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PM मोदी ने अपने संबोधन में Y2K संकट का जिक्र क्यों किया? वजह बड़ी खास है…

Why PM Narendra Modi mentioned Y2K Bug Crisis in his Address to the Nation: भारत में कोरोना वायरस (Coronavirus) के खतरे को रोकने के लिए 24 मार्च से लॉकडाउन (Lockdown) लगाया गया है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) अपने संबोधनों के जरिये जनता से लगातार जुड़े रहे. मंगलवार को एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने देश को संबोधित किया. उन्होंने लॉकडाउन-4 के संकेत दिये और कई बातें बतायीं. इस दौरान प्रधानमंत्री ने Y2K संकट का जिक्र भी किया. उन्होंने कहा, आज पूरी दुनिया को भरोसा है कि भारत मानव जाति के लिए कुछ अच्छा कर सकता है. इस सदी की शुरुआत में जब Y2K संकट सामने आया था, तब भी भारत के IT शोधकर्ताओं ने ही दुनिया को इससे उबारा था.

Why PM Narendra Modi mentioned Y2K Bug Crisis in his Address to the Nation: भारत में कोरोना वायरस (Coronavirus) के खतरे को रोकने के लिए 24 मार्च से लॉकडाउन (Lockdown) लगाया गया है. इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) अपने संबोधनों के जरिये जनता से लगातार जुड़े रहे. मंगलवार को एक बार फिर प्रधानमंत्री मोदी ने देश को संबोधित किया.

उन्होंने लॉकडाउन-4 के संकेत दिये और कई बातें बतायीं. इस दौरान प्रधानमंत्री ने Y2K संकट का जिक्र भी किया. उन्होंने कहा, आज पूरी दुनिया को भरोसा है कि भारत मानव जाति के लिए कुछ अच्छा कर सकता है. इस सदी की शुरुआत में जब Y2K संकट सामने आया था, तब भी भारत के IT शोधकर्ताओं ने ही दुनिया को इससे उबारा था.

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Y2K यानी Year 2000

दुनियाभर के कंप्यूटर सिस्टम में इलेक्ट्रॉनिक कंप्यूटिंग की शुरुआत में डेट डिस्प्ले करने के लिए साल की डिजिट्स पर चार की जगह पर दो अंकों का इस्तेमाल होता था. Y2K में Y का मतलब है साल और 2K यानी 2000.

जब साल 1999 खत्म होकर 2000 की शुरुआत होनेवाली थी, तब कंप्यूटिंग के दौर में दुनियाभर के कंप्यूटर 31 दिसंबर, 1999 से आगे की डेट में जाने में सक्षम नहीं थे.

इस हिसाब से साल के अंतिम दो अंक बदले जा सकते थे, लेकिन शुरुआती दो अंकों में बदलाव संभव नहीं था. इसका मतलब यह हुआ कि 1999 के बाद कंप्यूटर साल 1900 (01-01-00) की डेट डिस्प्ले करने लगते, यानी तत्कालीन समय से 100 साल पीछे.

यह सब कंप्यूटर की कोडिंग में कमियों का नतीजा था. इस बग को मिलेनियम बग कहा गया. आइटी एक्सपर्ट्स के मुताबिक, सिस्टम में 21वीं सदी के लिए पर्याप्त प्रोग्राम नहीं थे जिससे उनके क्रैश होने का खतरा था.

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इस बग की वजह से बहुत सारे इकोनॉमिकल कंप्यूटर प्रोग्राम्स के फेल हो जाने का डर था. इसके चलते हम सब की रोजमर्रा के कई काम अटक जाने का खतरा था.

दुनियाभर की सरकारों ने इस समस्या से निपटने के लिए अरबों डॉलर्स खर्च किये. अगर इस बग को ठीक नहीं किया गया होता, तो सबसे ज्यादा नुकसान बैकिंग, साइबर सिक्योरिटी और वैज्ञानिक क्षेत्र को होता.

आज भले ही पूरी दुनिया में संचार क्रांति आ चुकी हो. बड़े प्रॉसेसर वाले कंप्यूटर स्मार्टफोन के रूप में बदलकर जेब में समा चुके हों, लेकिन इस सदी की शुरुआत में हालात ऐसे नहीं थे. यहां तक कहा जा रहा था कि Y2K मिलेनियम बग की वजह से पूरी दुनिया का संचार तंत्र प्रभावित हो जाएगा और कंप्यूटर्स का अस्तित्व खत्म हो जाएगा.

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भारत की मदद से ठीक हुआ बग

Y2K मिलेनियम बग के समय में भारत में इंफोसिस, विप्रो जैसी आईटी कंपनियां अपने पैर जमा चुकी थीं. इंफोसिस और आाआाएस इंफोटेक उन भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक हैं, जिन्होंने वाई 2के बग को ठीक करने के काम में अमेरिकन प्रोग्रामर्स की मदद की. इसके बाद ही IT सेक्टर में भारत ने पहचान बनायी.

PM मोदी ने इसलिए किया Y2K संकट का जिक्र

आज जिस तरह कोरोना वायरस संकट से पूरी दुनिया आक्रांत है, उसी तरह 20 साल पहले दुनिया Y2K मिलेनियम बग से परेशान थी. हालांकि तब कोरोना वायरस महामारी की तरह जान पर खतरा तो नहीं था, लेकिन टेक्नोलॉजी जगत में भूचाल आया हुआ था.

उस दौर के आइटी विशेषज्ञों ने यह कहते हुए हाथ खड़े कर दिये थे कि कंप्यूटर में 21वीं सदी के लिए पर्याप्त प्रोग्राम नहीं हैं, इसलिए वे ध्वस्त हो सकते हैं. अमेरिका-यूरोप में तो हालात बेहद विषम थे. कंप्यूटर का ध्वस्त होना मतलब पावर ग्रिड फेल हो जाना. बैंक सेवाएं बाधित होना. बिक्री और उत्पादन न होने के कारण व्यवसाय चौपट हो जाना.

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कुल मिलाकर अर्थव्यवस्था का ही गिर जाना. उस समय तक भारत में इंफोसिस, विप्रो जैसी आईटी कंपनियां अपनी रफ्तार में काम करना शुरू कर चुकी थीं. इसके अलावा भारत जैसा सस्ता श्रम और तेज दिमाग दुनिया में कहीं नहीं था.

अनुमान के अनुसार, इस बग को ठीक करने में दुनिया भर में 1,600 बिलियन यूएस डॉलर्स तक की रकम खर्च करनी पड़ गई थी. तब भारतीय वैज्ञानिकों ने सामने आकर इस संकट का खात्मा किया और दुनिया भर में अपने ज्ञान का लोहा मनवाया था. इसके बाद विदेशों में भारतीय कंप्यूटर इंजीनियर्स की मांग तेजी से बढ़ी.

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