प्लास्टिक की सड़कों को उखाड़ नहीं पाता बारिश का पानी, सैकड़ों मील दूर भागते हैं गड्ढे
Plastic Roads: प्लास्टिक और बिटुमिन दोनों पेट्रोलियम से बने होते हैं और ये वस्तुएं एक दूसरे से अच्छी तरह चिपक जाती हैं. वे सड़कों की मजबूती और उम्र बढ़ाते हैं.
Plastic roads: आप अपने गांव-मोहल्ले, कॉलोनियों और गली की सड़कों पर पड़े गड्ढों से हमेशा परेशान रहते हैं? नगर निगम, नगरपालिका या फिर पंचायत आपकी सड़कों को मरम्मत कराते हैं, लेकिन बरसात के पानी में फिर गड्ढा बन जाता है. यह सिलसिला हर बरसात के बाद देखने को मिलता है. छोटी सड़कों की बात तो छोड़िए, हाईवे और नेशनल हाईवे भी बरसात के पानी से खराब हो जाते हैं और उन पर भी गड्ढे पर पड़ जाते हैं. अब आखिर इसका हल क्या है? तो हम आपको बता दें कि इसका हल प्लास्टिक की सड़कें हैं. अब आप कहेंगे कि वह कैसे? तो फिर आइए जानते हैं.
आपने प्लास्टिक से बनी बोतलें, बैग, खिलौने और कई अन्य चीजें देखी होंगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि प्लास्टिक से सड़कें भी बनाई जाती हैं? अगर नहीं जानते हैं, तो जान जाइए. भारत में प्लास्टिक से सड़कें भी बनाई जाती है. ऐसी सड़कें आपके वाहन और पर्यावरण दोनों के लिए वरदान हैं. तारकोल और कंक्रीट के मिश्रण से बनने वाली सड़कों के प्लास्टक की सड़कें काफी मजबूत और टिकाऊ होती हैं. इसके साथ ही, हमारे आसपास प्लास्टिक के कचरों का ढेर भी जमा नहीं रहता है.
डॉ राजगोपालन वासुदेवन: द प्लास्टिक मैन ऑफ इंडिया
भारत में सबसे पहले वैज्ञानिक डॉ राजगोपालन वासुदेवन ने सड़क निर्माण में प्लास्टिक के कचरों के इस्तेमाल से सड़क बनाने की बात कही थी. डॉ वासुदेवन को भारत के प्लास्टिक मैन के रूप में जाना जाता है. वर्ष 2018 में उन्हें भारत के चौथे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था. तमिलनाडु के मदुरै में त्यागराजर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग में प्रोफेसर डॉ वासुदेवन के शोध क्षेत्र में कचरा प्रबंधन शामिल है. डॉ वासुदेवन ने अधिक मजबूत, लचीली और किफायती सड़कें बनाने के लिए प्लास्टिक कचरे के रीसाइक्लिंग का तरीका ईजाद किया. उनका यह तरीका अब अक्सर ग्रामीण भारत में प्रयोग किया जाता है.
डॉ राजगोपालन वासुदेवन ने किया शोध
सेंटर फॉर स्टडीज ऑन सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट (सीएसएसडब्लूएम) में डॉ वासुदेवन और उनकी टीम ने 2001 से सड़क निर्माण में प्लास्टिक के इस्तेमाल पर शोध किया है. 2002 में उन्होंने एक प्रयोग किया, जहां उन्होंने इस्तेमाल किए गए प्लास्टिक को गर्म बिटुमेन के साथ मिलाया और इस मिश्रण को पत्थर के ऊपर डाला. उन्होंने इस मिश्रण का इस्तेमाल कॉलेज कैंपस के अंदर सड़क बनाने के लिए किया. यह तकनीक इतनी सफल रही कि कॉलेज को 2006 में इसका पेटेंट मिल गया.
भारत में कब बनी पहली प्लास्टिक की सड़क
प्लास्टिक की सड़कें प्लास्टिक से बने उत्पादों को रीसाइक्लिंग करने का एक शानदार तरीका बन गई हैं. डॉ. राजगोपालन वासुदेवन के अनुसंधान के बाद सबसे पहले चेन्नई में नई तकनीक से प्लास्टिक की सबसे पहली सड़क बनाई गई थी. चेन्नई में नगरपालिका ने वर्ष 2004 में 1000 किलोमीटर लंबी प्लास्टिक की सड़कों का निर्माण कराया था. यह एक प्रयोग था.
