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Ashutosh Chaturvedi

मीडिया जगत में तीन दशकों से भी ज्यादा का अनुभव. भारत की हिंदी पत्रकारिता में अनुभवी और विशेषज्ञ पत्रकारों में गिनती. भारत ही नहीं विदेशों में भी काम करने का गहन अनु‌भव हासिल. मीडिया जगत के बड़े घरानों में प्रिंट के साथ इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता का अनुभव. इंडिया टुडे, संडे ऑब्जर्वर के साथ काम किया. बीबीसी हिंदी के साथ ऑनलाइन पत्रकारिता की. अमर उजाला, नोएडा में कार्यकारी संपादक रहे. प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति के साथ एक दर्जन देशों की विदेश यात्राएं भी की हैं. संप्रति एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया के सदस्य हैं.

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कब आयेंगे हिंदी के अच्छे दिन

मैं अंग्रेजी के खिलाफ नहीं हूं, पर अपनी मातृभाषा में ही फेल हो जाएं, यह भी स्वीकार्य नहीं. इतनी बड़ी संख्या में छात्रों का हिंदी में फेल हो जाना इशारा करता है कि गुरुओं ने दायित्व सही से नहीं निभाया है.

पाठकों का भरोसा ही हमारी ताकत

प्रभात खबर ने धनबाद में अपनी यात्रा का एक और पड़ाव पूरा कर लिया है. प्रभात खबर ने रांची से अपने सफर की शुरुआत की थी. लेकिन कुछ ही समय में प्रभात खबर ने राष्ट्रीय फलक पर अपनी जगह बना ली.

बेटियों को मिले बराबरी का दर्जा

जहां भी बेटियों को मौका मिला है, उन्होंने कमाल कर दिखाया है. हर क्षेत्र में बेटियां आगे हैं, तो समाज के विभिन्न क्षेत्रों में उनकी भागीदारी कम क्यों है? दरअसल, उनकी शिक्षा की अनदेखी की जाती है. इस मानसिकता को बदलना होगा.

मेहरबानी कर मास्क जरूर पहनें

कोरोना वायरस ने पूरे देश को अपनी गिरफ्त में ले लिया है. इसके कारण हजारों लोगों की जानें जा चुकी हैं. पश्चिम बंगाल, बिहार और झारखंड में भी इसने तेजी से अपने पांव पसारे हैं. इस जानलेवा वायरस ने हमारी जिंदगी को पटरी से उतार दिया है. कोरोना ने हमारी जिंदगी के हर पहलू को प्रभावित किया है.

पाठकों का भरोसा ही हमारी ताकत

प्रभात खबर के देवघर संस्करण ने अपनी यात्रा का एक और पड़ाव पूरा कर लिया है. यह संयोग ही है कि जब बाबाधाम में सावन की चहल-पहल होती है, उस वक्त प्रभात खबर का देवघर संस्करण अपना स्थापना दिवस मनाता है.

ऑनलाइन शिक्षा कक्षा का विकल्प नहीं

यह मान लिया गया है कि कक्षाओं का विकल्प ऑनलाइन शिक्षा है, पर हमें यह समझने की जरूरत है कि ये बदलाव बेहद मुश्किल हैं और इसमें ढेरों चुनौतियां हैं.

अभिनेता सुशांत की मौत से उठे सवाल

फिल्म अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की बेहद दुखद परिस्थितियों में मौत हुई है. उम्मीद की जा रही है कि सीबीआइ जांच से उनकी मौत के राज से पर्दा उठेगा.

धौनी जैसा कोई भी नहीं

धौनी जैसे खिलाड़ी 30-40 साल में एक बार आते हैं. खेल के मैदान से उनके बाहर चले जाने के बाद एक बड़ा खालीपन होगा, जिसे भरना मुश्किल होगा.

समाज पर बदनुमा दाग है दुष्कर्म

हम अक्सर महिलाओं के प्रति सम्मान की बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन हाथरस की घटना ने महिला सुरक्षा को लेकर फिर गंभीर सवाल खड़े किये हैं.
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