नई दिल्ली: दुनिया की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी टोयोटा किर्लोस्कर मोटर की इलेक्ट्रिक कारों की बैटरी सिर्फ 10 मिनट में फुल चार्ज हो जाएगी और फिर 1200 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय कर पाएगी. साल 2023 के अक्टूबर में टोयोटा ने यह घोषणा करके पूरी दुनिया को चौंका दिया था. उसने दावा किया कि वह जल्द ही इलेक्ट्रिक कारों में इस्तेमाल होने वाली ऐसी बैटरी बनाएगी, जिससे फुल चार्ज होने पर 1200 किलोमीटर से अधिक की दूरी का सफर तय किया जा सकेगा. टोयोटा कंपनी के प्रमुख कोजी साटो ने टोक्यो में यह घोषणा करते हुए कहा कि यह इलेक्ट्रिक कार ही नहीं बल्कि वाहन उद्योग के लिए एक क्रांतिकारी आविष्कार है. उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिक कार के लिए बनाई जा रही यह नई बैटरी कार मैन्यूफैक्चरिंग इंडस्ट्री को नए भविष्य की तरफ ले जाएगी. लेकिन, क्या यह सच्चाई है कि टोयोटा इलेक्ट्रिक कारों के लिए जो बैटरी बनाने जा रही है, सिर्फ 10 मिनट में फुल चार्ज हो जाएगी और फिर इससे 1200 किलोमीटर से अधिक की दूरी तय हो जाएगी? आइए, जानते हैं कि इसकी सच्चाई क्या है.
110 साल बाद अचानक इतना क्यों विख्यात हुई इलेक्ट्रिक कार
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की जीरो इंस्टिट्यूट में सस्टेनेबल एनर्जी इंजीनियरिंग विभाग के निदेशक पॉल शिएरिंग के हवाले से बीबीसी ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इलेक्ट्रिक कार या बैटरी से चलने वाली कार कोई नई नहीं है. हालांकि, आम आदमी इसे नया जरूर समझ रहा है. इसमें नयापन सिर्फ इतना है कि अब आम उपभोक्ता इसका इस्तेमाल करने लगे हैं. पॉल शिएरिंग ने कहा कि साल 1879 में अमेरिकी इंजीनियर थॉमस एडिसन ने बिजली के बल्ब का आविष्कार किया. इसे दुनिया के सभी लोग जानते हैं, लेकिन यह बहुत कम लोग ही जानते हैं कि जिस थॉमस एडिशन ने बल्व बनाई, उसी इंजीनियर ने साल 1912 में ही तीन इलेक्ट्रिक कारें भी बनाईं. बल्व चूंकि आम आदमी से जुड़ी हुई चीज है और इसका इस्तेमाल सालों से दुनियाभर के लोग करते आ रहे हैं, इसलिए यह विख्यात हो गई. लेकिन, कारों का इस्तेमाल शुरू से ही संभ्रांत लोग करते आ रहे हैं, इसलिए यह बल्व की तरह विख्यात नहीं हुई और अब जब लोगों के पास कुछ पैसे आ गए और लोगों के आवागमन की जरूरतें बढ़ीं, तो अब लोग इलेक्ट्रिक कारों की ओर रुख कर रहे हैं.
तीन प्रोटोटाइप इलेक्ट्रिक कारों का क्यों नहीं हुआ औद्योगिक उत्पादन
पॉल शिएरिंग आगे कहते हैं कि 1912 में इलेक्ट्रिक कार को ईजाद करने के कुछ साल बाद ही थॉमस एडिसन और उनके मित्र हेनरी फोर्ड बड़े पैमाने पर निर्माण करने के लिए इस इलेक्ट्रिक कार को बाजार में ले आए. ये तीन कारें प्रोटोटाइप थीं और नमूने के तौर पर औद्योगिक उत्पादन के स्तर तक पहुंच जातीं, तो आज दुनिया के ऑटोमोटिव इंडस्ट्री का स्वरूप ही कुछ और होता.
