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प्रभु चावला

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अपने मुख्यमंत्रियों से भाजपा की अपेक्षाएं

प्रधानमंत्री अपनी पार्टी के बजाय अपने व्यक्तित्व से गतिशील होकर तीसरे कार्यकाल के लिए प्रचार में हैं, फिर भी उनकी नजर क्षेत्रीय नेताओं और मुख्यमंत्रियों पर है, जिन्हें उन्होंने सीधे चुना है.

भाजपा को अपनी जीत का भरोसा

यह कहकर कि उनकी पार्टी और सहयोगी दल 400 सीटें जीतेंगे, मोदी ने संख्या के आख्यान को निर्देशित कर दिया है.

बुजुर्गों की समस्याओं पर भी हो ध्यान

एक प्रावधान है कि हर महीने बुजुर्ग व्यक्ति को एक-डेढ़ हजार रुपये मिलेंगे. इस मामूली रकम को पाने के लिए भी उम्रदराज लोगों को स्थानीय अधिकारियों के चक्कर काटने पड़ते हैं, जो उन्हें अपमान से प्रताड़ित करते हैं या रिश्वत मांगते हैं. पेंशन के लिए शायद ही किसी राज्य ने खाते में सीधे हस्तांतरण की व्यवस्था की है.

नया भारत गढ़ रहे हैं नरेंद्र मोदी

मोदी के इन प्रयासों के पीछे प्रेरक सिद्धांत देश को वास्तव में हिंदू राष्ट्र बनाना सुनिश्चित करना है, जहां सभी धर्मों के लोगों के समान अधिकार हों, पर किसी को अतिरिक्त विशेषाधिकार न मिले. ‘मोदी है तो मुमकिन है’ परिवर्तन का युद्ध घोष होगा.

राज्यसभा में मनोनयन पर हो चिंतन

प्रारंभ में राज्यसभा में विशिष्ट लोगों को मनोनीत करने का उद्देश्य सदन के बौद्धिक स्तर को बढ़ाना था. एक अध्ययन में रेखांकित किया गया है कि बीते 12 वर्षों में मनोनीत सदस्य ज्यादातर अनुपस्थित रहे हैं. सचिन तेंदुलकर की उपस्थिति 22 और दारा सिंह की 57 प्रतिशत रही थी.

थिंक-टैंक संस्थाओं की फंडिंग पर रोक

सीपीआर अकेला थिंक टैंक नहीं है, जो सरकार की निगाह में आया है. भारत के लगभग 500 ऐसी संस्थाओं में ऐसे लोग भरे पड़े हैं, जो नयी स्थितियों को पचाने में असमर्थ हैं. नयी दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर जैसी संस्थाओं का नियंत्रण पुराने नेहरूवादियों के हाथ में है, जिनके लिए मार्क्स और लेनिन सिद्धांत हैं.

पर्यटकों का पसंदीदा गंतव्य बने भारत

असीमित सांस्कृतिक विविधता और लोक कला के कई प्रकारों के बावजूद भारत शीर्ष के बीस वैश्विक गंतव्यों में शामिल नहीं है. इस संबंध में भारत ने उतना नहीं किया है, जितना किया जाना चाहिए. दुनिया भर में भारतीय गंतव्यों के प्रचार के लिए कोई ठोस पर्यटन नीति नहीं है.

नये साल में चुनाव, मुद्दे और दल

अजेय और भरोसेमंद होने की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि हालिया चुनावों में और पक्की हुई है. भाजपा का ठोस विकल्प बनाने का विचार पिछले साल आया, पर अंततः विपक्षी खेमे में विचारधारा और नेतृत्व को लेकर दरारें पड़ गयीं. हाल में कांग्रेस की हार विपक्ष को किसी तरह एकजुट होने को मजबूर करेगी.

विपक्षी गठबंधन को नेता नहीं, नारे की जरूरत

गठबंधन को एक प्रभावी नारे की दरकार है, जो सुर्खियों में आये और असरदार हो. उन्हें ‘मोदी की गारंटी कारवां’ की काट निकालनी होगी, जो इस संदेश के साथ देश भ्रमण पर है कि राष्ट्रीय विकास के लिए एकमात्र गारंटी मोदी हैं. तथ्य बताते हैं कि चुनाव किसी नेता के विरुद्ध नैरेटिव बनाकर नहीं जीते जाते.
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