बिहार दिवस : दिल्ली की तरह पटना को बसाना चाहते थे लॉर्ड हार्डिंग, जानें नूतन राजधानी के बसने का इतिहास

बेशक हार्डिंग पार्क और हार्डिंग रोड का नाम बदल दिया गया है. इसके बावजूद आज भी पटना संग्रहालय में जब लोग लॉर्ड हार्डिंग की प्रतिमा को देखते हैं तो सहसा ठहर कर निहारते हैं. बिहार दिवस पर आधुनिक पटना के इस शिल्पकार को नमन करते हैं. लॉर्ड हार्डिंग के लिए बिहार वासियों के मन में आज भी सम्मान है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 23, 2022 9:08 AM

पटना. हम सब आज बिहार दिवस (Bihar Diwas) मना रहे हैं. बिहार के इतिहास पर जब भी बात होती है तो मगध साम्राज्य या लिच्छवी गणराज्य पर ही चर्चा होती है. ब्रिटानिया हुकूमत काल के सबसे बड़ी जागीर बंगाल से अलग होकर अपने स्वतंत्र वजूद में आये बिहार के इतिहास पर हमारी नजर कम ही जाती है. बेशक कोहिनूर हीरे के साथ-साथ अंग्रेज हमारे घर से बेशकीमती बुद्ध की प्रतिमा लेकर चले गये, जिसे पाने की चाहत आज भी हम करते हैं, लेकिन इस ब्रिटानिया हुकूमत के दौरान एक वायसराय ऐसा भी था, जिसका बिहार आज भी कर्जदार है. उस वायसराय का नाम है लॉर्ड हार्डिंग.

110 साल बाद भी हार्डिंग को नहीं भूला है पटना

सच मायने में लॉर्ड हार्डिंग आधुनिक पटना के शिल्पकार थे. उनके प्रयासों से ही बांकीपुर से पश्चिम एक नूतन राजधानी पटना के रूप में अस्तित्व में आया. लॉर्ड हार्डिंग के प्रयासों से ही पटना में शैक्षणिक संस्थान के अलावा बिहार में अनेक सड़कों के निर्माण करवाया’. तमाम ऐतिहासिक इमारतें 110 साल बाद भी इसकी गवाही देते है. पटना को विकसित करने को लेकर लॉर्ड हार्डिंग कितने संवेदनशील थे, यह नूतन राजधानी क्षेत्र को देखकर आज भी महसूस किया जा सकता है.

बिहार को नयी पहचान देकर पुराना गौरव लौटाया

बंगाल से अलग बिहार-उड़ीसा प्रांत के निर्माण में लॉर्ड हार्डिंग की भूमिका सबसे अहम है. हार्डिंग ने न सिर्फ बिहार को आधुनिक भारत में एक अलग प्रांत की पहचान दी, बल्कि उस गौरव को भी लौटाया, जिसे कभी मगध साम्राज्य और लिच्छवी गणराज्य के कालखंड हमने पा रखा था. इतना ही नहीं आधुनिक बिहार के इतिहास में पटना को एक नूतन राजधानी के रूप में विकसित करने का काम भी ब्रितानिया हुकूमत के इसी नौकरशाह ने किया.

दिल्ली दरबार में की थी बिहार राज्य के निर्माण की घोषणा

1911 में जार्ज पंचम के दिल्ली दरबार में लॉर्ड हार्डिंग ही वह वो पहले शख्स थे, जिन्होंने बंगाल से अलग बिहार-उड़ीसा नाम से एक अलग प्रांत के निर्माण की घोषण की. उस वक्त इस नये प्रांत की राजधानी को लेकर आम राय नहीं बन रही थी, लेकिन लॉड हार्डिंग ने दिल्ली में मौजूद बिहार राज्य निर्माण आंदोलन से जुड़े नेताओं को भरोसा दिया कि नये प्रांत की राजधानी पटना ही होगी. लॉर्ड हार्डिंग के लिए पटना को बिहार-उड़ीसा की राजधानी के रूप में चुनना और विकसित करना आसान नहीं था.

