पढि़ए अंडा बेचनेवाले के बेटे अरबाज आलम के शून्य से शिखर तक पहुंचने की कहानी
दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर आइआइटी में मिला दाखिला विजय बहादुर vijay@prabhatkhabar.in मोहम्मद अरबाज आलम का चयन आइआइटी मुंबई के लिए हो गया है. करायपरशुराय (नालंदा, बिहार) के बहुत ही गरीब पृष्ठभूमि से आनेवाले अरबाज के आइआइटी मुंबई तक पहुंचने की कहानी शून्य से शिखर छूने की कहानी लगती है. अरबाज के पिता का नाम […]
दृढ़ इच्छाशक्ति के दम पर आइआइटी में मिला दाखिला
विजय बहादुर
vijay@prabhatkhabar.in
मोहम्मद अरबाज आलम का चयन आइआइटी मुंबई के लिए हो गया है. करायपरशुराय (नालंदा, बिहार) के बहुत ही गरीब पृष्ठभूमि से आनेवाले अरबाज के आइआइटी मुंबई तक पहुंचने की कहानी शून्य से शिखर छूने की कहानी लगती है. अरबाज के पिता का नाम शकील अहमद है और मां गृहिणी हैं. परिवार में छह भाई-बहन हैं.
अरबाज तीसरे नंबर पर हैं. उनसे बड़े एक भाई और एक बहन है. एक बहुत ही पुराना पुश्तैनी मकान है, जो रखरखाव के अभाव में बदहाल हो चुका है. दो वक्त खाने की भी परेशानी है. अरबाज की स्कूली शिक्षा नालंदा के पौने छह आना मोहल्ला के कन्या मध्य विद्यालय से हुई है.
यहां उन्होंने आठवीं तक की पढ़ाई की. उसके बाद 10वीं और 12वीं की शिक्षा भी नालंदा से ही प्राप्त किया. अरबाज आज जिस मुकाम पर खड़े हैं, उसका पहला श्रेय उसके पिता शकील अहमद को जाता है. अरबाज के पिता शकील अहमद रेडियो रिपेयरिंग का काम करते थें, लेकिन लगभग 15 वर्ष पहले मोबाइल का दौर आने के बाद उनका धंधा लगभग ठप पड़ गया. इतने पैसे भी नहीं थें कि कोई और धंधा शुरू कर सके.
किसी ने सुझाव दिया की खैनी का व्यापार करो, लेकिन उसे भी शुरू करने में दस-पंद्रह हजार की जरूरत थी, जो उनके औकात के बाहर की बात थी. अंत में उन्होंने अंडा बेचने का काम शुरू किया और उसी से रोजाना 100- 200 रुपये कमा कर परिवार की गाड़ी किसी तरह से खींचने लगें. इंटर तक पढ़े शकील बताते हैं कि उनका पूरा जीवन अभाव में ही बीत रहा है.
बार-बार लोगों ने सलाह दिया कि वो अपने बच्चों को कामकाज में लगा दे, ताकि परिवार की आर्थिक हालत बेहतर हो सके. लेकिन, उन्हें लगता था कि उन्हें अपने बच्चों को किसी भी हाल में पढ़ाना है. तमाम आर्थिक मुश्किलों के बावजूद उन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई में अवरोध नहीं आने दिया. उनके बच्चों के सपने को मुकाम देना ही उनके जीवन का लक्ष्य रह गया है.
12वीं के बाद अरबाज का चयन आनंद कुमार के सुपर 30 में हो गया और यही उसके जीवन का टर्निंग प्वाइंट था. सुपर 30 तक पहुंचने की कहानी भी बहुत दिलचस्प है. अरबाज बताते हैं कि उनके पिताजी को अखबार पढ़ने का बहुत ही ज्यादा शौक है. अखबार खरीदने की क्षमता तो नहीं है, लेकिन रोजाना अपने दुकान के अगल-बगल के लोगों से अखबार मांग कर जरूर पढ़ते हैं.
उसी क्रम में एक दिन उन्होंने अखबार में पढ़ा कि आनंद कुमार अपने सुपर 30 के बैच के लिए मेधावी स्टूडेंट्स का चयन कर रहे हैं. अरबाज अपने पिता के साथ आनंद कुमार के पास पहुंच गयें. सुपर 30 का इंट्रेंस एग्जाम दिया और टॉप कर गयें. उसके बाद उसके रहने, खाने और पढ़ने का सारा इंतजाम आनंद कुमार ने किया. 2017 आइआइटी की परीक्षा में अरबाज सफल हो गयें. अरबाज और उसके पिता दोनों कहते हैं कि जीवन में जो भी मुकाम हासिल किया है, वो आनंद कुमार के मार्गदर्शन और सहयोग के कारण ही संभव हो सका है.
अरबाज से जब मैंने पूछा कि इतनी मुफलिसी में भी वो कैसे सफल हो सकें. इस पर अरबाज कहतें हैं कि शुरू से ही उन्हें ऐसा लगता था कि मैं जीवन में बेहतर कर सकता हूं. मैं गरीबी से जूझता रहा. बार-बार मन में हमेशा यह ख्याल आता रहता था कि कैसे इसका अंत करूं और ऐसे में मेरे अंदर हमेशा कुछ बेहतर करने की इच्छा रहती थी.
हमारा पूरा जीवन ही परेशानियों से भरा हुआ है. जिसे हर सुबह दो वक्त की रोटी के लिए मशक्कत करना पड़े, तो वह क्या कह सकता है. हमारे पास रहने के लिए ढंग का घर नहीं, खाना नहीं, पहनने के लिए कपड़ा नहीं है. ऐसे में सुकून कैसे महसूस होगा.
और शायद जीवन में आगे बढ़ने की प्रेरणा गरीबी से ही मिली है. इससे जूझते हुए और इसे मिटाने के लिए गरीबी से ही प्रेरणा ली और पढ़ाई को इसके लिए जरिया बनाया. साथ ही जीवन में सबसे ज्यादा प्रेरणा गुरुओं से मिली.
चाहे स्कूल के शिक्षक हों या आनंद सर, सबने मुझे प्रेरित किया. जिसने भी मेरे लिये किया है, मैं उसे भूलना नहीं चाहता. किसी भी इंसान की सफलता में उसके माता-पिता का योगदान होता है. मेरी सफलता में भी मेरे माता-पिता का अमूल्य योगदान है. गरीबी के बावजूद उन्होंने कभी मुझे बाल मजदूर नहीं बनाया, मुझे पढ़ने दिया और आज मैं सफल हूं.
मैंने अपने जीवन में कभी हताशा को हावी नहीं होने दिया. मेरे पास गुरुओं का आशीर्वाद है. वो हमेशा प्रेरित करते हैं. ऐसे में हताशा के लिए जगह कहां है. अरबाज संघर्षरत युवाओं से यह कहते हैं कि आप मेहनत करें. बिना मेहनत किये सफलता नहीं मिलेगी. साथ ही अपने गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त करें. यह आपके सपने को सच करेंगे. इस दुनिया में अधिकतर सफल लोगों ने गरीबी से संघर्ष करके सफलता हासिल की है. वे आसमान से टपके नहीं थे. इसलिए आप भी मेहनत करें और प्रेरणा तो कहीं से भी प्राप्त कर सकते हैं. संसार में हर जगह प्रेरणा भरी पड़ी है.
भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ एपीजे अब्दुल कलाम अरबाज के रोल मॉडल हैं. जीवन में अरबाज का सपना रिसर्च करके नोबल प्राइज प्राप्त करना है. साथ में गरीबी उन्मूलन में भी बेहतर योगदान देना चाहते हैं.