Loading election data...

Space Junk: इंसान ने चांद को भी नहीं छोड़ा, अब अंतरिक्ष का कचरा धरती के लिए बना बड़ा खतरा

Space garbage - चंद्रमा पर और अधिक देशों के उतरने के साथ, पृथ्वी पर वापस आने वाले लोगों को यह सोचना होगा कि चंद्रमा की सतह और कक्षा में छोड़े गए सभी लैंडर, अपशिष्ट और अन्य मलबे का क्या होगा?

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 4, 2023 12:27 PM

Garbage In Space : दुनिया की सभी स्पेस एजेंसियां अंतरिक्ष के क्षेत्र में रोज नये कीर्तिमान रच रही हैं. इससे कितनी क्रांति आयेगी इसका तो पता नहीं, लेकिन सबने मिलकर अंतरिक्ष के लिए बड़ी परेशानी खड़ी कर दी है. अभी चंद्रमा पर बहुत सारा कचरा है – जिसमें मानव अपशिष्ट के लगभग 100 बैग शामिल हैं. साथ ही ऐसे में जब दुनिया भर के देश चंद्रमा की यात्रा कर रहे हैं, चंद्रमा की सतह और पृथ्वी की कक्षा दोनों में और भी कचरा एकत्रित होने वाला है. अगस्त 2023 में, रूस का लूना-25 यान चंद्रमा की सतह पर दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जबकि भारत का चंद्रयान-3 मिशन दक्षिणी ध्रुवीय क्षेत्र में सफलतापूर्वक उतरा, जिससे भारत चंद्रमा पर उतरने वाला चौथा देश बन गया.

चंद्रमा पर और अधिक देशों के उतरने के साथ, पृथ्वी पर वापस आने वाले लोगों को यह सोचना होगा कि चंद्रमा की सतह और कक्षा में छोड़े गए सभी लैंडर, अपशिष्ट और अन्य मलबे का क्या होगा? मैं खगोल विज्ञान का प्रोफेसर हूं, जिसने अंतरिक्ष यात्रा के भविष्य, पृथ्वी से बाहर हमारे भविष्य, अंतरिक्ष में संघर्ष और अंतरिक्ष अन्वेषण की नैतिकता पर लेख लिखे हैं. कई अन्य अंतरिक्ष विशेषज्ञों की तरह, मैं अंतरिक्ष मलबे के संबंध में शासन की कमी को लेकर चिंतित हूं.

Also Read: Aditya L1: भारत से पहले इन देशों ने भी भेजे सूर्य यान, जानिए दूसरे सोलर मिशन से कितना अलग है आदित्य एल1

अंतरिक्ष में सघनता बढ़ रही है

लोग अंतरिक्ष को विशाल और खाली समझते हैं, लेकिन पृथ्वी के निकट के वातावरण में सघनता होने लगी है. अगले दशक में सरकारों और स्पेसएक्स एवं ब्लू ओरिजिन जैसी निजी कंपनियों द्वारा 100 से अधिक चंद्र मिशन की योजना बनायी गई है.

पृथ्वी के निकट की कक्षा पृथ्वी और चंद्रमा के बीच के स्थान से भी अधिक सघन है. यह चंद्रमा तक 240,000 मील की तुलना में सीधे 100 से 500 मील तक है. वर्तमान में पृथ्वी के कुछ सौ मील के दायरे में लगभग 7,700 उपग्रह हैं.

Also Read: Aditya L1: भारत के पहले सूर्य मिशन में अहम भूमिका निभाएगा LPSC Propulsion System, जानें क्या चीज है यह

यह संख्या 2027 तक कई लाख तक बढ़ सकती है. इनमें से कई उपग्रहों का उपयोग विकासशील देशों में इंटरनेट पहुंचाने या पृथ्वी पर कृषि और जलवायु की निगरानी के लिए किया जाएगा. स्पेसएक्स जैसी कंपनियों ने प्रक्षेपण लागत में काफी कमी लाने की वजह से इससे संबंधित गतिविधि में बढ़ोतरी होने की संभावना है.

अंतरिक्ष प्रक्षेपण विशेषज्ञ जॉनाथन मैकडॉवेल ने ‘स्पेस.कॉम’ को बताया, यह एक अंतरराज्यीय राजमार्ग की तरह होगा, बर्फीले तूफान में व्यस्त समय में हर कोई बहुत तेज गति से वाहन चला रहा होगा.

