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पंकज चतुर्वेदी

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प्रतिमाओं के निर्माण में हो पर्यावरण की चिंता

प्रतिमाओं का विसर्जन जल-निधियों की जगह अन्य किसी तरीके से करने, उन्हें बनाने में पर्यावरण-मित्र सामग्री का इस्तेमाल करने जैसे प्रयोग किये जा सकते हैं.

कार्बन उत्सर्जन की गंभीर होती चुनौती

कार्बन की बढ़ती मात्रा दुनिया में भूख, बाढ़, सूखे जैसी विपदाओं को न्योता है. इससे जूझना दुनिया का फर्ज है, लेकिन भारत में मौजूद प्राकृतिक संसाधन व पारंपरिक ज्ञान इसका सबसे सटीक निदान है.

तेल रिसाव से गुस्साते समुद्र

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशनोग्राफी (एनआइओ) ने एक हालिया अध्ययन में देश के पश्चिमी तट पर तेल रिसाव के लिए दोषी तीन मुख्य स्थानों की पहचान की है. इनसे निकलने वाला तेल पश्चिमी और दक्षिण पश्चिमी भारत के गोवा के अलावा महाराष्ट्र व कर्नाटक के समुद्र तटों को प्रदूषित करने के लिए जिम्मेदार हो सकता है.

ऐसे शहर तो डूबेंगे ही

शहरों में बाढ़ रोकने के लिए सबसे पहला काम तो वहां के पारंपरिक जल स्रोतों में पानी की आवक और निकासी के पुराने रास्तों में बने निर्माणों को हटाने का करना होगा. यदि किसी पहाड़ी से पानी नीचे बह कर आ रहा है, तो उस पानी का संग्रह किसी तालाब में ही होगा.

ढहते पहाड़ से बिगड़ता प्राकृतिक संतुलन

पहाड़ केवल पत्थर के ढेर नहीं होते. वे इलाके के जंगल, जल और वायु की दशा और दिशा तय करने के साध्य होते हैं. जहां सरकार पहाड़ के प्रति बेपरवाह है, तो पहाड़ की नाराजगी भी समय-समय पर सामने आ रही है

छठ पर्व और जलनिधियों का संरक्षण

छठ पर्व लोक आस्था का प्रमुख सोपान है- प्रकृति ने अन्न-जल दिया, दिवाकर का ताप दिया, सभी को धन्यवाद और ‘तेरा तुझको अर्पण क्या लागे मेरा’ का भाव. सनातन धर्म में छठ एक ऐसा पर्व है, जिसमें किसी मूर्ति-प्रतिमा या मंदिर की नहीं, बल्कि प्रकृति यानी सूर्य, धरती और जल की पूजा होती है.

झरने बचेंगे, तो बचेंगी नदियां

जलग्रहण क्षेत्र में स्वच्छता बनाये रखते हुए पारिस्थितिक तंत्र को कायम रखने और भूजल एवं धरती पर जल प्रवाह के प्रदूषण को रोकने की किसी को परवाह ही नहीं है.

पराली निराकरण के उपाय तलाशने की जरूरत

माइक्रो लेवल पर किसानों के साथ मिल कर उनकी व्यावहारिक दिक्कतों को समझते हुए इसके निराकरण के स्थानीय उपाय तलाशे जाएं, जिसमें कम समय में तैयार होने वाली धान की नस्ल को प्रोत्साहित करना
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