मान और अपने दिल की आवाज सुन कर उस दिन मैं ‘हैदर’ देखने चली गयी. फिल्म देख कर निकली, तो रावण दहन के दौरान हुए इस हादसे का पता चला. टीवी पर दृश्य देख कर दिल धक्क से बैठ गया. सभी एक-दूसरे को दोष दे रहे थे. कोई रोशनी की कमी कहता, तो कोई गेट की संख्या पर सवाल उठाता. अधिकारी कहते कि इतनी भीड़ को कोई कैसे हैंडल कर सकता है? कई लोगों ने फेसबुक पर लिखा कि अब रावण देखने कोई शायद ही जायेगा. इस पूरे वाकये में मुङो जो बात खली, वह यह थी कि इतने बड़े शहर में एक ही जगह रावण क्यों जलता है?

अगर शहर को चार भागों में बांट दिया जाता और हर जगह रावण जलता, तो भीड़ बिखर जाती. सोचनेवाली बात है कि जब दुर्गापूजा के लिए इतनी समितियां हैं और इतनी जगह दुर्गा मां की मूर्ति की स्थापना की जाती है, तो रावण दहन क्यों सिर्फ एक ही जगह हो? मैंने ज्यादा शहर तो नहीं देखे, लेकिन इंदौर को जरूर देखा है. वहां लगभग दस जगहों पर बड़े-बड़े रावण जलाये जाते हैं. छावनी, परदेसीपुरा, तिलक नगर, दशहरा मैदान और न जाने कहां-कहां. इतना ही नहीं, मोहल्ले के बच्चे भी अपना रावण बनाते हैं. इससे यह फायदा होता है कि हर क्षेत्र के लोगों के पास एक स्थान होता है, जहां वे रावण देखने जा सकते हैं. उन्हें अपने बच्चों को लेकर दूर-दूर नहीं जाना पड़ता. सभी रावण दहन देख कर परंपरा भी निभा लेते हैं और कोई हादसा भी नहीं होता.

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