पटना : तकनीक और इंटरनेट ने पूरी दुनिया को बदलकर रख दिया है. 3जी के बाद 4जी और हाईस्पीड डेटा ने हमें जितनी सहूलियत दी है उतनी ही यह परेशानी का सबब भी है. हालात यह हो गयी है कि हम इस वर्चुअल दुनिया को ही वास्तविक दुनिया समझने लगे हैं. इससे हम बाहर निकलना ही नहीं चाहते. बच्चे, युवा और बुजुर्ग सभी को इसकी लत लग चुकी है. जिसमें सबसे ज्यादा बच्चे शामिल हैं, जो किताब पलटने के बजाए दिन-रात मोबाइल पर वर्चुअल दुनिया में खाेए रहते हैं. युवाओं और बच्चों को इन दिनों वर्चुअल गेम पबजी (प्लेयर अननोन बैटल ग्राउंड) मानसिक रोगी बना रहा है. पेश है एक विशेष रिपोर्ट.
बच्चों में बढ़ा मोबाइल गेम का क्रेज
इन दिनों बच्चों में मोबाइल गेम का क्रेज इस कदर बढ़ गया है कि बच्चे घंटों मोबाइल में चिपके रहते हैं. हालत यह है कि कई बच्चे स्कूल जाने में भी आनाकानी करने लगे हैं. वर्चुअल गेम के शिकार बच्चे किसी प्रकार स्कूल चले भी गये तो क्लास में ध्यान नहीं दे पाते और होमवर्क छोड़ देते हैं. कुछ बच्चे अपने शिड्यूल टाइम में पढ़ाई तो कर लेते हैं, लेकिन बाकी के समय वे भी मोबाइल से चिपके दिखाई देते हैं. इसमें ज्यादातर बच्चे पबजी गेम के शौकीन हैं. हाल यह है कि बच्चे और युवा पबजी गेम के एडिक्ट हो चुके हैं और वे गेम छोड़ नहीं पा रहे.
पबजी ने उड़ा दी है पैरेंट्स की नींद : अभी हाल ही में बच्चों और युवाओं में ऑनलाइन मोबाइल गेम ‘ब्लू व्हेल’ के प्रति क्रेज बढा था. इसमें कई मामले भी सामने आये थे, परंतु इस गेम पर रोक के बाद स्थिति थोड़ी बेहतर हो गयी थी, पर इन दिनों पबजी ने सबकी नींद उड़ा दी है. आज इस गेम का क्रेज कक्षा 8 से लेकर 12वीं तक के बच्चों में सबसे अधिक दिखा जा रहा है. यही नहीं इसका युवा वर्ग में भी क्रेज है. पबजी खेलने वाले बच्चों व युवाओं से बात करने पर उन्होंने बताया कि इस गेम में आगे का टारगेट उन्हें खेलने के लिए मजबूर कर देता है.
चिकित्सकों की मदद ले रहे हैं अभिभावक : ऐसे में अन्य आउटडोर खेलों के बदले मोबाइल गेम की बढ़ती रुचि से अभिभावक काफी परेशान हैं. अभिभावकों ने इस समस्या का समाधान पाने के लिए चिकित्सकों की मदद लेनी शुरू कर दी है. अभिभावकों की मानें तो आज के बच्चे व युवा मैदान में खेलने वाले शारीरिक खेलों से दूर मोबाइल में लगे रहते हैं जिससे उनके शारीरिक व मानसिक विकास पर प्रभाव पड़ रहा है. यही नहीं मोबाइल के कारण पढ़ाई में भी ध्यान नहीं दे रहे और बच्चों का रिजल्ट प्रतिशत में गिरावट आ रही है. इसके अलावा बच्चे मोबाइल की दुनिया में ही सिमटते जा रहे हैं और अपनी प्राचीन सभ्यता और खेल को भूलते जा रहे हैं.
बेंगलुरु में आइटी की पढ़ाई कर रहे रौनक (काल्पनिक नाम) पबजी खेलने के दौरान अपने पैर को फ्रैक्चर कर लिया था. इसके बाद पैरेंट्स ने उसे घर बुला लिया. घर में भी वह दिन-रात मोबाइल पर गेम खेलता रहता था. मना करने पर वह आक्रोशित हो जाता था. अभी उसे इंसाइड ओरिएंटेड थेरेपी दी जा रही है.
डीएवी स्कूल की कक्षा 9वीं की छात्रा माया (काल्पनिक नाम) ने अचानक से स्कूल जाना छोड़ दिया. एक दिन अचानक उनकी मां ने उसकी हाथों से खून आते देखा तो परेशान हो गयी. उसके हाथ का नाखून टूट चुका था. पूछने पर वह गुस्सा करने लगी. लगातार बदलते बर्ताव को लेकर उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाया गया. थेरेपी दौरान पता चला कि पबजी गेम में उसे नेल पेंट करने के साथ नाखून से पकड़कर समान उठाना था. उसी क्रम में उसका नाखून टूट गया.
कंकड़बाग की रहने वाली सुविद्या (23) छुट्टियों में मायके आयी थी. अपने कजिन के साथ उसे इस गेम की लत लगी. इसमें वे अपने रिश्तेदारों के साथ गेम खेला करती थीं. गेम के दौरान वह सभी को चैलेंज देती थी. इसी दौरान उसने अपनी मां को अपने रिश्तेदार की मृत्यु को लेकर मनगढ़ंत बातें बतायी. इससे मां-बेटी की रिश्तों में दूरियां तो बढ़ी साथ ही वो काल्पनिक दुनिया में जीने लगी.
पबजी है हानिकारक
हाल ही में दिल्ली कमीशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स ने पबजी को हानिकारक घोषित किया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने अपने नये अध्याय में मोबाइल गेम की लत को मनो रोगी की श्रेणी में रखा गया है.
