सफल होने के लिए सिर्फ हार्ड वर्क नहीं, स्मार्ट वर्क भी जरूरी

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By Prabhat Khabar Digital Desk | May 1, 2018 6:15 PM

।।विजय बहादुर।।

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यूपीएससी के नतीजे घोषित होने के साथ ही अखबार, टीवी और अन्य मीडिया इस परीक्षा में सफल होने वाले युवा और युवतियों की सफलता की कहानी आपको सुना रहे हैं. एक से बढ़ कर एक संघर्ष की कहानियां हैं, जिनको पढ़ कर बहुत सारे लोग प्रेरित होते हैं. हर बार परीक्षा के रिजल्ट आने के बाद कोई न कोई रोल मॉडल समाज और खासकर युवाओं के बीच आता है, जो विषम हालात में अपनी तकदीर बदलते हैं. इस बार के यूपीएससी के रिजल्ट के बाद अनु कुमारी की सफलता सभी के लिए एक नजीर की तरह है. अनु को महिला कैंडिडेट में शीर्ष और ओवरऑल दूसरा रैंक मिला है.

अनु की कहानी सुनिए, तो आप बहुत निराश हो, तो भी आपमें आस जग जायेगी. आपको यह लगेगा कि अनु की तरह सफलता आपके बिल्कुल आस-पास में ठिठकी या रूकी पड़ी है. अनु की सफलता आधी आबादी और खासकर गृहणियों के लिए विशेष रूप से प्रेरणादायक है. अनु की सफलता की कहानी से संबंधित बहुत सारे विडियो यू-ट्यूब पर है. गांव-गिराव में रहने वाले पंचायतनामा के पाठकों के लिए भी हमने हरियाणा की अनु से टेलीफोन पर बात की. बहुत सकुचाते हुए अनु ने बताया कि कैसे एक बार उसके भाई ने अपने मन से उसके लिए यूपीएससी का फार्म भर दिया था और यूपीएससी की प्रीम्स में मात्र एक नंबर से वह पिछड़ गयी.

टेलीफोन पर बहुत ही संक्षिप्त बातचीत में हमने यह जानने की कोशिश कि कैसे छूटी पढ़ाई फिर से शुरू हुई. पति और बच्चों को कैसे मैनेज किया. कैसे पढ़ाई की और आइएएस बनना ही क्यों चुना. अनु ने बताया कि दिल्ली यूनिवर्सिटी से फिजिक्स (भौतिकी) में बीएससी (ऑनर्स) और आइएमटी नागपुर से एमबीए (फाइनेंस व मार्केटिंग) करने के बाद करीब नौ साल तक जॉब किया. इस दौरान पढ़ाई से नाता टूटा. शादी के साथ घरेलू जिम्मेदारी बढ़ी. बच्चे हुए. लेकिन करीब 10 साल बाद एक बार फिर पढ़ाई की ओर लौटने का फैसला किया. और मकसद था आइएएस बन देश सेवा करना. अनु ने कहा कि उनके लिए दोबारा पढ़ाई की तरफ आना मुश्किल था.
इसकी दो वजहें थीं. पहला पढ़ाई छोड़े हुए 10 साल हो गए थे. उसके बाद मेरे लिए दोबारा पढ़ाई में आना, उससे लिंक जोड़ पाना मुश्किल था. दूसरा इमोशनल एंगल भी था. मैंने अपने छोटे बेटे को अपनी मां के घर पर छोड़ दिया था. तब वह मात्र तीन साल का था. और मैं पढ़ाई के लिए मौसी के घर आ गयी. वहीं रहकर पढ़ाई की. बच्चे को साथ रखने पर पढ़ाई में दिक्कत होती थी. ये मेरे लिए मुश्किल था. भगवान की दया से आज मैं सफल हो गयी. मेरी मां ने बेटे का बहुत ख्याल रखा. उन्होंने कहा कि शादी के बाद थोड़ा चैलेंज बढ़ गया था, लेकिन मुझे परिवार वालों ने बहुत सहयोग किया. रिजल्ट को लेकर मुझसे ज्यादा मेरे परिवार वालों को भरोसा था. मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि मैं सफल हो चुकी हूं.
हरियाणा में बेटियों को आगे पढ़ने और बढ़ने में क्या परेशानियां आती हैं, इस सवाल के जवाब में अनु बताती हैं कि हरियाणा को एक पुरुष प्रधान राज्य माना जाता है और माना जाता है कि यहां लड़कियों को अधिक समर्थन नहीं मिलता है. हालांकि बैडमिंटन खिलाड़ी सायना नेहवाल, कुश्ती खिलाड़ी गीता फोगाट और बबिता फोगाट ने हाल के दिनों में हरियाणा की पहचान बदली है. मेरे पिताजी ने मेरा बहुत अधिक साथ दिया. उन्होंने हमेशा यही कहा कि मेरी बेटी ही मेरा बेटा है. बहुत प्रोत्साहित किया. मैं हरियाणा और देश के माता-पिता से निवेदन करना चाहूंगी कि प्लीज आप अपने बेटियों को जरूर पढ़ाइए.
सही स्ट्रेटजी आपको सफलता दिलाएगी
यूपीएससी कैसे क्रेक किया, इस सवाल के जवाब में अनु कहती हैं कि यूपीएससी परीक्षा की तैयारी करने के लिए मैं 12 से 14 घंटे तक पढ़ाई करती थी. मैं 10 से चार बजे तक सोती थी. उसके बाद मैं सुबह में लगातार पढ़ाई ही करती थी. उन्होंने यूपीएससी की पढ़ाई कर रहे छात्रों को भी सफलता के गुर सिखाए. उन्होंने कहा कि आप जिस भी स्टेज पर हैं. आप विश्वास रखिए. यूपीएससी में हार्ड वर्क नहीं स्मार्ट वर्क की जरूरत है. सतत प्रयास करते रहिए. सफलता आपके कदम चूमेगी. सही स्ट्रेटजी अपनाइए, टेस्ट सीरीज हल कीजिए. सही लोगों से सलाह लीजिए.
यूपीएससी सेकेंड टॉपर ने क्यों चुना आइएएस?
अनु कुमारी कहती हैं कि देश में रहकर देश की सेवा करना मेरे लिए महत्वपूर्ण है. ये तभी संभव है जब आप बदलाव करने वाली सिस्टम का हिस्सा बने. आइएएस बन कर मुझे लगता है कि मैं बहुत कुछ कर सकती हूं. एक युवा के पास बहुत एनर्जी होती है, जो जमीनी स्तर पर बदलाव ला सकता है. ऐसे कई उदाहरण हैं, जब युवा अधिकारियों ने बदलाव में अहम भूमिका निभायी है. मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण होगा कि मैं जहां भी रहूं, महिलाओं और बच्चों के लिए सही वातावरण बनाने की कोशिश करूं.
बदलते भारतीय समाज का दर्पण है अनु की कहानी
निश्चित रूप से अनु कुमारी ने मेहनत से खुद की तकदीर बदली है, लेकिन ये भी उतना ही सच है कि अगर उन्हें उनके परिवार का साथ नहीं मिला होता, तो शायद उनकी सफलता का मार्ग और कठिन होता. अनु की कहानी कहीं न कहीं बदलते पुरुष प्रधान समाज के मानस की ओर भी इंगित करता है.

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