आसान नहीं था पटना को राजधानी घोषित करना

गंगा, पुनपुन और सोन तीन नदियों के किनारे बसे पटना एक सस्ते बंदरगाह के रूप में जाना जाता था, लेकिन कोलकाता के मुकाबले इस शहर में राजधानी लायक आधारभूत संरचनाएं नहीं थी. पटना से बेहतर आधारभूत ढांचा कटक के पास था. इसके बावजूद लॉर्ड हार्डिंग ने पटना का चयन किया. लॉर्ड हार्डिंग ने नये प्रांत की नूतन राजधानी तैयार के लिए न्यूजीलैंड से आर्किटेक्ट जेएफ मुनिंग्स को बुलाया और दिल्ली के तर्ज पर एक टाउनशिप तैयार करने की जिम्मेदारी दी.

कम बजट के बावजूद बनायी खूबसूरत इमारतें

आज भी पटना में सड़कों पर चलते वक्त हम और आप जिन इमारतों को निहारते रहते हैं, उनमें से अधिकतर लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल में ही बना हुआ है. पटना हाईकोर्ट हो या विधानसभा की इमारत, पीएमसीएच हो, पटना संग्रहालय हो या बांकीपुर गर्ल्स हाइ स्कूल इन तमाम इमारतों का निर्माण उसी कालखंड में हुआ. यूरोपीय वास्तुकला की छाप आज भी पटना के धरोहरों में साफ तौर पर देखी जाती है. यही नहीं इन सभी इमारतों को लॉर्ड हार्डिंग ने तब पूरा किया, जब पहले वर्ल्ड वॉर के दौरान ब्रिटिश हुकूमत की जर्मनी ने कमर तोड़ रखी थी.

अपने कार्यकाल में ही बनाया हाइकोर्ट भवन

लॉर्ड हार्डिंग के कार्यकाल 1910 से 16 तक रहा. उनके कार्यकाल में बने पटना उच्च न्यायालय यूरोपीय वास्तुकला का सर्वोत्कृष्ट नमूना है. तत्कालीन वायसराय लार्ड हार्डिंग ने खुद 3 फरवरी, 1916 को शानदार समारोह में पैलेडियन डिजाइन से निर्मित नियोक्लासिकल शैली में बनी पटना हाई कोर्ट के विशाल इमारत का उद्घाटन किया था. चाल सेटिंग ने 1 दिसंबर, 1913 को इमारत की नींव रखी थी और 3 साल में उच्च न्यायालय बनकर तैयार हो गया था. 1936 में उड़ीसा से अलग होने के बावजूद 1948 तक पटना उच्च न्यायालय भवन सही न्यायिक कार्य चलता था.

बिहार के लोगों के मन में आज भी है सम्मान

लॉर्ड हार्डिंग ने अगर बिहार को नया स्वरूप दिया तो तत्कालीन बिहार के लोगों ने भी उनका पूरा सम्मान किया. पटना में दरभंगा महाराज की अध्यक्षता में हुई सभा में हसन इमाम के प्रस्ताव पर पटना के पहले सार्वजनिक पार्क का नाम लॉर्ड हार्डिंग के नाम पर हार्डिंग पार्क रखा गया. वहीं नूतन राजधानी इलाके के दो मुख्य मार्गों में से एक का नाम लॉर्ड हार्डिंग के नाम पर हार्डिंग रोड रखा गया. वैसे आजादी के बाद बिहार के समाजवादी नेताओं की मांग पर हार्डिंग पार्क और हार्डिंग रोड का नाम बदल दिया गया है. इसके बावजूद आज भी पटना संग्रहालय में जब लोग लॉर्ड हार्डिंग की प्रतिमा को देखते हैं तो सहसा ठहर कर निहारते हैं और बिहार के आधुनिक इतिहास के इस शिल्पकार को नमन करते हैं. लॉर्ड हार्डिंग के लिए बिहार वासियों के मन में आज भी सम्मान है.

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