सोशल मीडिया में हिंदी के बढ़ते प्रचलन ने भाषा के विकास के लिए संभावनाओं के नये द्वार खोले हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले समय में हिंदी का विकास इस बात पर निर्भर करेगा कि उस भाषा में कितने लोग कंप्यूटर जानते हैं. कुछ विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि हिंदी में सोशल मीडिया में एक रोचक प्रवृत्ति नजर आ रही है.
फेसबुक और ट्विटर पर आम हिंदी भाषी बड़ी संख्या में पहले आ गये, जबकि लेखकों, कवियों, कहानीकारों आदि रचनाकारों का आभासीय जगत में आना अपेक्षाकृत बाद में हुआ और यह सिलसिला अब भी पूरी तरह से गति नहीं पकड़ पाया है.
सोशल मीडिया ने बढ़ाया हिंदी का लेखन
ब्लाॅगिंग और अन्य सोशल मीडिया पर काफी समय से सक्रिय कलकत्ता विश्विवद्यालय में हिंदी के पूर्व प्राध्यापक जगदीश्वर चतुर्वेदी बताते हैं कि भविष्य में हिंदी सहित किसी भी भाषा के लिए कंप्यूटर साक्षरता बहुत जरूरी है. लोग कंप्यूटर के माध्यम से अपने विचारों, भावनाओं और रचनात्मकताओं को खुल कर अभिव्यक्त कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के आने के बाद हिंदी का लेखन बढ़ गया है. लोग अगर देवनागरी में लिखने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं, तो वे रोमन में लिख रहे हैं.
लेकिन कुछ सीमाएं भी हैं
लेकिन सोशल मीडिया की एक समस्या भी है. इसमें भाषा का प्रसार तो हो रहा है, लेकिन भाषा को लेकर लोगों के ज्ञान और भाषा के प्रति समझदारी में विस्तार नहीं हो रहा. आप गलत शब्द लिखते हैं तो कंप्यूटर या मोबाइल उसे अपने आप ठीक कर देता है. पहले व्यक्ति शब्दकोश देखता था. भाषा लिखने के प्रति सतर्क रहता था. यह हिंदी ही नहीं, अंग्रेजी के साथ भी हो रहा है.
रचनाएं इंटरनेट पर रखें साहित्यकार
चतुर्वेदी इस बात को नहीं मानते कि सोशल मीडिया पर लिखने से रचनात्मक लेखन पर असर पड़ता है. अगर आपको कंप्यूटर पर लिखना आता है, तो आपके लेखन का गुण और मात्रा दोनों कई गुना बढ़ गया है. उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर बहुत एक्टिव होने के बावजूद उनकी पिछले कुछ सालों में कई कहानियां आयी हैं. उनका मानना है कि साहित्यकारों को अपनी रचनाएं इंटरनेट पर अधिक से अधिक रखनी चाहिए क्योंकि इसमें पाठकों का एक विशाल वर्ग है. आपको पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों में लिखने से कोई नहीं रोक रहा. लेकिन यहां आपके पास रियल टाइम में पाठक मौजूद है. साथ ही बड़ी संख्या में ऐसे पाठक हैं जो साहित्य प्राय: नहीं पढ़ते. वह आपसे जुड़ सकते हैं. यहां लिखने में फायदा ज्यादा है, नुकसान कोई नहीं है.
हिंदी किसी भी लिहाज से खतरे में नहीं
हिंदी में एक अनूठे कोश ‘शब्दों का सफर’ के लेखक अजित वडनेरकर ने बताया कि वह सोशल मीडिया पर आज से दस साल पहले से ब्लाॅगिंग का दौर से देख रहे हैं. इसे देख कर कहा जा सकता है कि हिंदी किसी भी लिहाज से खतरे में नहीं है. कोई खतरा नहीं है. उन्होंने कहा, सोशल मीडिया आने के बाद सबसे अच्छी बात यह हुई है कि जिस आम आदमी को साहित्य बहुत दूर की चीज लगती थी और खुद के लिखे शब्दों को मुद्रित रूप में देखने की खुशी होती थी, उसे वह सब यहां मिला.
सोशल मीडिया ने हिंदी को संभाला है
अपने छपे हुए को देखने से हिंदी भाषी लोगों का आत्मविश्वास बहुत बढ़ जाता है. वडनेरकर ने कहा कि अगर सोशल मीडिया न होता, तो आज हिंदी वहीं होती जहां तथाकथित हिंदी सेवी उसे देखना चाहते थे. सोशल मीडिया ने हिंदी को संभाला है, इसमें दो राय नहीं और हिंदी की ताकत उभरकर आयी है. उन्होंने इस बात को माना कि तकनीकी ज्ञान से भाषा के विस्तार को सहायता मिलती है. पर हिंदी में एक और अलग बात देखने को मिली.
देर-सबेर ऑनलाइन आना पड़ेगा
अमूमन जिन्हें मध्यम वर्ग और निचला तबका माना जाता था, उस वर्ग के लोगों ने हिंदी के अधिकतर साहित्यकारों-लेखकों की तुलना में बहुत पहले ही सोशल मीडिया पर लिखना शुरू कर दिया. वडनेरकर ने कहा, हिंदी साहित्यकारों के शुद्धतावाद और आभिजात्य ने उन्हें सोशल मीडिया पर आने से रोके रखा. लेकिन अब तस्वीर बदल रही है. अब हम और आप भी अपने विचारों और भावनाओं को उस भाषा में अभिव्यक्त कर रहे हैं, जिसे वे साहित्यिक भाषा मानते हैं. इसलिए देर-सबेर उन्हें यहां आना पड़ेगा.
सोशल मीडिया पर लिखकर कई युवा लेखक बन गये
कविता कोश वेबसाइट के संस्थापक ललित कुमार का कहना है कि निश्चित तौर किसी भी भाषा को समसामयिक परिवेश के अनुरूप काम करना पड़ता है. कंप्यूटर आज के युग की आवश्यकता है. इसलिए हिंदी में कंप्यूटर ज्ञान से निश्चित तौर पर मदद मिलती है. ललित का कहना है कि सोशल मीडिया ऐसा मंच है जिस पर लिखकर कई युवा लेखक बन गये. लेकिन कई प्रतिष्ठित लेखक आज तक संभवत: अपनी मानसिक उलझन के कारण इस मंच पर नहीं आ पा रहे हैं. उन्हें इस माध्यम पर अभी तक सहजता महसूस नहीं हो रही.
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