सोच, कड़ी मेहनत व लगन हो, तो मंजिल पाने में गरीबी बाधा नहीं बनती

।। विजय बहादुर।। ई मेल – vijay@prabhatkhabar.in फेसबुक से जुड़ें ट्विटर से जुड़ें फणींद्र पासवान की कहानी मूलतः एक परिवार के उत्थान की कहानी है. खान मजदूर के बेटे ने मुफलिसी में रहकर भी न सिर्फ अपना भाग्य बदला, बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए भी बेहतर भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर दिया. विपरीत […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | March 16, 2018 4:55 PM

।। विजय बहादुर।।

ई मेल – vijay@prabhatkhabar.in
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फणींद्र पासवान की कहानी मूलतः एक परिवार के उत्थान की कहानी है. खान मजदूर के बेटे ने मुफलिसी में रहकर भी न सिर्फ अपना भाग्य बदला, बल्कि अपनी आने वाली पीढ़ी के लिए भी बेहतर भविष्य का मार्ग प्रशस्त कर दिया.
विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मिली मंजिल
मन में अच्छी सोच, कड़ी मेहनत व लगन हो, तो मंजिल तक पहुंचने में गरीबी कभी बाधा नहीं बनती. दलित परिवार में पैदा होने, जन्म से गरीबी का दंश झेलने और विस्थापन की त्रासदी के बावजूद कोई अपनी मंजिल कैसे पा लेता है, यह देखना है, तो देवघर जिले के सुदूर गांव पुनासी में रिटायर्ड लाइफ बिता रहे फणींद्र पासवान से मिलिए. श्री पासवान ने बोकारो स्टील प्लांट में बतौर इंजीनियर लंबी सेवा दी है.
बड़ी बहन के पड़ोसी के यहां रात में करते थे पढ़ाई
फणींद्र के पिता सीताराम पासवान कोयला खान मजदूर थे. 8 से 10 रुपये की दिहाड़ी मिलती थी. घर की आर्थिक हालत काफी खराब थी. गरीबी के कारण पिता ने उनका नामांकन गांव के मध्य विद्यालय, तेतरिया में कराया था. सातवीं में प्रथम श्रेणी आने के बाद आसपास विद्यालय नहीं होने के कारण बड़ी बहन तेतारी देवी के घर झाझा में रहकर महात्मा गांधी स्मारक उच्च विद्यालय से मैट्रिक की परीक्षा में 78 प्रतिशत अंक लाकर पूरे मुंगेर जिले में प्रथम स्थान प्राप्त किया था. मैट्रिक परीक्षा के दौरान उन्हें रात को पढ़ने के लिए लाइट का इंतजाम नहीं था, जिस कारण वे पड़ोसी के घर जाकर बिजली की रोशनी में रात की पढ़ाई किया करते थे.
लेबर इंस्पेक्टर ने की आर्थिक मदद
मैट्रिक में बेहतर प्रदर्शन को लेकर बिहार सरकार की ओर से उन्हें स्कॉलरशिप दी जाने लगी. उच्च शिक्षा के लिए परिजनों ने उन्हें पटना साइंस कॉलेज में दाखिला करा दिया. इंटर परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने बीआइटी सिंदरी में मैकेनिकल में नामांकन कराया. इस क्रम में पैसे का काफी अभाव था. झाझा के लेबर इंस्पेक्टर रामाशीष सिंह ने उन्हें मदद करना शुरू किया.
अपने बेटों को भी अच्छी शिक्षा दी
1971 में इंजीनियरिंग की परीक्षा पास करने के बाद वे बोकारो में कंस्ट्रक्शन डिपार्टमेंट में पदस्थापित हुए. नौकरी के कुछ दिन बाद उनके पिता की मृत्यु हो गयी. उन्होंने बोकारो में रहकर बड़े बेटे संतोष पासवान (वर्तमान में देवघर जिला परिषद सदस्य) को दिल्ली यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र से बीए कराया, जबकि दूसरे बेटे परितोष कुमार (अमेरिका में सॉफ्टवेयर इंजीनियर) को भी अच्छी शिक्षा दी. बेटी शिखा कुमारी अंग्रेजी से बीए करने के बाद बोकारो में शिक्षिका के पद पर कार्यरत हैं.
जज्बा हो, तो मददगार भी मिल जाते हैं
फणींद्र बताते हैं कि अगर आपमें जज्बा है, तो आपको आगे बढ़ाने के लिए मददगार भी मिल जाते हैं. उन्होंने अपने जीवन में इसे पाया है. मैट्रिक की परीक्षा के दौरान पड़ोसियों ने मदद की. उनके घर में रहकर रात-रात भर जगकर पढ़ा, तो जिला टॉपर बना. सरकार से स्कॉलरशिप मिली. इंजीनियरिंग की पढ़ाई को लेकर लेबर इंस्पेक्टर ने मदद की. इसके अलावा कई लोग मिले, जिन्होंने उत्साह बढ़ाया. उनकी जिंदगी का फलसफा है कि मन में अगर अच्छी सोच, कड़ी मेहनत व लगन हो तो मंजिल पाने में गरीबी कभी भी बाधा नहीं बनती है.

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