चुनाव से पहले इस घेराबंदी का मतलब
झारखंड में जब विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और मुख्यमंत्री आदिवासी हो या गैर आदिवासी जैसा सवाल सियासी हवा में तिर रहा हो, वैसे में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के आदिवासी होने पर सवाल उठाने वाली शिकायत के चर्चा में आने के कई मतलब निकाले जा सकते हैं. इसके पहले भी उनकी आदिवासी […]
झारखंड में जब विधानसभा चुनाव सिर पर हैं और मुख्यमंत्री आदिवासी हो या गैर आदिवासी जैसा सवाल सियासी हवा में तिर रहा हो, वैसे में प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा के आदिवासी होने पर सवाल उठाने वाली शिकायत के चर्चा में आने के कई मतलब निकाले जा सकते हैं. इसके पहले भी उनकी आदिवासी पृष्ठभूमि पर सवाल उठाये जा चुके हैं. इस बार भाजपा की प्रबल विरोधी कांग्रेस के प्रतिष्ठित आदिवासी नेता व पूर्व सांसद बागुन सुंब्रई तथा सिंहभूम के एक पूर्व सैनिक लालजी राम तियु ने यह सवाल उछाला है.
अनुसूचित जनजाति आयोग से यह शिकायत की गयी थी. दरअसल, यहां मामला शिकायत के वाजिब या गैरवाजिब होने का नहीं हैं. मामले का सच या झूठ होना, तो जांच प्रक्रियाओं के बाद ही साबित होगा. इस जनतांत्रिक मुल्क में असहमति की आजादी और शिकायत करने का अधिकार तो हर नागरिक का है, पर जनतांत्रिक मूल्यों का सम्मान तो इसमें है कि आजादी के इस अधिकार का इस्तेमाल विवेक के साथ कितना होता है.
ऐसा इसलिए कि शिकायत के सामने आने का वक्त संयोग या दुर्योग से ऐसा है जिसे आसानी से कोई सियासी इरादे से जोड़ सकता है. यह अलग बात है कि अर्जुन मुंडा ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत आदिवासियों के सर्वमान्य नेता शिबू सोरेन की छत्रछाया में अलग झारखंड राज्य के आंदोलन में सक्रियता से की थी. वह बाकायदा झामुमो के टिकट पर विधायक भी रहे.
तीन बार मुख्यमंत्री रहे अर्जुन मुंडा की आदिवासी पृष्ठभूमि को लेकर शिबू सोरेन ने कभी कोई सवाल नहीं उठाया. वैसे वह पहले नेता नहीं जिसे ऐसे सवालों से घिरना पड़ा हो. इससे पूर्व मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को लेकर भी यह सवाल उठा था. छत्तीसगढ़ में वर्ष 2003 में वह बिलासपुर के मरवाही विधानसभा सीट से विधायक चुने गये थे.
आरोप था कि उन्होंने गलत ढंग से अपने अदिवासी होने का जाति प्रमाण पत्र जुटाया था. लगभग यही आरोप इस बार अर्जुन मुंडा पर लगाया गया है कि उन्होंने सुरक्षित सीट से चुनाव लड़ने के लिए फरजी जाति प्रमाण पत्र जुटाया. यह अलग बात है कि राष्ट्रीय आदिवासी विकास परिषद ने जोगी को आदिवासी मानने से इनकार कर दिया था.