Dhak-Dhak : रॉयल एनफील्ड की बाइक्स से रोड ट्रिप पर निकलेंगी दीया मिर्जा, फातिमा, रत्ना और संजना
फिल्म 'धक-धक' उम्र के अलग-अलग पड़ाव पर अपनी-अपनी चुनौतियों से जूझ रहीं समाज के अलग-अलग तबकों की चार औरतों की कहानी है, जो दिल्ली से सबसे ऊंची पहाड़ी चोटी खारदुंगला के सफर को बाइक से तय करने निकलती हैं.
नई दिल्ली : मोटरसाइकिल का सफर हमेशा आनंद देने वाला होता है. खासकर, जब इससे एडवेंचर वाले लंबी दूरी वाले रोड ट्रिप पर निकलते हैं, तो उसका कुछ और ही मजा है. हालांकि, आज के कुछ साल पहले तक केवल पुरुष ही मोटरसाइकिलों से लंबी दूरी का सफर करते देखे जाते थे, लेकिन महिलाएं भी उनसे कम नहीं हैं. भारत के सिनेमाघरों में जल्द ही रिलीज होने वाली मूवी ‘धक-धक’ में भी इसकी हीरोइनें भारत में ‘शान की सवारी’ मानी जाने वाली रॉयल एनफील्ड की मोटरसाइकिलों से एडवेंचर रोड ट्रिप पर निकलती नजर आएंगी. शुक्रवार को फिल्म ‘धक-धक’ की स्क्रीनिंग में भी इसकी एक्ट्रेसेज दीया मिर्जा, फातिमा सना शेख, रत्ना पाठक और संजना सांघी रॉयल एनफील्ड की मोटरसाइकिलों पर नजर आईं.
रॉयल एनफील्ड की मोटरसाइकिल पर स्क्रीनिंग
मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार, अपनी फिल्म की स्क्रीनिंग पर पहुंचीं ‘धक धक’ की सभी अभिनेत्रियों का वीडियो यूट्यूब पर मूवी टॉकीज ने अपने चैनल पर शेयर किया है. वीडियो में देखा जा सकता है कि चार में से तीन हीरोइनें दीया मिर्जा, संजना सांघी और रत्ना शाह अपनी रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिल पर पपराजी के सामने खड़ी थीं. इसके तुरंत बाद चौथी अभिनेत्री फातिमा शेख महिला बाइकर्स के विशाल काफिले के साथ स्क्रीनिंग स्थल पर पहुंचीं.
हीरोइनों ने रॉयल एनफील्ड की इन मोटरसाइकिलों की सवारी की
फिल्म ‘धक-धक’ की सभी चारों हीरोइनों ने रॉयल एनफील्ड मोटरसाइकिल पर सवार होकर राइडिंग कौशल का का प्रदर्शन किया. इसमें फातिमा शेख ने मेटियोर 350 और दीया मिर्जा ने बुलेट 350 की सवारी की, जबकि रतन शाह और संजना सांघी दोनों ने क्लासिक 350 को चुना. रॉयल एनफील्ड की मेटियोर 350 अभी हाल ही में लॉन्च हुई है, जबकि बुलेट 350 और क्लासिक 350 सभी जे-सीरीज 349 सीसी इंजन द्वारा संचालित हैं, जो 20 पीएस की पावर और 27 एनएम का टॉर्क जेनरेट करता है.
मोटरसाइकिल से महिलाओं की रोड ट्रिप पर आधारित है फिल्म की कहानी
दरअसल, फिल्म ‘धक-धक’ उम्र के अलग-अलग पड़ाव पर अपनी-अपनी चुनौतियों से जूझ रहीं समाज के अलग-अलग तबकों की चार औरतों की कहानी है, जो दिल्ली से सबसे ऊंची पहाड़ी चोटी खारदुंगला के सफर को बाइक से तय करने निकलती हैं. सात दिन के इस चुनौतीपूर्ण सफर में इन चारों की जिंदगियां, उनकी सोच किस तरह बदलती है, वह देखने लायक है. एक बारगी फिल्म आपको जोया अख्तर की लड़कों के रोड ट्रिप वाली फिल्म ‘जिंदगी मिलेगी ना दोबारा’ के फीमेल वर्जन वाला अहसास भी दिलाती है, लेकिन यहां ये औरतें अपनी मौजूदा जिंदगी से ऊबकर विदेशी एडवेंचर पर निकलीं अमीर घरों की औलादें नहीं हैं.
तरुण डुडेजा ने फिल्म के निदेशक
तरुण डुडेजा निर्देशित और पारिजात जोशी के साथ मिलकर लिखी ये कहानी एक रोमांचक सफर के बहाने आम मिडिल क्लास औरतों के साथ घर से सड़क तक, वर्कप्लेस से लेकर बिस्तर तक में होने वाले भेदभावों पर प्रभावी ढंग से टिप्पणी करती है. अच्छी बात ये है कि एक उम्दा महिला प्रधान फिल्म होने के साथ ही यह पुरुषों को केवल विलेन के रूप में पेश नहीं करती, बल्कि इस दुरूह राह में एक विदेशी मर्द इन औरतों का मददगार बनता है, तो राह भटकी मंजरी को एक सरदार जी बड़ी सीख दे जाते हैं कि हम इंसान अपनी प्रॉब्लम में टेंशन और पड़ोसी की प्रॉब्लम में सॉल्यूशन ढूंढते हैं.