रहीम दास बोले- आवत काज रहीम कहि…
आवत काज रहीम कहि, गाढ़े बंधु सनेह !! जीरन होत न पेड़ ज्यों, थामें बरै बरेह !! अर्थात रहीम कहते हैं, संकट की घड़ी में अपने नाते- रिश्तेदार ही काम आते हैं, जैसे वट को कोई वृक्ष गिराने लगता है तो उससे सजातीय वृक्ष उसे सहारा देकर थाम लेते हैं और वह फिर से फलने-फूलने […]
आवत काज रहीम कहि, गाढ़े बंधु सनेह !!
जीरन होत न पेड़ ज्यों, थामें बरै बरेह !!
अर्थात
रहीम कहते हैं, संकट की घड़ी में अपने नाते- रिश्तेदार ही काम आते हैं, जैसे वट को कोई वृक्ष गिराने लगता है तो उससे सजातीय वृक्ष उसे सहारा देकर थाम लेते हैं और वह फिर से फलने-फूलने लगता है.