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अजीत रानाडे

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मुद्रास्फीति वृद्धि की गंभीर चुनौती

आर्थिक नीति के लिए यह एक कठिन साल होगा और मुद्रास्फीति को नीचे रखने के लिए वित्तीय, मौद्रिक और प्रशासकीय नियंत्रण समेत हर औजार की आवश्यकता होगी.

नियंत्रण में है भारतीय अर्थव्यवस्था

झटकों को बर्दाश्त करने की क्षमता बरसों की आर्थिक नीतियों का परिणाम होती हैं. इस मामले में भारतीय अर्थव्यवस्था ने निश्चित ही बड़ी दूरी तय की है.

खाड़ी देशों से संबंधों की अहमियत

भारतीय वृद्धि के लिए वैश्विक निर्यात बाजारों तक पहुंच जरूरी है और खाड़ी देश सभी क्षेत्रों के लिए एक अहम ठिकाना हैं.

वैश्विक मंदी की आशंका व भारत

विश्व मंदी की ओर बढ़ रहा है और भारत इसके प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता है. घरेलू मांग और वित्तीय सहयोग के सहारे आगे बढ़ना होगा.

विदेशी मुद्रा का प्रबंधन जरूरी

भारत का कुल विदेशी कर्ज 620 अरब डॉलर है और इसमें से 267 अरब डॉलर आगामी नौ माह में चुकाना है. कम अवधि के कर्ज का यह अनुपात 44 प्रतिशत है.

बैंकों की खूबियां और खामियां

सार्वजनिक बैंकों में सरकार की हिस्सेदारी को कम किया जा सकता है तथा कामकाज में उन्हें अधिक स्वायत्तता दी जा सकती है.

अर्थव्यवस्था में आशा के संकेत

महामारी के दौर को छोड़कर बीते 40 सालों में रियल टर्म में औसत वृद्धि दर सात प्रतिशत रही है तथा 1980 से कभी भी संकुचन नहीं हुआ है. भारतीय वृद्धि प्रक्रिया की यह ताकत है.

मुक्त व्यापार पर हिचक कम हो

वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के कारण सुस्त होती जा रही है. ऐसी स्थिति में अगर हमारी व्यापारिक हिस्सेदारी में तीन-चार फीसदी की भी बढ़ोतरी होती है, तो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए यह बहुत उत्साहजनक होगा.

जरूरी उपाय है मुफ्त राशन योजना

प्रधानमंत्री मुफ्त अनाज योजना कोरोना के कारण अप्रैल, 2020 में शुरू हुई थी. भारत जीवनयापन के संकट को व्यापक खाद्य संकट में बदलना नहीं चाहता था. इस योजना से हमें बहुत फायदा हुआ है और आज मुद्रास्फीति के दौर में इसने महंगे अनाज की खरीद से भी परिवारों को बचाया है.
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