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उमेश चतुर्वेदी
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Opinion
यह अब सिर्फ ‘आकाशवाणी’ है
सार्वजनिक प्रसारण को स्वायत्तता देने वाले प्रसार भारती अधिनियम में भी आकाशवाणी नाम ही देने की बात कही गयी है. प्रसार भारती अधिनियम 15 नवंबर, 1997 से लागू हुआ
Badi Khabar
लोकहित के लिए बनें स्वास्थ्य नीतियां
देश की स्वास्थ्य सेवा में पैसे का कितना बोलबाला बढ़ गया है, इसे देखने के लिए, ईश्वर ना करे, किसी को गंभीर रूप से बीमार होना पड़े. अगर आप सरकारी अस्पताल में पहुंच गये, तो यह आपके भाग्य पर निर्भर करेगा कि आपका किसी भले डॉक्टर से पाला पड़े.
Badi Khabar
तकनीक के भाषाई अनुवाद का बड़ा कदम
आइआइटी बंबई का उड़ान प्रोजेक्ट सात वर्ष के अध्ययन के बाद हकीकत बनने लगा है. इसके जरिये तमाम तकनीकी पुस्तकों का अनुवाद होने लगा है. यह अनुवाद अभी हिंदी, मराठी, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, तमिल, गुजराती, उड़िया और बांग्ला में उपलब्ध है.
Opinion
देशज भाव के आंदोलनकारी पत्रकार
अंग्रेजी के वर्चस्व के खिलाफ भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा स्थापन की बात हो या फिर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को गति देने का अवसर, वेद प्रताप वैदिक ने न सिर्फ कलम को हथियार बनाया बल्कि मंचों पर चढ़ अपनी वाणी से भी अपनी सक्रियता का परिचय दिया
Opinion
नया वितान रचता विश्व हिंदी सम्मेलन
विश्व हिंदी सम्मेलन का यह हासिल मान सकते हैं कि इसकी वजह से हिंदी-प्रेमियों के जरिये दुनिया की इस तीसरी बड़ी भाषा के उत्थान के लिए माहौल जरूर बनता है.
Opinion
स्थानीय भाषा बोध और संप्रेषणीयता
उदारीकरण के तीक्ष्ण विस्तार के दौर में जब बाजार ने जीवन के हर क्षेत्र में अपनी पैठ बनानी शुरू की, तो पत्रकारिता ने इसमें भी अपने विस्तार की उम्मीद खोज ली.
Opinion
संकल्प व सेवा के बीच बड़ा फासला
सफलताओं की कहानियों पर लहालोट होना भी चाहिए. इससे भावी पीढ़ियों का उत्साह बड़ता है, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि सफलता की ये कहानियां अपने रचे जाने के दौर में कैसे सपने दिखाती हैं और बाद में वे कैसी हो जाती हैं.
Opinion
हर मुद्दा राजनीतिक लाभ के लिए नहीं
उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं, लिहाजा यहां राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकने के लिए अपनी रवायत के मुताबिक आगे आते रहेंगे. ऐसे में राज्य के प्रशासन और पुलिस की चुनौती बढ़ जाती है कि ऐसी राजनीति को हिंसक न होने देने के लिए कदम उठाए.
Opinion
गरीब कब तक बने रहें वोट बैंक
आजादी के अमृत वर्ष में भारतीय लोकतंत्र को इस सवाल से जूझना होगा कि आखिर वे कौन से विचार हैं, जो वंचित समुदायों, मलिन और गंदी बस्तियों के लोगों को वोट बैंक बनने को मजबूर करते रहे हैं?