क्या आप जानते हैं? डिजिटल दुनिया भी करती है कार्बन उत्सर्जन; आंखें खोल देगी यह रिपोर्ट
carbon emission by email - मेल के माध्यम जो एक चैट हम करते हैं, अक्सर उसमें चार ग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है. ठीक इसी तरह, एक स्पैम मेल से 0.3 ग्राम के बराबर उत्सर्जन होता है. मेल में भेजे जाने वाले अटैचमेंट आदि से तो 50 ग्राम कार्बन उत्सर्जन तक हो जाता है.
Carbon Emission by Email : दुनिया के बढ़ते तापमान का सबसे बड़ा कारण कार्बन उत्सर्जन है. दुनिया में सबसे ज्यादा उत्सर्जन चीन करता है, वह करीब 27 प्रतिशत कार्बन उत्सर्जन का कारण बना हुआ है. उसके बाद अमेरिका का स्थान है, जो 15 प्रतिशत उत्सर्जन करता है. अब तो भारत भी पीछे नहीं है, उत्सर्जन में यह तीसरे स्थान पर आता है. इसके कार्बन उत्सर्जन का प्रतिशत सात से आठ है. इन सब के अलावा जो कारण है, वह आश्चर्यचकित करने वाला है.
जब से दुनिया ने डिजिटल वर्ल्ड में प्रवेश किया है, तब से कार्बन उत्सर्जन का एक नया और बड़ा आयाम जुड़ गया है. दुनिया का ऐसा कोई भी कोना नहीं बचा है, जहां आज इंटरनेट मोबाइल, व्हाट्सऐप, फेसबुक, ईमेल का उपयोग न होता हो. एक शोध से यह बात सामने आयी है कि एक ई-मेल अकेले 15.9 ग्राम गैस का उत्सर्जन करता है. यह है तो आश्चर्य की बात, किंतु यह एक बड़ा सत्य भी है. एक इकोलॉजिकल रिपोर्ट के अनुसार, एक व्यक्ति प्रतिवर्ष लगभग 136 किलोग्राम की बराबरी का ईमेल भेजता है. चूंकि एक मेल से 15 ग्राम गैस उत्सर्जन होता है, उसके आधार पर यह आंकड़ा तैयार किया गया है. इस प्रकार, एक वर्ष में जितने मेल होते हैं, उससे गैस से चलने वाली एक कार करीब 200 मील चल सकती है.
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ब्रिटेन में हुए एक अध्ययन में पाया गया कि एक व्यक्ति अगर एक दिन में एक मेल भी कम करे, तो वह वर्षभर में 16,433 ग्राम कार्बन उत्सर्जन को कम कर सकता है, जो लंदन से मैड्रिड फ्लाइट में उत्पन्न कार्बन उत्सर्जन के बराबर है. इसी तरह, मेल के माध्यम जो एक चैट हम करते हैं, अक्सर उसमें चार ग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है. ठीक इसी तरह, एक स्पैम मेल से 0.3 ग्राम के बराबर उत्सर्जन होता है. मेल में भेजे जाने वाले अटैचमेंट आदि से तो 50 ग्राम कार्बन उत्सर्जन तक हो जाता है. एक आंकड़े के अनुसार, एक व्यक्ति जो 126 मेल भेजता है और उसमें 50 प्रतिशत मेल जब अटैचमेंट वाले होते हैं, तो उत्सर्जन की मात्रा 825 ग्राम प्रतिदिन की हो जाती है.
यहां इस बात का भी अध्ययन किया गया कि ब्रिटेन और भारत में किसी भी कार्य दिवस में डिजिटल माध्यमों से करीब 184 किलोग्राम गैस का उत्सर्जन होता है. इतना ही नहीं, तंजानिया जैसे छोटे से देश में भी एक व्यक्ति प्रतिदिन 184 किलोग्राम प्रतिवर्ष कार्बन उत्सर्जन करता है, जिसमें वह विभिन्न तरह के ऊर्जा का उपयोग करता है. अगर इन आंकड़ों पर विश्वास कर लिया जाए, तो हम सब को यह मान लेना चाहिए कि जब 2022 में 38.6 बिलियन टन हमने कार्बन उत्सर्जन किया है, तो भविष्य में जब डिजिटल वर्ल्ड हमारे पास एक बड़े टूल के रूप में उपलब्ध होगा, तब कार्बन उत्सर्जन के एक बहुत बड़े हिस्से के पीछे यही कारण जिम्मेदार होगा और यह हमें एक बड़े संकट की तरफ ले जायेगा.
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आप डिजिटल वर्ल्ड में जाकर जो कुछ भी करें, किसी भी रूप में कनेक्ट हों, पर यह सत्य है कि हम लगातार प्रकृति से डिस्कनेक्ट होते जा रहे हैं. क्योंकि हर गतिविधि की एक सीमा है और इस सीमा को हम छू चुके हैं, जिसे पार न करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है. मौसम का कहर आज इसी ओर इशारा कर रहा है. हम डिजिटल दुनिया से जुड़ तो चुके हैं, पर इससे जुड़ी आपदाओं के प्रति आंखें फेरे हुए हैं. यदि हम आज नहीं समझे, तो फिर आंखों को खुलने का अवसर नहीं मिलेगा.