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Ashutosh Chaturvedi

मीडिया जगत में तीन दशकों से भी ज्यादा का अनुभव. भारत की हिंदी पत्रकारिता में अनुभवी और विशेषज्ञ पत्रकारों में गिनती. भारत ही नहीं विदेशों में भी काम करने का गहन अनु‌भव हासिल. मीडिया जगत के बड़े घरानों में प्रिंट के साथ इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता का अनुभव. इंडिया टुडे, संडे ऑब्जर्वर के साथ काम किया. बीबीसी हिंदी के साथ ऑनलाइन पत्रकारिता की. अमर उजाला, नोएडा में कार्यकारी संपादक रहे. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ एक दर्जन देशों की विदेश यात्राएं भी की हैं. संप्रति एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्य हैं.

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अपना रवैया बदलें प्रशासनिक अधिकारी

अधिकारियों में पद के दुरुपयोग की प्रवृत्ति बढ़ गयी है. जिसके लिए प्रशासनिक सेवा गठित की गयी थी, वह अपना काम करती नजर नहीं आ रही है. अधिसंख्य अधिकारियों में संवेदना और मानवीय मूल्यों का अभाव साफ नजर आता है.

पाकिस्तान में गंभीर आटा संकट

विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान और श्रीलंका की वर्तमान स्थिति वित्तीय अनुशासन की अनदेखी के कारण हुई है. इसके लिए वहां की सरकारें और नेता जिम्मेदार हैं.

हॉकी को आपके सहयोग की जरूरत

हमारी सबसे बड़ी समस्या यह है कि हमारे खेल संघों पर नेताओं ने कब्जा कर रखा है. देश में खेल संस्कृति पनपे, इसके लिए खेल प्रशासन पेशेवर लोगों के हाथ में होना चाहिए, लेकिन हुआ इसके ठीक उलट. नतीजतन अधिकतर खेल संघ राजनीति का अखाड़ा बन गये.

नया साल, नया उल्लास, नया संकल्प

त्योहारों और जन्मदिन के मौकों पर परिचितों, मित्रों और रिश्तेदारों को उपहार देने की परंपरा है. मेरा सुझाव है कि उसमें किताबों को भी शामिल किया जाना चाहिए. पुरानी कहावत है कि किताबें ही आदमी की अच्छी व सच्ची दोस्त होती हैं

रंगभेद का शिकार हमारा समाज

यह विडंबना नहीं तो और क्या है कि जिस देश में रंगभेद व नस्लभेद के खिलाफ संघर्ष के सबसे बड़े प्रणेता महात्मा गांधी ने जन्म लिया, उस समाज में रंगभेद की जड़ें बेहद गहरी हैं.

अपराध और राजनीति का गठजोड़

जो शख्स आठ पुलिसकर्मियों का हत्यारा हो और जिस पर 60 से अधिक संगीन मामले दर्ज हों, उसकी कहानी का पटाक्षेप तो होना ही चाहिए, लेकिन ऐसे एनकाउंटर से लोगों का व्यवस्था पर भरोसा डगमगाता है.

फिर देख बहारें होली की

भागमभाग भरी जिंदगी में यह त्योहार सुकून देता है. यह अकेला ऐसा त्योहार है, जो समतामूलक समाज की परिकल्पना को भी साकार करता है. यह त्योहार सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल भी है.

भरोसे का साथी है अखबार

एक फेक न्यूज यह भी चली कि अखबारों से कोरोना फैल सकता है, जबकि देश-दुनिया के जानेमाने स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं. अब तक ऐसी कोई घटना भी सामने नहीं आयी है. संकट के इस दौर में यह साफ हो गया है कि खबरों की विश्वसनीयता के मामले में अखबार सबसे भरोसेमंद हैं.
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