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कृष्ण प्रताप सिंह
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Opinion
हसरत मोहानी, जिन्होंने ‘इंकलाब जिंदाबाद’ का नारा दिया
Hasrat Mohani : हसरत मोहानी हमारी गंगा-जमुनी तहजीब के प्रतिनिधि और हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रबल पक्षधर तो थे ही, उर्दू की प्रगतिशील गजल धारा के प्रवर्तक, शायरी में महिलाओं के ऊंचे मुकाम के हामी, अरबी व फारसी के उद्भट विद्वान और देश के बंटवारे के विकट विरोधी भी थे.
Opinion
Birth Anniversary : चरण सिंह के लिए किसान सर्वोपरि थे
Chaudhary Charan Singh : 1979 में वह भेष बदल कर एक गरीब किसान के रूप में उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के उसरहर पुलिस थाने पर अपने साथ हुए अपराध की रिपोर्ट लिखाने पहुंच गये थे.
Opinion
शहादत दिवस : रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्लाह खां और रोशन सिंह को एक साथ...
Kakori conspiracy : शहादत के वक्त, जैसी कि परंपरा है, गोरखपुर जेल में अफसरों द्वारा बिस्मिल से उनकी अंतिम इच्छा पूछी गयी, तो उनका दो टूक जवाब था : 'आइ विश द डाउनफॉल ऑफ ब्रिटिश एंपायर.' यानी मैं ब्रिटिश साम्राज्य का नाश देखना चाहता हूं.
Opinion
जयंती विशेष: सादगी की मूर्ति थे डॉ राजेंद्र प्रसाद, पढ़ें कृष्ण प्रताप सिंह का...
Birth Anniversary Special: राष्ट्रपति भवन में एक दशक से ज्यादा समय बिताने के बावजूद सत्ता की चकाचौंध को उन्होंने अपने पास फटकने नहीं दिया था. उनका अनासक्ति भाव वहां भगवान राम के भाई भरत की याद दिलाता था.
Opinion
Birth Anniversary : खुली किताब की तरह था हरिवंशराय बच्चन का जीवन
Harivanshrai Bachchan : वह 'मधुशाला' पर ही नहीं रुके रहे और निरंतर सृजनरत रहकर पद्य के साथ गद्य को भी समृद्ध करते रहे. जीवन के उत्तरार्ध में उन्होंने चार खंडों में आत्मकथा लिखी, जिसने सुहृदजनों की भरपूर प्रशंसा अर्जित की.
Opinion
Birth Anniversary : चीन से शिकस्त ने नेहरू को तोड़ डाला था
Birth Anniversary : बीबीसी संवाददाता रेहान फजल ने दो साल पहले उनकी पुण्यतिथि पर प्रकाशित अपने एक लेख में लिखा था कि ‘1962 में चीन से हुई लड़ाई ने उनको तोड़कर रख दिया था और उसके सदमे से वे कभी उबर नहीं पाये.' परिणाम यह हुआ कि ‘उनकी पुरानी शारीरिक ताकत, बौद्धिक कौशल और नैतिक चमक बीते दिनों की बात हो गयी और वे निराश व थके हुए से दिखने लगे.
Opinion
आखिरी दम तक वंचितों की आवाज बने रहे अदम गोंडवी
अदम के लिए अपनी शायरी में ईमानदार व जनोन्मुख होना ज्यादा अहम था. वे अपने शुरुआती दौर में ही सामंतों व सवर्णों को दलितों के कठिन जीवन का ताप महसूस कराने के उद्देश्य से ‘चमारों की गली’ शीर्षक मर्मभेदी रचना लिखकर अपने ‘बंधु-बांधवों’ को दुश्मन बना चुके थे.
Opinion
तबला ही नहीं बांसुरी के भी जादूगर थे लच्छू महाराज
अपने प्रशिक्षण के दौरान ही (सात-आठ वर्ष की उम्र से ही) उन्होंने स्टेज पर प्रस्तुति देनी भी शुरू कर दी थी. बड़े होने पर उन्होंने पिता की इस विरासत को थाती की तरह संभाला
Opinion
‘अंधेरी कोठरी’ का इकलौता रोशनदान थे जेपी
इस तरह देश लोकतंत्र को पुनर्स्थापित करने में सफल हुआ, तो जेपी उसकी शुचिता को लेकर बेहद गंभीर थे.