लॉकडाउन में कोचिंग संस्थान के बंद होने से मेस और लॉज का बुरा हाल, कोरोना काल में लाखों की रोजी-रोटी पर संकट

कभी विद्यार्थियों की चहलकदमी से गुलजार रहने वाला शहर का खजांची रोड, रमना रोड, बीएम दास रोड, भिखना पहाड़ी, नया टोला, बोरिंग रोड व कंकड़बाग का इलाका महीनों से सूना पड़ा है.

By Prabhat Khabar News Desk | December 14, 2020 8:04 AM

पटना. कभी विद्यार्थियों की चहलकदमी से गुलजार रहने वाला शहर का खजांची रोड, रमना रोड, बीएम दास रोड, भिखना पहाड़ी, नया टोला, बोरिंग रोड व कंकड़बाग का इलाका महीनों से सूना पड़ा है.

कोचिंग हब कहलाने वाले शहर के इन इलाकों में न केवल कोचिंग इंस्टीट्यूट बल्कि विद्यार्थियों की रोजमर्रा से जुड़े छोटे दुकानदारों की आमदनी पर असर पड़ा है. इनमें किताब, स्टेशनरी व खाने-पीने की दुकान लगाने वालों के सामने पिछले आठ महीने से रोजी-रोटी की की व्यवस्था करने पर भी आफत आ गयी है.

इसके अलावा शहर में प्राइवेट लॉज, हॉस्टल व मेस चलाने वाले भी महीनों से आर्थिक संकट झेल रहे हैं. एक अनुमान के तहत शहर में छह हजार के करीब प्राइवेट लॉज व हॉस्टल चलते हैं, जिनसे करीब डेढ़ लाख लोगों का रोजगार चलता है. इसके अलावा करीब तीन हजार से ज्यादा की संख्या में मेस व होटल चलते हैं जो पूरी तरह से विद्यार्थियों पर निर्भर होते हैं.

मेस, होटल व टिफिन सर्विस के जरिये शहर में करीब एक लाख लोगों की रोजी-रोटी चलती हैै. मगर महीनों से कोचिंग संस्थान बंद होने व लॉज-हॉस्टल में छात्रों के नहीं रहने के कारण इनकी हालत खस्ता होते जा रही है. आलम यह है कि मकान व स्टाफ का किराया भी महीनों से बकाया है और इनके सामने कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है, जिससे वह इस स्थिति को सुधार सकें.

किताब व स्टेशनरी दुकानदारों की 90 प्रतिशत तक घटी सेल

कोचिंग संस्थान के बंद होने से किताब व स्टेशनरी की दुकानदारों की सेल 90 प्रतिशत घट चुकी है. शहर के विभिन्न इलाकों में किताब व स्टेशनरी की दुकान चलाने वाले महीनों से परेशानी झेल रहे हैं.

दुकानदारों का कहना है कि किराया और स्टाफ की सैलरी भी देने की स्थिति में नहीं हैं. इनके अलावा स्टूडेंट एरिया में फोटो-कॉपी व प्रिंटिंग का व्यापार करने वालों के सामने भी दिन-भर का खर्चा निकालना भी मुश्किल हो गया है.

फ्लैक्स प्रिंटिंग का व्यापार करने वालों का भी काम ठप

कोचिंग संचालक अपने प्रचार-प्रसार के लिये होर्डिंग का भी सहारे लेते हैं. इस होर्डिंग बनाने वाले सीधे तौर पर फ्लैक्स प्रिटिंग के कारोबार से जुड़े हैं. शहर में करीब 300 ऐसे कोचिंग हैं, जिनसे इन्हें लाखों की आमदनी होती थी.

मगर पिछले आठ महीने से फ्लैक्स प्रिटिंग के कारोबार से जुड़े व्यापारियों का काम भी ठप पड़ा है. फ्लैक्स प्रिटिंग से जुड़े एक व्यापारी ने बताया कि महीने में केवल कोचिंग से 7 से 10 लाख रुपये का काम मिलता था जो पिछले आठ महीने से बिल्कुल ठप पड़ा है.

Posted by Ashish Jha

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