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अरविंद दास

वरिष्ठ पत्रकार

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Prabhat Special: सरहद पार की दो फिल्में

‘जिंदगी तमाशा’ की तरह ही ‘जॉयलैंड’ के केंद्र में लाहौर में रहने वाला एक परिवार है. इस परिवार का मुखिया एक विधुर है, जिसके दो बेटे और बहुएं हैं. परिवार को एक पोते की लालसा है.

फिल्म पाइरेसी रोकना एक जरूरी पहल है

सात साल या तेरह साल के बच्चे के लिए माता-पिता की संरक्षण में ही इस बदलाव को सुचारु ढंग से अमलीजामा पहनाया जा सकता है. जिस तरह से आज बच्चों के हाथों में मोबाइल और लैपटॉप आ गया है ये प्रावधान बेहद जरूरी हैं,

राजनीतिक सवाल करता सिनेमा, हर स्तर पर झकझोर देती है यह फिल्म

विषय-वस्तु के स्तर पर यह फिल्म हमें गहरा झकझोरती है. समांतर सिनेमा से जुड़े फिल्मकारों के लिए राजनीतिक विषय अछूते नहीं थे.

रंगमंच : फिर से अंधा युग का मंचन

बजाज जैसे सिद्ध रंगकर्मी से अपेक्षा थी कि इस क्लासिक नाटक को एक नये रूप में लेकर आते. सवाल है कि इस नाटक की प्रस्तुति में क्यों कोई अभिनव प्रयोग लक्षित नहीं होते?

यथार्थपरक समकालीन नाटकों का अभाव

बेला बोस बहुमुखी प्रतिभा की धनी थीं. कुशल अभिनेत्री के साथ मणिपुरी नृत्य में भी पारंगत थीं. पश्चिम से लेकर आदिवासी और लोक नृत्यों को भी बखूबी कर लेती थीं.

मिथिला कला के पेपर मेसी रूप का सम्मान

पेपर मेसी में कागज को पानी में गलाकर पहले लुगदी बनायी जाती है, फिर कलाकार गोंद मिलाकर उसे धूप मे सुखाते हैं. फिर विभिन्न आकृतियों में गढ़ कर उस पर रंग चढ़ाया जाता है.
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