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उमेश चतुर्वेदी

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राजनीति और अपराध का खतरनाक गठजोड़

शाहजहां शेख के मामले ने राजनीतिक दलों के सामने एक चुनौती छोड़ी है कि क्या कोई राजनीतिक दल ऐसा नहीं हो सकता, जो 22 कैरट ठोस नैतिकता की राजनीति करे.

किसान आंदोलन के बदलते तेवर

दो साल पहले, 2021 की 26 जनवरी को दिल्ली में जैसी अराजकता फैलायी गयी, उसके बाद से सामान्य सहानुभूति के पात्र रहे किसानों को लेकर लोक विश्वास में दरार पड़ी.

नागरिकता संशोधन कानून का मकसद व्यापक

बड़ी बात यह है कि नागरिकता संशोधन कानून बुनियादी रूप से भारतीय मुसलमानों के खिलाफ नहीं है. इसका मकसद सराय की तरह मानते हुए लगातार सीमा पार से भारत आने वाले लोगों की पहचान सुनिश्चित करना और अवैध आप्रवासन रोकना है.

राम के जरिये लोक में बहती सहज धारा

राम मंदिर की प्राण-प्रतिष्ठा ने कमंडल और मंडल को साथ ला दिया है. राम के जरिये लोक में बहती सहज धारा इस बदलाव का सबसे बड़ा उदाहरण बन गयी है. इसका यह मतलब नहीं कि प्राण-प्रतिष्ठा के बाद देश में रामराज्य आ जायेगा.

मायावती का एकला चलो रे राग

विपक्षी गठबंधन के साथ अगर वह जातीं, तो निश्चित तौर पर उन्हें केंद्रीय राजनीति में भाजपा विरोधी ताकतों की धुरी बनी कांग्रेस के साथ-साथ संभवतः समाजवादी पार्टी की भी बात सुननी पड़ती. मायावती अगर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन में जाती हैं.

अस्तित्व के बजाय विरोध में कांग्रेस की दिलचस्पी

राम मंदिर के प्रतिष्ठा समारोह का बुलावा कांग्रेस के लिए अल्पसंख्यकवाद की राजनीति का उत्तर भारतीय वोटरों के बीच जवाब देने का मौका हो सकता था. वह समारोह में शामिल होकर कह सकती थी कि राम सबके हैं, किसी दल विशेष के नहीं.

राम मंदिर को लेकर ऊहापोह में है कांग्रेस

राम मंदिर न्यास ने ऐतिहासिक दिन के लिए कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी, कांग्रेस के मौजूदा अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी को निमंत्रित किया है. लेकिन कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व अब तक फैसला नहीं ले पाया है कि उसे इस समारोह में शामिल होना चाहिए या नहीं.

कांग्रेस में सांगठनिक बदलाव के मायने

कांग्रेसी अंत:पुर से खबरें उड़कर आती रही हैं कि रणनीति को लेकर परिवार में एका नहीं है. सोनिया गांधी के चहेते नेताओं का अलग समूह है, तो राहुल और प्रियंका का अपना-अपना गुट है. जब पार्टी का प्रथम परिवार ही एक नहीं रह पायेगा, तो पूरी पार्टी में एका कैसे होगी ?

कानूनी दायरे में आये सोशल मीडिया की पत्रकारिता

पत्रकारिता की न्यूनतम गारंटी निष्पक्षता है. ऐसा नहीं कि पारंपरिक पत्रकारीय संस्थान हमेशा निष्पक्ष रहे हैं. उन्होंने अगर किसी का पक्ष लिया भी, तो उसे आटे में नमक के समान मिलाने की कोशिश की. लेकिन सोशल मीडिया की पत्रकारिता में ऐसी प्रवृत्ति नजर नहीं आयी.
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