Also Read: ISRO Solar Mission : 15 लाख किलोमीटर का सफर तय करने के बाद सूरज को कैसे समझेगा Aditya L1 ?

अंतरिक्ष कचरे की समस्या

यह सारी गतिविधि जोखिम और कचरा उत्पन्न करती है. मनुष्यों ने चंद्रमा पर बहुत सारा कचरा छोड़ दिया है, जिसमें 50 से अधिक ‘क्रैश लैंडिंग’ के रॉकेट बूस्टर जैसे अंतरिक्ष यान के हिस्से, लगभग 100 बैग मानव अपशिष्ट और अन्य विविध वस्तुएं शामिल हैं. इसमें हमारा लगभग 200 टन कचरा शामिल होता है.

चूंकि चंद्रमा का किसी का मालिकाना अधिकार नहीं है, इसलिए इसे साफ सुथरा रखने की जिम्मेदारी भी किसी की नहीं है.

Also Read: Aditya L1 Budget : 615 करोड़ रुपये में चांद पर उतरा चंद्रयान, ISRO को सूरज तक पहुंचने में कितना खर्च आयेगा?

पृथ्वी की कक्षा में अव्यवस्था में निष्क्रिय अंतरिक्ष यान, बेकार रॉकेट बूस्टर और अंतरिक्ष यात्रियों द्वारा छोड़ी गई वस्तुएं जैसे दस्ताना, रिंच और टूथब्रश शामिल हैं. इसमें पेंट के टुकड़े जैसे मलबे के छोटे टुकड़े भी शामिल हैं.

वर्ष 1978 में, नासा के वैज्ञानिक डोनाल्ड केसलर ने एक ऐसे परिदृश्य का वर्णन किया जहां परिक्रमा कर रहे मलबे के टुकड़ों के बीच टकराव से अधिक मलबा बनता है, और मलबे की मात्रा तेजी से बढ़ती है, जो संभावित रूप से पृथ्वी के निकट की कक्षा को अनुपयोगी बना देती है. विशेषज्ञ इसे ‘केसलर सिंड्रोम’ कहते हैं.

Also Read: Chandrayaan 3 की लैंडिंग के मौके पर जानिए धरती ‘मां’ से कितने अलग हैं अपने चंदा ‘मामा’?

वहां कोई भी प्रभारी नहीं है

वर्ष 1967 की संयुक्त राष्ट्र बाह्य अंतरिक्ष संधि कहती है कि कोई भी देश चंद्रमा या उसके किसी भी हिस्से का ‘स्वामित्व’ नहीं कर सकता और आकाशीय पिंडों का उपयोग केवल शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए किया जाना चाहिए. हालांकि संधि कंपनियों और व्यक्तियों के बारे में मौन है, और इसमें इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है कि अंतरिक्ष संसाधनों का उपयोग कैसे किया जा सकता है और कैसे नहीं.

वर्ष 1979 के संयुक्त राष्ट्र चंद्रमा समझौते में माना गया कि चंद्रमा और उसके प्राकृतिक संसाधन मानवता की साझी विरासत हैं. हालांकि, अमेरिका, रूस और चीन ने इस पर कभी हस्ताक्षर नहीं किये.

Also Read: Chandrayaan-3 : जानें चंद्रयान-3 से जुड़ी वो हर खास बात, जो जानना चाहते हैं आप

विनियमन की कमी के कारण, अंतरिक्ष कचरा ‘साझा त्रासदी’ का एक उदाहरण है, जहां कई हितधारकों की एक साझा संसाधन तक पहुंच होती है, और यह सभी के लिए अनुपयोगी हो सकता है, क्योंकि कोई भी हितधारक किसी अन्य को संसाधन के अत्यधिक दोहन करने से नहीं रोक सकता है.

वैज्ञानिकों का तर्क है कि साझा त्रासदी से बचने के लिए, कक्षीय अंतरिक्ष पर्यावरण को संयुक्त राष्ट्र द्वारा संरक्षण के योग्य वैश्विक साझा के रूप में देखा जाना चाहिए.

(‘द कन्वरसेशन’ में प्रकाशित यह लेख एरिजोना विश्वविद्यालय में कार्यरत क्रिस इम्पे ने लिखा है, जिसे पीटीआई-भाषा द्वारा हमें उपलब्ध कराया गया है)

Also Read: Chandrayaan-3 की सफलता भारत के लिए कितनी अहम है? कहते हैं टॉप साइंटिस्ट्स- दुनिया के सामने जमेगी अपनी धाक

Next Article

Exit mobile version