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उमेश चतुर्वेदी

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भारतीय भाषाओं के प्रति नजरिया

संविधान निर्माताओं को भावी भारत की इस चुनौती का भान था. यही वजह रही कि संविधान के अनुच्छेद 348 के ही भाग दो में विशेष प्रावधान किया गया.

इलेक्ट्रॉनिक माध्यमों पर सवाल

अगर इलेक्ट्रॉनिक माध्यम ने अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझा, भूमिका को संयमित करने की कोशिश नहीं की, तो देर-सवेर उस पर न्यायपालिका का चाबुक चल सकता है.

जब बलिया हुआ आजाद

एक दो/ लाल पगड़ी फेंक दो/ एक दो तीन/ लाल पगड़ी छीन/ एक दो तीन चार/ लाल पगड़ी फाड़ डाल... बचपन में अलाव तापते हुए इन नारों को जब पहली बार सुना था, तो मन रोमांच से भर गया था.

यूं ही राजभाषा नहीं है हिंदी

ई-कॉमर्स से लेकर सॉफ्टवेयर तक की दुनिया में हिंदी को लेकर आग्रह बढ़ा है. बाजार ने जिंदगी की तमाम परिधियों में हिंदी की जरूरत और उपयोग को देखते हुए हिंदी भाषी कर्मियों की तरफ ध्यान देना शुरू किया है.

मीडिया और राष्ट्रभाषा के शिल्पकार पटेल

आजादी के पहले भारत में भले ही यूपीआई जैसी एक-दो एजेंसियां थीं, लेकिन विदेशी एजेंसियों जितनी उनकी धाक और पहुंच नहीं थी. पटेल को अंदाजा था कि आजाद भारत के स्वतंत्र प्रेस के लिए किफायती और भारतीय समाचार एजेंसियों की किफायती अखबारों तक पहुंच जरूरी होगी.

भाजपा पर भारी केजरीवाल की सियासत

आप के पार्षदों के लिए भ्रष्टाचार करना आसान नहीं होगा क्योंकि दिल्ली पुलिस समेत केंद्रीय एजेंसियों की निगाह उन पर रहेगी. नगर निगम में मजबूत विपक्ष बनकर उभरी भाजपा को विपक्षी राजनीति बखूबी करनी आती है.

घरेलू मोर्चे पर घिरे जिनपिंग की चाल

चीन में कोरोना महामारी एक बार फिर से पैर फैला रही है. अर्थव्यवस्था में गिरावट जारी है. विकास दर लगातार घट रही है. देश में बेरोजगारी बढ़ रही है. निर्माण क्षेत्र भयानक मंदी से जूझ रहा है.
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