पर्यावरणीय चिंताओं ने बढ़ाई इलेक्ट्रिक कारों का उत्पादन
दरअसल, हेनरी फोर्ड ने जिस कार को बनाया था, वह साइज में काफी छोटी थी और वह इलेक्ट्रिक बैटरी के बजाए पेट्रोल और डीजल से चलती थी. यह बात दीगर है कि गाड़ी को स्टार्ट करने के लिए बैटरी का इस्तेमाल किया गया था. पेट्रोलियम पदार्थों की सप्लाई की समस्याओं और पर्यावरणीय चिंताओं की वजह से 20वीं सदी के आखिर में वाहन निर्माता पेट्रोल और डीजल के बजाय इलेक्ट्रिक बैटरी पर चलने वाली कारों का उत्पादन शुरू कर दिया. पॉल शिएरिंग कहते हैं कि गाड़ियों को शुरू करने और उसकी लाइटों के लिए कई दशकों से एसिड और लेड यानी शीशे की बैटरियों का इस्तेमाल होता रहा है, जबकि गाड़ी को चलाने के लिए लिथियम आयन बैटरी का इस्तेमाल होता है. अब आधुनिक इलेक्ट्रिक गाड़ियों की मोटर लिथियम आयन बैटरी से चलती है.
टोयोटा ने 1997 में लॉन्च किया पहली इलेक्ट्रिक कार
दुनिया भर में बैटरी चालित वाहनों का निर्माण 1990 के दशक में शुरू हुआ. सबसे पहले, टोयोटा प्रियस पहली हाइब्रिड कार थी, जो 1997 में बाजार में आई. यह कार पेट्रोल और बैटरी दोनों से चलती थी. इसके 10 साल बाद 2007 में निसान मोटर ने पहली इलेक्ट्रिक कार बनाई, जो पूरी तरह बैटरी से चलती थी, लेकिन इतने सालों बाद भी पेट्रोल या डीजल से चलने वाली कारों और इलेक्ट्रिक कारों के बीच मुकाबले में कोई समानता नहीं आ पाई. आखिर इसका कारण क्या है. इसके जवाब में पॉल शिएरिंग कहते हैं कि पेट्रोल का ऊर्जा घनत्व अधिक होता है. बैटरी की टेक्नोलॉजी अभी उस स्तर तक नहीं पहुंच पाई है. हालांकि, नई गाड़ियों में इस्तेमाल होने वाली बैटरियों का प्रदर्शन काफी बेहतर है.
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लिथियम आयन बैटरी चालित कारों का फायदा क्या है
रिपोर्ट में कहा गया है कि लिथियम आयन बैटरी से चलने वाली गाड़ियों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचता है. खासतौर पर अगर बैटरी को चार्ज करने के लिए हरित ऊर्जा का इस्तेमाल किया जाए, तो इससे पर्यावरण को खतरा कम है. वहीं, पेट्रोल या डीजल से चलने वाली गाड़ियां टैंक फ़ुल होने पर काफी दूर तक जा सकती हैं, जबकि उतनी ही दूरी तय करने के लिए लिथियम बैटरी को कई बार फुल चार्ज करना पड़ता है. हालांकि, लोग यही चाहते हैं कि एक बार फुल चार्ज होने पर बैटरी से चलने वाली कार पेट्रोल-डीजल की गाड़ियों की तरह लंबी दूरी तय कर सके. बैटरी देर तक चले और उसकी कीमत कम हो. उम्मीद यह भी की जा रही है कि इन बैटरियों के उत्पादन में ऐसी सामग्री इस्तेमाल हो, जिससे पर्यावरण को कम नुकसान पहुंचाते हुए बैटरी सुरक्षित हो.
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कम समय फुल चार्ज और लंबी दूरी तय करेगी कार
टोयोटा कंपनी का दावा है कि वह जल्द ही लिथियम आयन बैटरी की जगह सॉलिड स्टेट बैटरी का इस्तेमाल शुरू कर इस समस्या का हल निकालने जा रही है. लिथियम आयन बैटरी में लिक्विड या तरल इलेक्ट्रोलाइट का इस्तेमाल होता है, जब कि सॉलिड स्टेट बैटरी में ठोस इलेक्ट्रोलाइट का इस्तेमाल किया जाता है. इसलिए उनका उत्पादन पेचीदा और महंगा होता है. कई सालों से टोयोटा, निसान मोटर, बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज बेंज भी इस पर काम कर रहे हैं. पॉल शिएरिंग बताते हैं कि सॉलिड स्टेट बैटरी में ज्यादा ऊर्जा भरी जा सकती है, जिसकी वजह से इलेक्ट्रिक कार एक बार फुल चार्ज होने पर अधिक दूरी तक सफर तय कर सकती है. इससे उसकी रेंज बढ़ जाएगी. दूसरा फायदा यह है कि इन्हें कम समय में चार्ज किया जा सकता है. इनकी चार्जिंग के लिए कतार छोटी हो जाएगी. तीसरा फायदा यह है कि यह लिथियम आयन बैटरी की तुलना में अधिक सुरक्षित होती हैं.
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