आसनसोल (शिवशंकर ठाकुर) : बिहार की संस्कृति में लोकगीत का काफी महत्व है. लोकगीत के बिना बिहार की संस्कृति की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. यहां हर अवसर के लिए गीत हैं. संस्कार गीत, ऋतु गीत, जाति संबंधी गीत, पेशागीत, बालक्रीड़ा गीत, भजन या श्रुति गीत, विशिष्ट गीत, गाथा गीत, विविध गीत, लोरिकायन, सलहेस, विजमैल, दीना-भदरी, पर्व गीत आदि. इतने लोकगीत अन्य किसी राज्य की संस्कृति में नहीं हैं. झारखंड के हजारीबाग स्थित गिरजानगर इलाके के भुवनेश्वर प्रसाद वर्मा की बेटी और ईपीएफओ मध्यप्रदेश जोन के मुख्य आयुक्त अभय रंजन की पत्नी अनामिका वर्मा बिहार के लोकगीतों को संयोजित कर उसे संरक्षित करने के प्रयास में जुटी हुई हैं.
रोने में भी सुर होता है. परंपरा के अनुसार भाई जब बहन की ससुराल में मिलने जाते थे, तो बहनें उनका पैर पकड़ कर रोती थीं. उस रोने में भी एक सुर होता था, जिसे सुनकर ही पड़ोसी समझ जाते थे कि यह कोई मुसीबत की पुकार नहीं, बल्कि उसके भाई मिलने आये हैं. आधुनिकता के दौर में बिहार की नई पीढ़ी अपनी पुरानी संस्कृति को भूलती जा रही है. गांवों में भी गिने-चुने पुरुष-महिलाएं ही बच गयी हैं, जो इन लोकगीतों को गुनगुनाती हैं. इनके जाने के बाद इस संस्कृति का क्या होगा ?
बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी रहे हजारीबाग के निवासी भुवनेश्वर प्रसाद वर्मा के एक पुत्र और चार बेटियों में सबसे छोटी अनामिका ने संत जोसफ कॉन्वेंट स्कूल पटना से माध्यमिक, बिहार इंजीनियरिंग कॉलेज पटना से उच्च माध्यमिक, संत कोलंबस हजारीबाग से स्नातक और त्रिवेणी संगीत शिक्षा केन्द्र राजेन्द्र नगर पटना से कत्थक नृत्य में संगीत प्रभाकर की डिग्री हासिल की हैं. वर्ष 1996 में उनकी शादी अभय रंजन से हुई. शादी के पूर्व पिता और शादी के बाद पति के नौकरी के सिलसिले में विभिन्न जगहों पर तबादला होते रहने के कारण अनामिका बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ आदि राज्यों में रह चुकी है. फिलहाल दिल्ली में हैं. एक पुत्र है जो ग्वालियर में प्लस टू की पढ़ाई कर रहा है.
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आसनसोल में अपने एक मित्र के घर पर आयीं अनामिका ने बताया कि उनकी माता सावित्री वर्मा, जिनका निधन वर्ष 2018 में हो गया. वह लोकगीतों की एक अच्छी गायिका थीं. उनके गीतों का कहीं भी कोई संग्रह नहीं है. उनके गीतों की कोई डायरी भी नहीं मिली. कोरोना काल दौरान दिल्ली में उनके अपार्टमेंट के निकट के एक भवन निर्माण में कार्य कर रहे बिहार के सैकड़ों श्रमिक फंस गए. जिसमें अनेकों श्रमिक अपने परिवार के साथ भी थे. वे वापस अपने गांव नहीं लौट पाए. उनकी सोसायटी के लोगों ने मिलकर उनके लिए एक वक्त के भोजन की व्यवस्था की थी.
इसी दौरान उनलोगों से उनकी मुलाकात हुई. यह लोग अपने दुःख को कम करने के लिए विभिन्न लोकगीतों को गाते थे. यहीं से इन लोकगीतों को संग्रह करने की प्रेरणा मिली. आधुनिकता के इस दौर में नयी पीढ़ी के लोग इस संस्कृति को भूलते जा रहे हैं. बिहार की संस्कृति में हर अवसर के लिए गीत, खेत में बुआई और कटाई के लिए गीत, जन्म पर गीत, मुंडन के गीत, शादी पर गीत, विदाई पर गीत, फाग गीत, छठ के गीत, मईया के गीत, हर मौसम के लिए गीत आदि सैकड़ों गीत बिहार की संस्कृति में हैं. इन्हें यदि संरक्षित नहीं किया गया यह कुछ दशक में समाप्त हो जाएगा. इसे वर्तमान और आगामी पीढ़ी के लिए संरक्षित करने के उद्देश्य से इस कार्य को आरम्भ किया है. जिसमें उनके पति उनकी काफी मदद करते हैं. अनामिका के इस प्रयास को काफी लोगों ने सराहा है.
Posted By : Guru Swarup Mishra