कोल्हान ने नहीं स्वीकारी गुलामी
सेरेंगसिया घाटी में लड.ते हुए कई वीर हो गये थे शहीद – कमल खंडाईत – झींकपानी : कोल्हान के लोगों ने कभी अग्रेंजों की गुलामी नहीं स्वीकारी. अग्रेंजों के बढ.ते साम्राज्य का रथ कोल्हान में आकर थम गया. लड.ाकुओं ने टोंटो प्रखंड के सेरेंगसिया घाटी में अग्रेंजों के छक्के छुडा दिये थे. इस उलगुलान में […]
सेरेंगसिया घाटी में लड.ते हुए कई वीर हो गये थे शहीद
– कमल खंडाईत –
झींकपानी : कोल्हान के लोगों ने कभी अग्रेंजों की गुलामी नहीं स्वीकारी. अग्रेंजों के बढ.ते साम्राज्य का रथ कोल्हान में आकर थम गया. लड.ाकुओं ने टोंटो प्रखंड के सेरेंगसिया घाटी में अग्रेंजों के छक्के छुडा दिये थे. इस उलगुलान में कई वीरगति को प्राप्त हुए तो कई जेल भेजे गये. इन्हीं शहीदों की याद में दो फरवरी को सेरेंगसिया शहीद स्मारक पर मेला लगता है जहां श्रद्धा से सिर झुक जाते है.
ऐसे हुआ था उलगुलान
कोल्हान में जब अग्रेंजों ने अपना पांव पसारना शुरू किया तब यहां के लोगों ने मंगनी नायक भूइयां को अपना नेता बनाया. मंगनी नायक ने किशुनपुर (रांची) जेल से छूटे कोल विद्रोहियों व जैंतगढ. के 22 गांव के लोगों के साथ जैंतगढ. में बैठक कर तत्कालीन लेफ्टिनेंट टीकल का आदेश मानने से इनकार कर दिया.
वहीं खुंटपानी प्रखंड के राजाबासा निवासी पोटो हो ने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह कर दिया. पोटो हो ने बारा हो, डेबाय हो, बाजरा हो, पांडू हो, मोडोंग हो, जोंको हो, केरसे हो, नारा हो, सूरधान हो तथा अपने खास दासी (नौकर) पोटेल हो व गोपारी हो के साथ लड.ाकुओं की एक फौज तैयार कर दी. इस फौज ने 19 नवंबर 1837 को अग्रेंजों आमने-सामने शिकस्त दी. युद्ध में कई विद्रोही शहीद हो गये. इस युद्ध में अग्रेंजों की भारी क्षति हुई. इसके बाद अंग्रेजों ने अपनी रणनीति बदली.