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Ashutosh Chaturvedi

मीडिया जगत में तीन दशकों से भी ज्यादा का अनुभव. भारत की हिंदी पत्रकारिता में अनुभवी और विशेषज्ञ पत्रकारों में गिनती. भारत ही नहीं विदेशों में भी काम करने का गहन अनु‌भव हासिल. मीडिया जगत के बड़े घरानों में प्रिंट के साथ इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता का अनुभव. इंडिया टुडे, संडे ऑब्जर्वर के साथ काम किया. बीबीसी हिंदी के साथ ऑनलाइन पत्रकारिता की. अमर उजाला, नोएडा में कार्यकारी संपादक रहे. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ एक दर्जन देशों की विदेश यात्राएं भी की हैं. संप्रति एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्य हैं.

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भरोसे का साथी है अखबार

एक फेक न्यूज यह भी चली कि अखबारों से कोरोना फैल सकता है, जबकि देश-दुनिया के जानेमाने स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इस बात के कोई प्रमाण नहीं हैं. अब तक ऐसी कोई घटना भी सामने नहीं आयी है. संकट के इस दौर में यह साफ हो गया है कि खबरों की विश्वसनीयता के मामले में अखबार सबसे भरोसेमंद हैं.

इस आबोहवा को कैद कर लीजिए

लॉकडाउन में हिमालय की चोटियां दो सौ किमी दूर से भी साफ नजर आ रही हैं. कहीं मोर नाचते दिख रहे हैं, तो कहीं इंद्रधनुष की छटा दिख रही है. इसने जीवनशैली में बदलाव करने को बाध्य किया है.

मजदूरों को नमन करने का वक्त

एक बात तो साबित हो गयी है कि इस देश की अर्थव्यवस्था का पहिया कंप्यूटर से नहीं, बल्कि मेहनतकश मजदूरों से चलता है.ए

पलायन की मानवीय त्रासदी

प्रवासी मजदूरों की मदद में समाज के सभी वर्गों को आगे आना चाहिए. हम सभी को इस मानवीय त्रासदी में अपना सामाजिक दायित्व निभाने की आवश्यकता है.

नेपाल के साथ रिश्तों में तनाव

कुछ समय पहले तक चीन की नेपाल में भूमिका केवल आधारभूत ढांचा खड़ा करने तक सीमित थी, लेकिन अब उसका दखल राजनीतिक ढांचे में स्पष्ट नजर आता है.

कोरोना काल में शिक्षा की चुनौती

कोरोना ने शिक्षा के समक्ष एक नयी चुनौती ला खड़ी की है, लेकिन हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा पर सभी का समान अधिकार है और यह सर्वसुलभ होनी चाहिए.

हथिनी की मौत से उठते सवाल

इंसान समझता है कि पृथ्वी पर रहने का अधिकार केवल उसी को है. यह सोच प्रकृति और कानून के खिलाफ है. हमें अपनी इस मानसिकता को बदलना होगा.

सेना की गिरफ्त में पाकिस्तान

पाकिस्तान में सेना का साम्राज्य है. वह उद्योग-धंधे चलाती है. प्रोपर्टी के धंधे में उसकी खासी दिलचस्पी है. उसकी अपनी अलग अदालतें हैं.

बहिष्कार की राह आसान नहीं

हमें धीरे-धीरे चीनी उत्पादों पर अपनी निर्भरता समाप्त करनी होगी. इसके लिए सबसे पहली शर्त होगी कि हमें सस्ते और टिकाऊ विकल्प उपलब्ध कराने होंगे.
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