बिहार में सूख गयी सोन नहर, धान रोपने के लिए आकाश देख रहे मगध के किसान
पूरे नौबतपुर के किसान खेती के लिए बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. इससे धान की रोपाई प्रभावित हो रही है. नहरों ने भी ऐन वक्त पर दगा दे दिया है. घान की पैदावार के लिए मशहूर इस इलाके में हर बार इस समय तक लगभग 80 प्रतिशत धान की रोपनी हो जाती थी, लेकिन इस बार एक चौथाई तक ही हुई है.
सुमित आर्यन, नौबतपुर. धरती सूखी है, नहर खुद प्यासा है. कुछ करिए साहब, नहीं तो मर जायेंगे भूखे प्यासे. ये गुहार है सोन कैनाल के भरोसे खेती करने वाले राजधानी पटना के गोद में बसे नौबतपुर का किसानों की. पूरे नौबतपुर के किसान खेती के लिए बूंद-बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं. इससे धान की रोपाई प्रभावित हो रही है. नहरों ने भी ऐन वक्त पर दगा दे दिया है. घान की पैदावार के लिए मशहूर इस इलाके में हर बार इस समय तक लगभग 80 प्रतिशत धान की रोपनी हो जाती थी, लेकिन इस बार एक चौथाई तक ही हुई है.
बारिश का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं
सावन का महीना और बारिश का दूर-दूर तक नामोनिशान नहीं हैं. सूखे जैसे इस हालात से किसान काफी चिंतित हैं. जिन खेतों में किसानों ने जैसे-तैसे पानी भर कर धान की रोपाई की थी, उसमें दरारें पड़ गयी हैं. इससे पौधों के सूख कर नष्ट होने का खतरा बढ़ गया है. वहीं, पानी के अभाव में हजारों हेक्टेयर खेत खाली पड़े हैं, उनमें रोपाई नहीं हो पा रही है.
डीजल भी हो गया महंगा
गोनवां गांव के किसान जय प्रकाश यादव, बम भोली सिंह, नवीन सिंह, चुनमुन सिंह, सुरेंद्र सिंह, आदि ने कहा कि डीजल भी काफी महंगा हो गया है. उसके सहारे खेती कर पाना संभव नहीं है. अगर बारिश हो जाती, तो खेतों में पानी भर आता और धान की रोपनी में बहुत मदद मिलती.
खेत सूखे पड़े हैं
सावन माह में जहां चारों तरफ पानी ही पानी दिखता था, अभी खेत सूखे पड़े हैं. नौबतपुर प्रखंड के सोना, पिपलावां, खजूरी, नगवां, गोनवां, नरेंद्र रामपुर, धोबिया कालापुर, कर्णपुरा और सरासत, समेत कई गांव के किसानों का मुख्य पेशा खेती है. लेकिन, इधर कुछ वर्षों से इंद्रदेव की मेहरबानी कम हो रही है और नहर में भी पानी नहीं आ रहा है.
क्या कहते हैं किसान
यहां की कृषि व्यवस्था माॅनसून आधारित है. सिंचाई व्यवस्था कमजोर होने के कारण फिलहाल जरूरत के अनुरूप निजी बोरिंग से काम चला रहे हैं. जो किसान धान रोपाई कर चुके हैं उन्हें फसल बचाने की चिंता है.
जादो जी, किसान, गोनवां गांव
धान की रोपनी नहीं होने से भुखमरी की स्थिति बनती जा रही है. गांवों में आहर, पइन व तालाब का जीर्णोद्धार जरूरी है. इनकी उड़ाही करा कर उसमें बरसात का पानी जमा किया जा सकता है. वर्तमान में तालाब बिल्कुल सूख चुका है.
रवि रंजन, युवा किसान, सोना गांव