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Deepfake वीडियो क्या होता है? कैसे बनता है? क्या हैं इसके खतरे?

सोशल मीडिया पर इन दिनों एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें दुनिया भर के नामी चेहरे आपको कभी गाना गाते दिखते हैं, तो कभी फनी डायलॉग सुनाते नजर आते हैं. पिछले कई दिनों से ऐसे ही वीडियो तेजी से वायरल हो रहे हैं. हाल ही में एक वीडियो सामने आया हैं,

What is Deepfake, How it Works, What are its Benefits & Drawbacks: सोशल मीडिया पर इन दिनों एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें दुनिया भर के नामी चेहरे आपको कभी गाना गाते दिखते हैं, तो कभी फनी डायलॉग सुनाते नजर आते हैं. पिछले कई दिनों से ऐसे ही वीडियो तेजी से वायरल हो रहे हैं. हाल ही में एक वीडियो सामने आया हैं, जिसमें भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह नजर आ रहे हैं.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि यह वीडियो फेक है. देखने से साफ पता चलता है कि इस वीडियो के साथ छेड़छाड़ की गई है. दरअसल, यह Deepfake टेक्नोलॉजी का कमाल है. आजकल फेक न्यूज और गलत जानकारियां वायरल करने में इसका इस्तेमाल धड़ल्ले से किया जा रहा है. अब आपके मन में भी इस इस बात की उत्सुकता बढ़ रही होगी कि आखिर ऐसे वीडियो बनते कैसे हैं. आइए जानें-

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Deepfake क्या है?

डीपफेक शब्द ‘डीप लर्निंग’ और ‘फेक’ से मिलाकर बना है. डीप लर्निंग का इस्तेमाल कर तैयार किये गए नकली वीडियो ही डीपफेक वीडियो होते हैं. ‘डीप लर्निंग’ आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस यानी AI का हिस्सा है, जिसमें अल्गोरिदम अपने आप चीजों को सीखकर खुद निर्णय लेते हैं. जानकारों का कहना है कि जिस भी व्यक्ति के पास कंप्यूटर और इंटरनेट का एक्सेस है, वह तकनीकी रूप से डीपफेक कंटेट तैयार कर सकता है.

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Deepfake वीडियो कैसे बनता है?

टॉप डीपफेक आर्टिस्ट और कंप्यूटर साइंटिस्ट हाओ ली Hao Li को डीपफेक का एक्सपर्ट माना जाता है. वह Furious 7 और The Hobbit सहित कई हॉलीवुड फिल्मों में विजुअल एफेक्ट के लिए फेशियल ट्रैकिंग और हेयर डिजिटाइजेशन का काम कर चुके हैं. हाओ ली के मुताबिक, डीपफेक बनाने में सोर्स और टार्गेट पर्सन का पर्याप्त डेटा कलेक्ट करना होता है ताकि कुछ घटों तक उसे डीप न्यूरल नेटवर्क ट्रेन कर सकें. आमतौर पर अच्छा रिजल्ट टार्गेट के कुछ वीडियो क्लिप्स हासिल करके या फिर हजारों इमेज इकठ्ठी करके पाया जा सकता है. एक बार वीडियो बनने के बाद जेनरेटिव एडवर्सरियल नेटवर्क (generative adversarial network, GAN) का इस्तेमाल कर इसे और विश्वसनीय बनाया जा सकता है. कई बार इस प्रक्रिया से गुजरने के बाद नकली वीडियो एकदम असली लगने लगता है.

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आपके स्मार्टफोन तक पहुंच गया डीपफेक

बड़ी और एडवांस्ड मशीनों से निकल कर यह Deepfake टेक्नोलॉजी आपके स्मार्टफोन तक पहुंच गई है. डीपफेक का मिलता जुलता रूप इन दिनों स्नैपचैट, इंस्टाग्राम और फेसबुक पर देखा जा रहा है. आप सेल्फी कैमरे में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बेस्ड जो फेस ब्यूटिफिकेशन फीचर देखते हैं, दरअसल यह भी डीपफेक का ही एक उदाहरण है. क्योंकि जो जैसा है, वैसा दिखता नहीं और यहां से आसानी से लोगों को बेवकूफ बनाने का भी काम किया जा सकता है.

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Deepfake के खतरे भी हैं

डीपफेक तकनीक कुछ महीनों से धीरे-धीरे अपनी रफ्तार पकड़ रही है और सोशल मीडिया पर Deepfake कंटेंट तेजी से बढ़ रहे हैं. लेकिन इसके खतरे को भी पहचानना होगा. डीपफेक का सबसे बड़ा खतरा यह है कि लोग इसके द्वारा तैयार किये गए कंटेट को सच मान सकते हैं, जबकि असल में वह नकली होता है. लॉस एंजेल्स की यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफॉर्निया में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर विल्लासेनोर का कहना है कि यह टेक्नोलॉजी चुनावों को बड़े स्तर पर प्रभावित कर सकती है. इससे किसी उम्मीदवार को कोई ऐसा काम या बात करते हुए दिखाया जा सकता है जो उसने कभी किया ही न हो. इसे चुनाव प्रभावित करने का शक्तिशाली हथियार कहना गलत नहीं होगा.

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