नितिन गडकरी ने 2021 तक बनवाई नेशनल हाईवे
हालांकि, भारत में प्लास्टिक की सड़क के निर्माण में वर्ष 2015 से ही तेजी आई, जब केंद्र सरकार ने प्लास्टिक के कचरों से सड़क निर्माण कराने का निर्देश दिया. केंद्र सरकार की योजना के अनुसार, मेट्रो क्षेत्रों के आसपास बिटुमेन और प्लास्टिक के मिश्रण से सड़कों को निर्माण किया जाना था. बाद में सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने प्लास्टिक कचरों का इस्तेमाल करते हाईवे के निर्माण की शुरुआत की. जुलाई 2021 तक इस तकनीक का इस्तेमाल करके 703 किलोमीटर राष्ट्रीय राजमार्ग बनाए जा चुके हैं.
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सड़क बनाने में कैसे किया जाता है प्लास्टिक का इस्तेमाल
प्लास्टिक की सड़कों के निर्माण में प्लास्टिक प्लास्टिक कैरी बैग, मग, प्लास्टिक कप, और चिप्स, कुकीज और चॉकलेट के लिए प्लास्टिक पैकेजिंग जैसी कई बेकार वस्तुओं का इस्तेमाल सड़क बनाई जाती हैं. ग्रामीण विकास मंत्रालय ने ग्रामीण सड़कों के निर्माण में प्लास्टिक कचरे के इस्तेमाल को लेकर एक सर्कुलर भी जारी किया है, जिसे कैरी बैग, अधिकतम 60 माइक्रोन (मोटाई) के कप, किसी भी मोटाई के कठोर फोम और नरम फोम, लेमिनेटेड प्लास्टिक, -60 माइक्रोन तक की मोटाई वाली लेपित पैकिंग सामग्री और एल्यूमीनियम का इस्तेमाल करके सड़क बनाया जा सकता है. हालांकि, सड़कों के निर्माण के लिए पॉली विनाइल क्लोराइड (पीवीसी) या फ्लक्स शीट के इस्तेमाल की इजाजत नहीं दी गई है.
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प्लास्टिक की सड़कें कैसे बनती हैं?
सड़क बनाने के लिए प्लास्टिक का इस्तेमाल करना एक जटिल प्रक्रिया है, लेकिन काफी दिलचस्प है. प्लास्टिक की सड़कें बनाने की प्रक्रिया में पहला कदम प्लास्टिक की वस्तुओ का छोटे-छोटे टुकड़े तैयार करना है. इसके बाद प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़ों को कुचल दिया जाता है. इसके बाद सभी कुचले हुए टुकड़ों को गर्म बजरी के साथ मिला दिया जाता है. इस मिश्रण को 160 डिग्री सेल्सियस के तापमान तक गर्म किया जाता है, ताकि सारा प्लास्टिक पिघल जाए. फिर इसे गर्म डामर सड़कों पर डाला जाता है. इस तरह सड़कें पक्की हो जाती हैं.
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प्लास्टिक से बनी सड़कें कितनी सुरक्षित
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने प्लास्टिक से बनी सड़कों की समीक्षा की और उसमें पाया कि बनाए जाने के चार साल बाद भी प्लास्टिक की इन सड़कों को बरसात और गर्मी के प्रभाव से अधिक नुकसान नहीं हुआ. इन सड़कों पर कोई उखड़ाव, छोटे-बड़े या फिर गहरे गड्ढे दिखाई नहीं दिए. आम तौर पर तारकोल से बनी सड़कें बरसात के मौसम में भारी बारिश की वजह से खराब हो जाती हैं, लेकिन प्लास्टिक की सड़कों के साथ वैसा नहीं होता.
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प्लास्टिक की सड़कों के फायदे
चूंकि, प्लास्टिक और बिटुमिन दोनों पेट्रोलियम से बने होते हैं और ये वस्तुएं एक दूसरे से अच्छी तरह चिपक जाती हैं. इसीलिए वे सड़कों की मजबूती और उम्र बढ़ाते हैं. इसके साथ ही उनमें वजन सहने की क्षमता अधिक होती है. प्लास्टिक की सड़कें बारिश से होने वाले नुकसान के प्रति प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाती हैं. सबसे बड़ी बात यह है कि प्लास्टिक से बने हाईवे पर्यावरण सुरक्षा के लिए फायदेमंद हैं.