ऐसे समय में जो बाइडेन ने राष्ट्रपति का पदभार संभाला है, जब अमेरिका कई समस्याओं से घिरा है तथा दुनिया में भी उसका प्रभाव कम हुआ है. चुनाव अभियान के दौरान और जीत के बाद वे इन चुनौतियों को रेखांकित करते रहे थे. बतौर राष्ट्रपति अपने पहले संबोधन में उन्होंने समाज और राजनीति में विभाजन को समाप्त कर सभी अमेरिकियों के राष्ट्रपति के रूप में काम करने का भरोसा दिलाया है.
उन्होंने महामारी की मुश्किल और लोगों की रोजी-रोटी पर इसके भयावह असर से भी देश को निकालने का वादा किया है. एक महाशक्ति होने के नाते वैश्विक राजनीति और आर्थिकी में अमेरिका के महत्व को भी बाइडेन ने स्पष्ट किया है. वैसे यह संबोधन एक औपचारिक संदेश था, लेकिन जब हम इसके संदर्भों को देखते हैं, तो यह एक ऐतिहासिक संदेश के रूप में स्थापित होता है.
एक पखवाड़े पहले अमेरिकी लोकतंत्र के केंद्र पर पूर्व राष्ट्रपति ट्रंप के समर्थकों का उत्पात हर उस संकट का प्रतीक है, जिससे अमेरिका आज जूझ रहा है. अश्वेत समुदाय और अवैध आप्रवासियों के विरुद्ध अमानवीय आचरण, उग्र श्वेत श्रेष्ठता का विस्तार तथा सत्ता प्रतिष्ठानों से लेकर समाज के बड़े हिस्से में हिंसा और विषमता को स्वाभाविक मानने की बढ़ती प्रवृत्ति जैसे कारकों ने देश को दो भागों में बांट दिया है. संबोधन का मुख्य स्वर इस बंटवारे को चिन्हित करना और इसे पाटने के लिए देश को एकजुट करना है.
अपने भाषण में उन्होंने ‘हम’ शब्द का सर्वाधिक प्रयोग किया है और राष्ट्रीय विभाजन को ‘असभ्य युद्ध’ की संज्ञा दी है. ‘हम’, ‘हमें’ और ‘हमारा’ जैसे सर्वाधिक प्रयुक्त शब्द जहां एकता का आह्वान करते हैं, वहीं कई बार बोले गये ‘मैं’ और ‘मेरा’ इंगित करते हैं कि बाइडेन देश का नेतृत्व करने के लिए कृतसंकल्प हैं तथा वे लोगों से भी उनके ऊपर भरोसा करने का निवेदन कर रहे हैं.
महामारी और ट्रंप प्रशासन की विफलताओं से अमेरिकी अर्थव्यवस्था बेहाल है. इसीलिए राष्ट्रपति के पहले संबोधन में संक्रमण की रोकथाम के साथ रोजगार और कारोबार चिंता प्राथमिकताओं में है. जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान को लेकर हालिया अमेरिकी बेपरवाही से धरती बचाने के अंतरराष्ट्रीय प्रयासों को धक्का लगा है. इन समस्याओं से अमेरिका भी प्रभावित है.
बाइडेन के संबोधन में इस वैश्विक चुनौती का उल्लेख प्रमुखता से हुआ है और उन्होंने पहले ही दिन पेरिस जलवायु समझौते में अमेरिका के फिर से शामिल होने की घोषणा की है. यह शेष विश्व के लिए एक सकारात्मक पहल है. ‘अमेरिका फर्स्ट’ की ट्रंप नीति से देश को क्या फायदा हुआ, यह तो बहस की बात है, पर इस रवैये के कारण अपने मित्र देशों और दुनिया से अमेरिका के संबंध कमजोर हुए. बाइडेन ने इन संबंधों को प्राथमिकता देने की बात कही है, जो भारत व दक्षिण एशिया के लिए अच्छा संकेत है. बाइडेन की राह आसान तो नहीं होगी, पर संबोधन में उनके अनुभव और संकल्प स्पष्ट रूप से प्रतिबिंबित होते हैं.
Posted : Sameer Oraon