नई दिल्ली : किसी भी व्यक्ति को गाड़ी चलाने के लिए ड्राइविंग लाइसेंस होना जरूरी है, उससे कहीं अधिक गाड़ियों का इंश्योरेंस होना जरूरी है. जैसे किसी गाड़ी मालिक के लिए ड्राइविंग लाइसेंस दस्तावेज का काम करता है, ठीक वैसे ही गाड़ियों का इंश्योरेंस भी आपको चालान कटने से बचाता है. सबसे बड़ी बात यह है कि इंश्योरेंस कराने के बाद गाड़ी के साथ-साथ ड्राइवर के जान की भी सुरक्षा हो जाती है. हालांकि, इंश्योरेंस कराने को लेकर वाहन मालिक या ड्राइवर काफी कन्फ्यूज रहते हैं. इसका कारण यह है कि इंश्योरेंस पॉलिस के नियम और शर्तें ही ऐसी होती हैं कि किसी गाड़ी मालिक के लिए सलेक्शन करना काफी मुश्किल हो जाता है. आम तौर पर देखा यह जाता है कि कन्फ्यूजन की वजह से गाड़ी मालिक बेकार के सौदे में फंस जाते हैं. अगर आप भी गाड़ी के इंश्योरेंस को लेकर कन्फ्यूजन में हैं, तो हम आपकी इस दुविधा को काफी हद तक दूर करने का प्रयास कर रहे हैं. आइए, जानते हैं गाड़ियों के इंश्योरेंस के बारे में…
इंश्योरेंस पॉलिसी के प्रकार
आम तौर पर मोटर इंश्योरेंस की पॉलिसी दो प्रकार की होती हैं. इसमें कैशलेस इंश्योरेंस पॉलिसी और री-इंबर्समेंट इंश्योरेंस पॉलिसी शामिल है. कैशलेस इंश्योरेंस पॉलिसी में गाड़ी मालिक या ड्राइवर को गाड़ी के नुकसान होने पर अपनी ओर से पैसे खर्च नहीं करने पड़ते हैं. हालांकि, बड़े नुकसान होने की स्थिति में मरम्मत में आने वाले खर्च का कुछ हिस्सा ही देना पड़ता है. वहीं, री-इम्बर्समेन्ट इंश्योरेंस पॉलिसी में ग्राहक गाड़ियों के नुकसान होने की स्थिति में उसकी मरम्मत का पूरा खर्च खुद ही उठाता है. इसके लिए गाड़ी मालिक या ड्राइवर को क्षतिपूर्ति के लिए आवेदन जमा कराना पड़ता है.
मोटर इंश्योरेंस और क्लेम के चार प्रकार होते हैं. इनमें थर्ड पार्टी इंश्योरेंस, कॉप्रिहेंसिव कार इंश्योरेंस, दोपहिया वाहन इंश्योरेंस और फर्स्ट पार्टी इंश्योरेंस शामिल हैं.
थर्ड पार्टी इंश्योरेंस : मोटर वाहन एक्ट के अनुसार, अगर आपकी गाड़ी से किसी अन्य वाहन या व्यक्ति दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं और उसमें गाड़ी या व्यक्ति को नुकसान पहुंचता है, तो ऐसी स्थिति में गाड़ी मालिक उस नुकसान की भरपाई नहीं करेगा. इसके बदले बीमा कंपनी पूरा खर्च उठाती है. गाड़ी मालिकों के लिए थर्ड पार्टी इंश्योरेंस पॉलिसी काफी फायदेमंद होती है.
कॉप्रिहेंसिव कार इंश्योरेंस : इंश्योरेंस की इस पॉलिसी के तहत किसी थर्ड पार्टी व्यक्ति अथवा किसी संपत्ति का नुकसान होने की स्थिति में उसे कवरेज प्रदान किया जाता है.
टू-व्हीलर्स इंश्योरेंस : भारत में ज्यादातर लोग टू-व्हीलर्स इंश्योरेंस का ही इस्तेमाल करते हैं. इस इंश्योरेंस के तहत दोपहिया वाहनों को सुरक्षा प्रदान की जाती है. दोपहिया वाहन बेचने वाले डीलर्स की ओर से गाड़ियों का इंश्योरेंस कम से कम पांच साल के लिए कराया जाता है और लोगों को यह सलाह भी दी जाती है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को अपने दोपहिया वाहनों का इंश्योरेंस करवा लेना चाहिए.
इंजन और इलेक्ट्रॉनिक सर्किट कवर : बीमा कंपनियों की ओर से इस प्रकार का कवर इंश्योर्ड गाड़ियों के इंजन या इलेक्ट्रॉनिक सर्किट के कारण होने वाली किसी भी प्रकार के नुकसान के लिए दिया जाता है. इससे गाड़ी मालिकों या ड्राइवरों को इंजन में होने वाले नुकसान पर खुद ही खर्च नहीं करना पड़ता है.
व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा
इस प्रकार के इंश्योरेंस के तहत गाड़ी चलाने के दौरान किसी व्यक्ति अथवा ड्राइवर को दुर्घटना के दौरान चोट लगने की स्थिति में बीमा कंपनियां ही उनके इलाज पर होने वाले खर्च का भुगतान करती हैं. इससे बीमित व्यक्ति को काफी आर्थिक मदद भी मिल जाती है.
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फर्स्ट पार्टी इंश्योरेंस
इंश्योरेंस के इस पॉलिसी को जीरो डेप्थ पॉलिसी भी कहा जाता है. इसके तहत यदि आपके गाड़ी को किसी प्रकार का नुकसान पहुंचने पर उसका सारा खर्च बीमा कंपनी वहन करती है. हालांकि, इसके अंतर्गत सिर्फ दो बार ही इंश्योरेंस दिया जाता है, लेकिन यह पॉलिसी भी काफी हद तक किफायती मानी जाती है.
भारत में मोटर इंश्योरेंस और उनके क्लेम कितने प्रकार के होते हैं?
मोटर इंश्योरेंस और क्लेम के चार प्रकार होते हैं. इनमें थर्ड पार्टी इंश्योरेंस, कॉप्रिहेंसिव कार इंश्योरेंस, दोपहिया वाहन इंश्योरेंस और फर्स्ट पार्टी इंश्योरेंस शामिल हैं.