कड़ी मेहनत व लगनशीलता का नहीं होता कोई शॉर्टकर्ट

मोकामा (बिहार) के एक गांव की कबड्डी खिलाड़ी शमा परवीन की कहानी ।। विजय बहादुर ।। बिल्कुल देसी खेल है कबड्डी और अगर खेलों की कोई फिलॉस्फी होती है, तो कबड्डी की फिलॉस्फी सबसे अलग है. आप जानते हैं कि इस खेल का विजेता केवल लक्ष्य को छूने पर नहीं बना जा सकता है, बल्कि […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | May 17, 2018 11:20 AM
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मोकामा (बिहार) के एक गांव की कबड्डी खिलाड़ी शमा परवीन की कहानी

।। विजय बहादुर ।।


बिल्कुल देसी खेल है कबड्डी और अगर खेलों की कोई फिलॉस्फी होती है, तो कबड्डी की फिलॉस्फी सबसे अलग है. आप जानते हैं कि इस खेल का विजेता केवल लक्ष्य को छूने पर नहीं बना जा सकता है, बल्कि इस खेल में लक्ष्य को छूने के बाद सुरक्षित रहनेवाला ही विजेता बनता है. वस्तुत: कबड्डी खेल की यह फिलॉस्फी भी बिल्कुल भारतीय है. सौ फीसदी देसी.

आइए कबड्डी की फिलॉस्फी के बहाने आपकी मुलाकात पटना जिले के मोकामा प्रखंड के मोअज्जमचक गांव की शमा परवीन से करवाते हैं. शमा के गांव में खेलकूद के लिए कोई मैदान नहीं है. इलाके के पिछड़ेपन के कारण बेहतर शैक्षणिक वातावरण भी नहीं है. मां फरीदा खातून गृहिणी हैं. पिता मो. इलियास बाटा इंडिया लिमिटेड, मोकामा में काम करते थे. कंपनी बंद होने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी. फिलहाल घर में ही जेनरल स्टोर की दुकान है. इसी की कमाई से घर का खर्च चलता है. शमा का जन्म एक अगस्त 1995 को हुआ. परिवार में माता-पिता, चार बहनें, दो भाई व दादी हैं. बड़ी बहन की शादी हो चुकी है. मध्य विद्यालय, बाटा से प्रारंभिक शिक्षा. मुसद्दीलाल आर्य कन्या उच्च विद्यालय, मोकामा से मैट्रिक. राम रतन सिंह महाविद्यालय, मोकामा से इंटरमीडिएट की पढ़ाई और फिर अनुग्रह नारायण महाविद्यालय से स्नातक की पढ़ाई कर रही हैं शमा परवीन.

वर्ष 2009 से कबड्डी का सफर हुआ शुरू

शमा ने 2009 से कबड्डी खेलना शुरू किया. माता-पिता के प्रोत्साहन व क्षेत्र के कई लोगों के उत्साहवर्धन के कारण लड़कियां इस खेल में आगे आयीं. कई मुस्लिम लड़कियों ने इस खेल में बेहतर प्रदर्शन किया. बाद में पारिवारिक व सामाजिक दबाव के कारण कई लड़कियों ने इस खेल से नाता तोड़ लिया, लेकिन शमा का कबड्डी खेलना जारी रहा.

कबड्डी की जाना-पहचाना नाम बनीं शमा

2010 में राज्यस्तरीय सब जूनियर प्रतियोगिता भोजपुर में हुई थी. इस मौके पर राज्य कबड्डी संघ के सचिव कुमार विजय ने नकद पुरस्कार देकर सम्मानित किया था. इस पुरस्कार ने शमा को खेल जीवन में उत्साह भरने और राष्ट्रीय खिलाड़ी बनने की ओर प्रेरित किया. आज शमा नेशनल कबड्डी टीम का जाना-पहचाना नाम है.

विषम परिस्थिति में भी परिवार का मिला सहयोग

जिस सामाजिक व पारिवारिक पृष्ठभूमि में लड़कियों का बाहर निकलना मना हो, उस पृष्ठभूमि से आनेवाली शमा ने कैसे अपनी पहचान एक कबड्डी खिलाड़ी के तौर पर स्थापित की. यह कहानी दिलचस्प है. 1990 से शमा के इलाके में महिला व पुरुष वर्ग की कबड्डी प्रतियोगिता का सालाना आयोजन होता है. आयोजन मंडल में शमा के पिता भी शामिल रहते थे. इनके पिता ने कई बार क्षेत्र की लड़कियों की टीम बनाने की कोशिश की, लेकिन सामाजिक बाधा के कारण टीम नहीं बन पायी. क्षेत्र के लोग इलाके की बेटियों को इसमें शामिल होने को बदनामी समझते थे.

शमा के पिता आधुनिक विचारधारा के पक्षधर हैं. उन्होंने बेटा-बेटी में कभी फर्क नहीं समझा और खेल के लिए लगातार प्रोत्साहित करते रहे. सामाजिक रुकावटों को दरकिनार कर अपने निर्णय पर कायम रहने की आजादी दी. बाहर खेलने जाने के बाद गांव-समाज के लोगों का ताना इनके माता-पिता को सुनना पड़ा. परिवार के कुछ लोगों का विरोध इनके पिता को झेलना पड़ा. बावजूद इसके माता-पिता ने हौसला बढ़ाया. राज्य में कहीं भी जूनियर, सीनियर कबड्डी के ट्रेनिंग कैंप में बुला कर ट्रेनिंग दी जाने लगी. कबड्डी संघ के सचिव कुमार विजय व कोच राजीव कुमार ने उत्साह बढ़ाया. जम कर मेहनत कराने के साथ विशेष ट्रेनिंग के लिए एक्सपर्ट ट्रेनर से इस खेल की नयी तकनीक सीखने का मौका दिया गया.

शमा ने कभी आशा को मिटने नहीं दिया

शमा से हमने पूछा कि क्या कभी जीवन में निराश हुई, तो उसने कहा जी, बहुत बार, लेकिन आशा को मिटने नहीं दी. अपने आप को कभी परिश्रम से परे नहीं किया. कभी-कभी ऐसा भी लगता था कि खेल से कुछ नहीं होनेवाला है, लेकिन खेल को अपना लाइफ स्टाइल व पैशन बना कर अपने को मजबूत किया. वह कहती हैं कि करियर के प्रति सोचा ही नहीं. लगनशीलता के साथ खेलती रही. ईरान से एशियन चैंपियनशिप जीत कर आने के बाद मुख्यमंत्री ने बिहार पुलिस में सब इंस्पेक्टर बनाने का आश्वासन दिया.

युवा खासकर महिलाओं के लिए शमा का संदेश

महिला खिलाड़ी अपने को समाज में कमजोर नहीं समझें. महिलाएं बहुत कुछ कर सकती हैं. दुनिया बदल सकती हैं. जिस खेल से संबंधित खिलाड़ी हों, वह प्रतिदिन अभ्यास करें, तभी बेहतर प्रदर्शन कर पायेंगी. शमा कहती हैं कि सरकार से निवेदन है कि राज्य की हर पंचायत में महिला खिलाड़ियों के लिए सुरक्षित खेल का मैदान हो, जहां वो खुल कर खेल सकें.

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