India to Launch its Own Web Browser: हम सभी अपने डेस्कटॉप/लैपटॉप और स्मार्टफोन पर इंटरनेट ब्राउजिंग का इस्तेमाल तो करते ही हैं. अगर हम एक एंड्रॉइड यूजर हैं तो ब्राउजिंग के लिए गूगल क्रोम का इस्तेमाल करते हैं जबकि, अगर हम एक एपल यूजर हैं तो हमें सफारी ब्राउजर का इस्तेमाल करना पड़ता है. मौजूदा समय में इंटरनेट ब्राउजर की दुनिया में अमेरिकी कंपनियों का राज चल रहा है. हालांकि, ऐसा बिलकुल नहीं है कि इंडियन टेक कंपनियों के पास खुद के ब्राउजर नहीं है लेकिन, बात जब आती है ब्राउजिंग की तो इसके लिए हम गूगल क्रोम या फिर एपल सफारी का ही इस्तेमाल करते हैं. सामने आयी जानकारी के अनुसार अगर भारत अपना खुद का वेब ब्राउजर लॉन्च कर देता है तो एपल और गूगल का राज काफी हद तक कम हो सकता है. सामने आयी जानकारी के अनुसार कंपनी ने इस ब्रॉउजर को लॉन्च करने की तैयारी पूरी कर लिहै और इसके साथ ही वेब ब्राउजर चैलेंज की घोषणा भी कर दी है. अब देखने वाली बात यह होगी कि कंपनी इस ब्राउजर को यूजर्स के सामने कब तक पेश कर पाती है.
आपकी जानकारी के लिए बता दें भारत सरकार ने रक्षा आईटी हार्डवेयर और फार्मा में स्वदेशी क्षमता विकास पर जोर देने के लिए एक इंडियन वेब ब्राउजर डेवलप करने के लिए ओपन चैलेंज प्रतियोगिता की शुरुआत भी की है. जानकारी के मुताबिक़ नई दिल्ली में इंडियन वेब ब्राउजर डेवलपमेंट चैलेंज सर्टिफिकेशन अथॉरिटी के कंट्रोलर अरविंद कुमार ने मामले पर बात करते हुए बताया कि, अब समय आ गया है कि आभासी दुनिया का सबसे महत्वपूर्ण हथियार, वेब ब्राउजर, भारत में डेवलप किया जाए.
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मौजूदा समय में देखें तो इंडियन वेब ब्राउजर मार्केट में अमेरिकी कंपनियों का दबदबा रहा है. अगर आप नहीं जानते हैं तो बता दें गूगल क्रम से लेकर फायरफॉक्स तक सभी अमेरिकी कंपनियों के ब्राउजर हैं और इनके साथ डेटा लीक का खतरा हमेशा बना हुआ रहता हैं. डेटा लीक का खतरा इसलिए ज्यादा है क्योंकी इनके जो सर्वर हैं वे भारत के बाहर हैं. बता दें सरकार की तरफ से शुरू की गयी इंडियन वेब ब्राउजर डेवलपमेंट चैलेंज में कोई भी स्टार्टअप हिंसा ले सकता है और इसके लिए किसी भी तरह की कोई पाबंदी नहीं लगायी गयी हैं. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग को इस प्रतियोगिता के लिए एंकर एजेंसी के तौर पर नियुक्त किया गया है.
मामले पर बात करते हुए CDAC के एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर ने बताया कि, इंडिया इंटरनेट यूजर्स की सबसे बड़ी संख्या वाले देशों में से एक है और यहां विदेशी कंपनियों ने कब्ज़ा जमा रखा है. ऐसा होने की वजह से ब्राउजर के सर्च रिजल्ट को ये कंपनियां अपने हिसाब से बदल सकती है. आगे बताते हुए उन्होंने कहा कि, कैशे मेमोरी और कूकीज की मदद से यूजर्स को ट्रैक भी किया जा सकता है जो किसी भी तरह से सही नहीं है. केवल यहीं अपने बयान में आगे खुलासा करते हुए उन्होंने यह भी बताया कि विदेशी ब्राउजर के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि वे रूट स्टोर में इंडियन सर्टिफिकेशन एजेंसियों को शामिल नहीं किया जाता है. रुट स्टोर को ही ट्रस्ट स्टोर कहा जाता है और इसी में ऑपरेटिंग सिस्टम और एप्लीकेशन की जानकारी दी जाती है. इन जानकारियों से ही आपको पता चलेगा कि वे सिक्योर और सुरक्षित हैं या नहीं. इन्हीं कुछ बातों को ध्यान में रखते हुए भारत ने अपने खुद के ब्राउजर के डेवलप करने का फैसला लिया है.