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मोहन गुरुस्वामी
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Opinion
उम्मीद के मुताबिक दक्षिण में नतीजे आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू नायडू की बड़ी जीत
केरल और तमिलनाडु में भाजपा के वोट प्रतिशत में कुछ बढ़त हुई है, पर उसकी मेहनत का कोई खास फायदा उसे नहीं हो सका है.
Opinion
व्यापक था पंडित नेहरू का व्यक्तित्व
नेहरू ने ऐसा आधुनिक और लोकतांत्रिक भारत बनाया था, जिसे टिके रहना था. गणतंत्र के आरंभिक वर्षों में उनका नेतृत्व मिलना भारत का सौभाग्य था. नेहरू का व्यक्तित्व व्यापक बौद्धिकता और दूरदृष्टि से संपन्न था.
Badi Khabar
Election Results 2023: तेलंगाना में सत्ता परिवर्तन, पढ़ें खास रिपोर्ट
हालांकि, केसीआर सरकार ने जन कल्याण की कई सफल योजनाओं को चलाया. राज्य में सिंचाई व्यवस्था भी बहुत बेहतर हुई है. फिर भी मतदाताओं के एक हिस्से में नाराजगी थी. इसकी सबसे बड़ी वजह थी कि उन्होंने एक राजा की तरह पूरे घमंड के साथ शासन चलाया.
Opinion
उदार थे इस्राइल की पहली पीढ़ी के नेता
इस्राइल की स्थापना ने एक ऐसे नये देश की उम्मीद जगायी थी, जो अपने अनुभवों और अपने संस्थापकों के आदर्शों के सहारे दुनिया के सामने कुछ अलग पेश करेगा. इसी आदर्शवाद ने भारत को प्रेरित किया और वह इस्राइल को मान्यता देनेवाले तीन देशों में से एक बना.
Opinion
सिंधु जल संधि की समीक्षा आवश्यक
सिंधु नदी से उसके समुद्र पहुंचने से पहले पानी का इस हद तक दोहन किया गया है कि समुद्री पानी इस नदी की राह में कई मील अंदर आ चुका है. वर्तमान आकलनों के अनुसार, सिंधु नदी प्रणाली में बहाव का स्तर 2030 से 2050 के बीच 2000 के स्तर से नीचे चला जायेगा.
Opinion
सिंधु जल संधि पर पाकिस्तान का अड़ियल रुख
सिंधु नदी तंत्र से पाकिस्तान की सिंचाई आवश्यकता का 80 प्रतिशत पूरा होता है. ये स्रोत अपने अधिकतम स्तर पर हैं. दक्षिण की कीमत पर अधिकांश पानी को उत्तरी पाकिस्तान को दिया जा रहा है. आगामी दशकों में सिंधु नदी तंत्र में पानी की कमी के आसार हैं.
Opinion
चीन में जनसंख्या गिरावट का संकट
अगले 20 वर्षों में चीन में कामगारों और सेवानिवृत्त लोगों का अनुपात आज के लगभग 5:1 से घट कर मात्र 2:1 रह जायेगा. ऐसे बड़े बदलाव का मतलब है कि यदि सरकार कर राजस्व के मौजूदा स्तर को कायम रखेगी
Opinion
अगली सदी एशिया की
आशा है कि यह एशिया की सदी होगी, जहां विश्व के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) का संतुलन बदलेगा. अभी लगभग एक-तिहाई की हिस्सेदारी है, जो अनुमान है कि 2050 तक आधे से अधिक हो जायेगी.
Opinion
असंगठित कामगारों पर रहे ध्यान
मलिन बस्तियों की घुटन में फंसे और लॉकडाउन की बंदिशों से निकलने की कोशिश करते लाखों प्रवासियों कामगारों की स्थिति क्रांतियों की उत्प्रेरक हो सकती है, लेकिन इसकी ओर न तो मीडिया ने ध्यान दिया और न ही सरकार एवं राजनीतिक वर्ग ने. किसी और दौर में सामाजिक न्याय के योद्धा तथा वर्ग संघर्ष के पैरोकार इस माहौल में कूद पड़ते, लेकिन अब ऐसा नहीं होता. गांधी क्या, उन्होंने माओ को भी भुला दिया है.