गुजरात सरकार ने अॉनलाइन गेम पबजी को राज्य में बैन कर दिया है.
पटना में भी कई पैरेंट्स मांग कर रहे हैं कि इस तरह के गेम को वैन कर दिया जाये.
पढ़ाई कर रहा प्रभावित
बच्चों की पढ़ाई-लिखाई काफी प्रभावित हो रही है. अगर बच्चे मोबाइल लेकर घंटों बैठे रहे, तो उनका नेचर भी चेंज होने लगता है. इसलिए पैरेंट्स की जिम्मेवारी बनती है कि वे थोड़े-थोड़े समय पर बच्चों की मोबाइल को चेक करते रहें.
– आनंद, बेली रोड
आज कल बच्चे घर से बाहर जाकर खेलना पसंद नहीं करते हैं. वे मोबाइल पर ही दिन-रात लगे रहते हैं. जो उनके भविष्य और हेल्थ के लिए काफी खतरनाक है. इसपर हम सबको ध्यान देने की जरूरत है. ऐसे गेम को बंद कर देना चाहिए.
-अनिता, पटेल नगर
मनोचिकित्सक की राय
पबजी गेम से जुड़े मामले मेरे पास लगातार आ रहे हैं. इसमें आठ साल से लेकर 23 साल के युवा शामिल हैं. जिसमें बच्चों में नींद की परेशानी, असल जिंदगी से दूरी, गेम छोड़ने पर गुस्सा करना, कमरे में खुद को बंद रखना, देर रात जाग कर गेम खेलने जैसी समस्या सामने आ रही हैं. इसमें बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों को भी काउंसेलिंग की जरूरत है. इंसाइड ओरिएंटेड थेरेपी की मदद से बच्चों को वास्तविक इमोशंस से परिचित कराया जाता है.
-डॉ मनोज कुमार, मनोचिकित्सक
आज कल कई तरह के गेम ऑनलाइन उपलब्ध हैं. जिसे बच्चे फ्री में डाउनलोड कर लेते हैं. पबजी भी इन्हीं फ्री गेम में से एक है. जो इन दिनों सोशल मीडिया में काफी वायरल हो रहा है. सबसे पहले 2017 में माइक्रोसॉफ्ट विंडोज के लिए इसे लांच किया गया था. फिर इसे एंड्रॉयड आइओएस के लिए भी लांच किया गया. आज ज्यादातर लोग इसे मोबाइल पर खेलते हैं. इस गेम को कोरियन वीडियो गेम बनाने वाली कंपनी ब्लू होल ने डेवलप किया है. अब 4जी का जमाना है. सभी के पास हाइ स्पीड इंटरनेट है. पबजी भी ऑनलाइन गेम है. इसे खेलने के लिए हाइ स्पीड, इंटरनेट या वाइफाई की जरूरत पड़ती है. जहां तक इन गेम को खेलने की बात है, तो किसी भी चीज का एक्सेज होना हार्मफूल है. वैसे बच्चों में गेम खेलने की जानकारी हो. यह गलत नहीं है, लेकिन किसी भी गेम की लत लगना गलत है. वह धीरे-धीरे इसके आदी हो जाते हैं. इसलिए पैरेंट्स को अपना रोल निभाना चाहिए. इन बातों पर ध्यान देना चाहिए. अगर बच्चों में कुछ ऐसी एक्टिविटी दिखे, तो एलर्ट हो जाना चाहिए. थोड़ी सतर्कता बरती जाये, तो बच्चों पर कंट्रोल किया जा सकता है.
-शिवानी नाथ, सोशल मीडिया मैनेजर
कई देशों में है प्रतिबंधित
चीन समेत कई देशों ने अपने यहां इस तरह के कई ऑनलाइन गेम को बंद कर रखा है. बच्चों पर पड़ते नकारात्मक प्रभाव को देखते हुए इस पर रोक लगायी गयी है. वहां यह ऐप काम करता ही नहीं है. यह करीब डेढ़ जीबी के आसपास का एेप है. भारत में भी बेंगलुरु स्कूल एसोसिएशन की ओर से एक एडवाइजरी जारी की गयी है. इसमें अभिभावकों और स्कूली शिक्षकों को बच्चों पर नजर रखने की सलाह दी गयी है.
ऐसे बर्बाद हो रही जिंदगी
इस खेल में दूसरे देशों के युवा भी एक साथ जुड़ कर खेलते हैं, इस कारण देर रात तक यह गेम खेला जाता है. इससे नींद प्रभावित होती है.
इसका असर स्कूली प्रदर्शन में भी दिखने लगता है
बच्चों के बीच पढ़ाई से अधिक यह डिस्कसन का टॉपिक होता जा रहा है.
यह गेम मारपीट वाला होता है. इससे बच्चों में नकारात्मक ऊर्जा विकसित होती है.
देर रात तक जागने के कारण युवाओं का स्लीपिंग पैटर्न बदल रहा है.
स्लीपिंग पैटर्न बदलने से ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसी समस्याओं का खतरा बढ़ रहा है.
कैसे नजर रखें
मोबाइल में अब एक ऐप आने लगा है. इससे आप मोबाइल पर खर्च किये गये समय का आकलन कर सकते हैं. यह ऐप यह बताता है कि आपके मोबाइल पर कितना समय किस काम पर लगा. मनोरंजन पर कितना समय खर्च हुआ, वाट्सएप पर कितना समय दिया और फेसबुक पर कितना समय दिया. इसका उपयोग कर समझ सकते हैं कि बच्चों ने कितना समय किस काम के लिए मोबाइल पर दिया.