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‘हाथी’ की सवारी को बेकरार रहते नये उम्मीदवार

भभुआ (कार्यालय) : भले ही बिहार में बहुजन समाज पार्टी का कोई खास जनाधार नहीं, लेकिन उत्तर प्रदेश से सटे बिहार के जिलों में बहुजन समाज पार्टी की अच्छी पकड़ है. इन सीमावर्ती जिलों में विधायक और सांसद के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी अपना स्थान रखती है. इन क्षेत्र में बड़ी संख्या में बहुजन […]

भभुआ (कार्यालय) : भले ही बिहार में बहुजन समाज पार्टी का कोई खास जनाधार नहीं, लेकिन उत्तर प्रदेश से सटे बिहार के जिलों में बहुजन समाज पार्टी की अच्छी पकड़ है. इन सीमावर्ती जिलों में विधायक और सांसद के चुनाव में बहुजन समाज पार्टी अपना स्थान रखती है.

इन क्षेत्र में बड़ी संख्या में बहुजन के कैडर वोट है और इस कैडर वोट का लाभ लेकर कई राजनीतिज्ञ अपना किस्मत चमका भी चुके हैं. कैमूर जिले के चारों विधानसभा सीटों पर बहुजन समाज पार्टी का उम्मीदवार कांटे की टक्कर देता रहा है और शायद यही कारण है कि कोई भी नया राजनीतिज्ञ अपनी शुरुआत बहुजन के टिकट पर करना चाहता है.

किसने बसपा को बनाया रास्ता

अभी काराकाट संसदीय सीट पर जदयू के टिकट पर सांसद चुने गये महाबली सिंह कभी बहुजन के टिकट पर चैनपुर विधानसभा सीट से विधायक हुआ करते थे. वह पहली बार बहुजन के टिकट पर ही विधायक बने. भभुआ विधानसभा सीट पर सुरेश पासी पहली बार बहुजन के ही टिकट पर विधायक चुने गये.

चैनपुर के वर्तमान विधायक वृज किशोर बिंद, भभुआ के भाजपा प्रत्याशी आनंद भूषण पांडेय, मोहनिया से राजद के उम्मीदवार निरंजन राम सभी बहुजन के टिकट पर पहली विधानसभा जाने का प्रयास किया.

चुनाव लड़ने के बाद बदल लेते दल

सांसद महाबली सिंह हो या फिर विधायक रामचंद्र यादव, सुरेश पासी सभी ने राजनीतिक पहचान बन जाने के बाद दूसरे दलों का थाम लिया. यही नहीं आनंद भूषण पांडेय से बृजकिशोर विंद, निरंजन राम सभी ने बहुजन के टिकट पर पहचान बनायी और उसी दम पर दल बदल कर टिकट लिया.

सांसद महाबली सिंह बहुजन छोड़ राजद के बाद आज जदयू में है. बृज किशोर विंद ने भाजपा का दामन थामा, तो रामचंद्र यादव सपा. आनंद भूषण पांडेय ने भाजपा और निरंजन राम राजद से रिश्ता बना लिये, लेकिन इन सभी नेताओं की पहली पहचान बहुजन से ही बनी.

आसान है टिकट का रास्ता

बहुजन समाज पार्टी से टिकट मिलना आसान है. अन्य दलों की तरह बसपा से उम्मीदवारों को टिकट देने में पार्टी में कार्यकर्ताओं की उम्र या फिर योगदान नहीं देखती.
बल्कि, बहुजन द्वारा टिकट देने का एक अलग ही पैमाना है और शायद यही कारण है कि नये राजनीतिक जो विधानसभा जाने या राजनीतिक पहचान बनाने के लिए बहुजन को ही आसान रास्ता मानते हैं. हालांकि लोगों द्वारा अक्सर टिकट वितरण में बहुजन पर थैले का खेल करने का आरोप लगता रहा है.

अजय गये, पर कई रेस में

एक बार फिर बहुजन के टिकट पर चैनपुर विधानसभा सीट पर दूसरे नंबर पर रहनेवाले अजय आलोक ने बहुजन का दामन छोड़ कर जदयू का दामन थाम लिया है. अब अगले विधान सभा चुनाव में इस सीट पर बहुजन की ओर से एक नया चेहरा नजर आयेगा और वह नया चेहरा बनने के लिए अभी से रस्साकशी तेज हो गयी है.

पार्षद जो अब विधानसभा में जाने की इच्छा रखते हैं वह अभी से ही ताकत लगाना शुरू कर दिया है. वैसे भी लोग रेस मे है जो बहुजन को आसान रास्ता मान कर जोड़ तोड़ की राजनीति में जुट गये है. कोई प्रदेश अध्यक्ष, तो कोई बहन जी तक अपनी जुगाड़ बैठाने में लगे हुए हैं. लेकिन, देखनेवाली बात यह होगी कि टिकट वितरण में कौन सा फॉमरूला काम आता है.

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