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उमेश चतुर्वेदी

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तकनीक के भाषाई अनुवाद का बड़ा कदम

आइआइटी बंबई का उड़ान प्रोजेक्ट सात वर्ष के अध्ययन के बाद हकीकत बनने लगा है. इसके जरिये तमाम तकनीकी पुस्तकों का अनुवाद होने लगा है. यह अनुवाद अभी हिंदी, मराठी, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम, तमिल, गुजराती, उड़िया और बांग्ला में उपलब्ध है.

देशज भाव के आंदोलनकारी पत्रकार

अंग्रेजी के वर्चस्व के खिलाफ भारतीय भाषाओं की प्रतिष्ठा स्थापन की बात हो या फिर भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को गति देने का अवसर, वेद प्रताप वैदिक ने न सिर्फ कलम को हथियार बनाया बल्कि मंचों पर चढ़ अपनी वाणी से भी अपनी सक्रियता का परिचय दिया

नया वितान रचता विश्व हिंदी सम्मेलन

विश्व हिंदी सम्मेलन का यह हासिल मान सकते हैं कि इसकी वजह से हिंदी-प्रेमियों के जरिये दुनिया की इस तीसरी बड़ी भाषा के उत्थान के लिए माहौल जरूर बनता है.

स्थानीय भाषा बोध और संप्रेषणीयता

उदारीकरण के तीक्ष्ण विस्तार के दौर में जब बाजार ने जीवन के हर क्षेत्र में अपनी पैठ बनानी शुरू की, तो पत्रकारिता ने इसमें भी अपने विस्तार की उम्मीद खोज ली.

संकल्प व सेवा के बीच बड़ा फासला

सफलताओं की कहानियों पर लहालोट होना भी चाहिए. इससे भावी पीढ़ियों का उत्साह बड़ता है, लेकिन हमें यह भी याद रखना चाहिए कि सफलता की ये कहानियां अपने रचे जाने के दौर में कैसे सपने दिखाती हैं और बाद में वे कैसी हो जाती हैं.

हर मुद्दा राजनीतिक लाभ के लिए नहीं

उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं, लिहाजा यहां राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेंकने के लिए अपनी रवायत के मुताबिक आगे आते रहेंगे. ऐसे में राज्य के प्रशासन और पुलिस की चुनौती बढ़ जाती है कि ऐसी राजनीति को हिंसक न होने देने के लिए कदम उठाए.

गरीब कब तक बने रहें वोट बैंक

आजादी के अमृत वर्ष में भारतीय लोकतंत्र को इस सवाल से जूझना होगा कि आखिर वे कौन से विचार हैं, जो वंचित समुदायों, मलिन और गंदी बस्तियों के लोगों को वोट बैंक बनने को मजबूर करते रहे हैं?

भारतीय भाषाओं के प्रति नजरिया

संविधान निर्माताओं को भावी भारत की इस चुनौती का भान था. यही वजह रही कि संविधान के अनुच्छेद 348 के ही भाग दो में विशेष प्रावधान किया गया.

इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर सवाल

अगर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम ने अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझा, भूमिका को संयमित करने की कोशिश नहीं की, तो देर-सवेर उस पर न्यायपालिका का चाबुक चल सकता है.
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