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कृष्ण प्रताप

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समता और बंधुत्व के संदेशवाहक थे डॉ आंबेडकर

बाबासाहब का मानना था कि जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता नहीं पा लेते, कानून द्वारा दी गयी कोई भी स्वतंत्रता आपके किसी काम नहीं आती. इसलिए सामाजिक स्वतंत्रता का कोई विकल्प
नहीं हो सकता.

लाजवाब थी बच्चन की मस्ती और मादकता

बच्चन की लोकप्रियता से ईर्ष्या रखने वाले कुछ महानुभावों ने गांधी जी से शिकायत कर दी कि आयोजकों ने एक ऐसे कवि को भी बुला रखा है, जिसने मदिरा का गुणगान करने वाली ‘मधुशाला’ लिखी है. फिर इन महानुभावों ने गांधी से पूछा कि उसने मंच पर उनकी उपस्थिति में ही मदिरा का गुणगान शुरू कर दिया, तो वे क्या करेंगे?

अयोध्या की दीपावली की बात ही कुछ और है

घी के दीयों वाले रूपकों में खोये कई महानुभाव चतुर्दिक भव्यता तलाशने लग जाते हैं और इस सादगी के सौंदर्य का दीदार ही नहीं कर पाते. यह समझने के लिए तो वैसे भी शौक-ए-दीदार चाहिए कि अयोध्या के हजारों मंदिरों के गर्भगृहों में मिट्टी के बने दीये ही क्यों जलाये जाते हैं

गणेश शंकर विद्यार्थी और उनका ‘प्रताप’

‘प्रताप’ के संपादक के तौर पर गणेश शंकर विद्यार्थी ने उक्त नरसंहार को लेकर जब उसके 13 जनवरी, 2021 के अंक में ‘डायरशाही और ओ डायरशाही’ शीर्षक अग्रलेख लिखा, तो अंग्रेज न सिर्फ तिलमिला गये, बल्कि बदला लेने पर उतर आये.

जयप्रकाश नारायण : जब एक 72 साल का बूढ़ा सच बोलता हुआ निकला..

इतिहास गवाह है कि इस ‘बुड्ढे की बकवास’ दमनकारी सत्ता के दबाये नहीं दबी. भले ही इस मुनादी के सात महीने बाद ही विपक्षी नेताओं को जेलों में ठूंस दिया, समाचार माध्यमों पर सेंसर लगा दिया गया और देश पर इमरजेंसी थोप दी गयी.

अयोध्या में बड़ा हादसा, हरियाणा से बिहार जा रही बस में ट्रक ने टक्कर...

दुर्घटना की शिकार बस पर जय मां भगवती ट्रैवल्स लिखा हुआ था . यह बस हरियाणा के गुरुग्राम से बिहार के यात्रियों को लेकर सुपौल जा रही थी. बस में सुपौल, मधुबनी सहित कई जिलों के यात्री सवार थे.

जब भगत सिंह अदालत में हंसने लगे

वकील को समझ में नहीं आया कि इसके बाद वह क्या कहे, लेकिन भगत सिंह ने शहादत के दिन भी अपनी कही इस बात को याद रखा. अंग्रेज अचानक उन्हें 1931 की 24 मार्च की निर्धारित तिथि से एक दिन पहले 23 मार्च की शाम ही फांसी देने पर तुल गये.

देश की आन के कवि थे रामधारी सिंह दिनकर

किसी खांचे या सांचे में फिट न होने के ही कारण पराधीनता के दौरान उन्हें ‘विद्रोही कवि’ और स्वतंत्रता के बाद ‘राष्ट्रकवि’ कहा गया, वहीं उनकी कविताओं में किये गये कई आह्वानों ने कुछ ऐसी जगह बनायी कि उनके लिए जनकवि का आसन भी सुरक्षित हो गया.

हिंदी के हक में आवाज उठानेवाले अहिंदीभाषी

गांधी प्रलोभन में नहीं आये, और संदेशवाहक से दो टूक कहवा दिया कि ‘उनसे कह दो कि वो भूल जाएं कि मुझे अंग्रेजी आती है. दुनिया को बता दें कि गांधी को अंग्रेजी नहीं आती.’
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