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लेखा रतनानी

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90 घंटे काम करने के नुस्खे पर युवाओं के प्रश्न के लिए तैयार रहें...

sn subrahmanyan : भले ही हम इस विचार को स्वीकार कर लें कि एसएनएस अलग तरीके से बात रखने के लिए जाने जाते हैं और वास्तव में उन्होंने जो कहा, उसका अर्थ वह नहीं था. फिर भी ऐसे बड़े मुद्दे हैं जो सुर्खियों में आते हैं कि भारत में सीइओ कैसे बच निकलते हैं. समय-समय पर सामने आने वाले मामले इंडिया इंक में और भी बहुत कुछ गलत होने की एक छोटी सी झलक पेश करते हैं.

कार्यस्थलों के माहौल में सुधार की जरूरत

इस साल के शुरू में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि 43 प्रतिशत भारतीय तकनीकी-पेशेवर सीधे अपने काम कारण उत्पन्न हुईं स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं का अनुभव करते हैं. लंबे समय तक काम करना इन स्वास्थ्य समस्याओं में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में उभरा है. पचास प्रतिशत से अधिक तकनीकी-पेशेवर प्रति सप्ताह औसतन 52.5 घंटे काम करते हैं, जो 46.7 घंटे के राष्ट्रीय औसत से अधिक है, जिससे भारत सबसे लंबे समय तक काम करने वाले देशों में शुमार होता है.

परिवार नियोजन के लिए चाहिए अलग नजरिया

हम समस्या से दूर नहीं भाग सकते- भारत में जनसंख्या नियंत्रण का सारा दारोमदार महिलाओं पर थोपा जाता रहा है. यह आज भी जारी है, और महिला नसबंदी से साफ प्रकट होता है.

महामारी से बड़ा मुकाबला

लोगों द्वारा गैर जिम्मेदार ढंग से व्यवहार करते हुए देखना दुखद है. सहयोग बहुत महत्वपूर्ण है. सामाजिक दूरी बरतना एकमात्र वैसा असरदार उपाय है, जो इस वायरस को बढ़ने से रोक सकता है.

चाय कामगारों की हालत बेहतर हो

चाय के कारोबार में पारंपरिक रूप से व्यापक खेती, पत्तियां चुननेवाले बहुत से कामगार और पत्तियों को मसलकर चाय बनानेवाली फैक्टरियां शामिल होती हैं. लेकिन कीमतों में उतार-चढ़ाव और मुनाफे में कमी की चुनौती को देखते हुए इस कारोबार के भविष्य को लेकर चिंताएं स्वाभाविक हैं, जिसमें आज भी 11.6 लाख लोग कार्यरत हैं, इनमें करीब 58 फीसदी महिलाएं हैं.

कोरोना महामारी के परोक्ष संकट

महामारी भारतीय सामाजिक संरचना में कुछ नयी दरारें पैदा कर रही है. सरकार के लिए इस अदृश्य संकट को लेकर जागने का समय है.
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