भारत में ईवी बैटरियों का बढ़ेगा उत्पादन, सरकार ने PLI के तहत दोबारा बोलियां आमंत्रित की

हैवी इंडस्ट्री मंत्रालय की ओर से बाकी की 20 गीगावॉट क्षमता के लिए बोली प्रक्रिया फिर से शुरू होने से पहले 24 जुलाई, 2023 को उद्योग प्रतिनिधियों के साथ उनकी राय और सुझाव जानने के लिये संबंधित पक्षों के बीच विचार-विमर्श की सुविधा प्रदान करेगा.

By Prabhat Khabar Digital Desk | July 21, 2023 12:00 PM

नई दिल्ली : भारत में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) में इस्तेमाल होने वाली बैटरी (एंडवांस्ड केमेस्ट्री सेल) का उत्पादन बढ़ाने के लिए केंद्र की मोदी सरकार ने उत्पादन संबंधी प्रोत्साहन योजना (PLI Scheme) के तहत बोलियां आमंत्रित की है. समाचार एजेंसी भाषा की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार ने गुरुवार को ‘एंडवांस्ड केमेस्ट्री सेल’ विनिर्माण को लेकर उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत फिर से बोलियां आमंत्रित करने की घोषणा की. कुल 18,100 करोड़ रुपये के इस कार्यक्रम के तहत सरकार का लक्ष्य शेष 20 गीगावॉट घंटा क्षमता (जीडब्ल्यूएच) की अत्याधुनिक रासायनिक बैटरी (एंडवास्ड केमिस्ट्री सेल-एसीसी) विनिर्माण को बढ़ावा देना है. भारत सरकार ने पर्यावरण प्रदूषण को और जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के साथ ही वर्ष 2070 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य निर्धारित किया है.

उद्योग प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करेगी सरकार

हैवी इंडस्ट्री मंत्रालय की ओर से बाकी की 20 गीगावॉट क्षमता के लिए बोली प्रक्रिया फिर से शुरू होने से पहले 24 जुलाई, 2023 को उद्योग प्रतिनिधियों के साथ उनकी राय और सुझाव जानने के लिये संबंधित पक्षों के बीच विचार-विमर्श की सुविधा प्रदान करेगा. मंत्रालय की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, मंत्रालय बोली दस्तावेजों को अंतिम रूप देने और जल्द से जल्द इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है. इस नीलामी प्रक्रिया के साथ संभावित आवेदक ‘एंडवास्ड केमिस्ट्री सेल’ के विनिर्माण के लिए संयंत्र लगाने के लिए अपनी बोलियां जमा कर सकते हैं. इससे उन्हें एसीसी पीएलआई योजना के तहत प्रोत्साहन के लिए पात्रता प्राप्त करने में मदद मिलेगी.

क्या है एंडवास्ड केमिस्ट्री सेल

बताते चलें कि रासायनिक बैटरी (एंडवास्ड केमिस्ट्री सेल-एसीसी) नई पीढ़ी की उन्नत भंडारण प्रौद्योगिकी है. यह विद्युत ऊर्जा को इलेक्ट्रोकेमिकल या रासायनिक ऊर्जा के रूप में संग्रह कर सकती है और जरूरत पड़ने पर इसे वापस विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर सकती है. इसका प्रमुख रूप से इलेक्ट्रिक वाहनों, ग्रिड स्थिरता बनाए रखने, छतों पर लगने वाली सौर परियोजनाओं, उपभोक्ता इलेक्ट्रॉनिक्स आदि में उपयोग किया जा सकता है.

भारत का 2070 तक जीरो कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य

भारत ने 2070 तक शुद्ध रूप से शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है. इसके साथ ही, नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति प्रतिबद्धता के साथ ऊर्जा भंडारण की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है. सरकार ने 18,100 करोड़ रुपये के बजटीय परिव्यय के साथ विनिर्माण क्षमता को बढ़ाने के लिए एसीसी की 50 गीगावॉट घंटे (जीडब्ल्यूएच) की विनिर्माण क्षमता प्राप्त करने के लिए पीएलआई योजना ‘एसीसी बैटरी स्टोरेज पर राष्ट्रीय कार्यक्रम’ को मंजूरी दी थी. इस पहल के तहत सरकार का जोर घरेलू मूल्यवर्धन हासिल करने के साथ ही यह सुनिश्चित करना है कि देश में बैटरी विनिर्माण की लागत विश्व स्तर पर प्रतिस्पर्धी हो.

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2030 तक 2600 गीगावाट तक पहुंच जाएगी मांग

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में वर्ष 2010 और 2018 के बीच वार्षिक बैटरी मांग में 30 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई, जो 2018 में कुल 180 गीगावाट तक पहुंच गई. इसके साथ ही, इसकी विकास दर अनुमानित 25 फीसदी पर बनाए रखने की उम्मीद है, जिसके परिणामस्वरूप 2030 में मांग 2600 गीगावाट तक पहुंच जाएगी. इसके अलावा, लागत में कटौती से मांग 3562 गीगावॉट तक बढ़ने की उम्मीद है. इलेक्ट्रिक बैटरी उद्योग की इस उच्च वृद्धि दर के महत्वपूर्ण कारणों में परिवहन का विद्युतीकरण और बिजली ग्रिड में बड़े पैमाने पर स्थापना करना शामिल है.

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इलेक्ट्रिक बैटरियों का कहां होता है इस्तेमाल

इलेक्ट्रिक बैटरियां इलेक्ट्रिक वाहनों (वाहन-टू-ग्रिड) और घरेलू ऊर्जा भंडारण में उपयोग की जाने वाली स्मार्ट मीटरिंग के साथ और जो मांग प्रतिक्रिया के लिए स्मार्ट ग्रिड से जुड़ी होती हैं, स्मार्ट पावर सप्लाई ग्रिड में सक्रिय भागीदार हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि इन बैटरियों का नए तरीके से दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा, ये बैटिरयों ऊर्जा भंडारण लागत को भी कम करती हैं और लंबे जीवन के कारण प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन के प्रभावों को भी कम करती हैं. ग्रिड स्केल ऊर्जा भंडारण में ग्रिड या बिजली संयंत्र से ऊर्जा एकत्र करने और संग्रहीत करने के लिए बैटरियों के बड़े पैमाने पर उपयोग की परिकल्पना की गई है और फिर जरूरत पड़ने पर बिजली या अन्य ग्रिड सेवाएं प्रदान करने के लिए बाद में उस ऊर्जा का निर्वहन किया जाता है.

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