कड़ी मेहनत से छू सकते हैं आसमां

।। विजय बहादुर।। ईमेल करें- vijay@prabhatkhabar.inफेसबुक से जुड़ने के लिए क्लिक करेंटि्वटर पर फॉलो करें प्रमिला भूमिज. राष्ट्रीय तीरंदाज. उम्र महज 23 साल. साधारण किसान परिवार में जन्मी झारखंड की आदिवासी बिटिया के चेहरे पर आज सफलता की मुस्कान है. आत्मविश्वास की ताकत है. पिछले नौ साल के संघर्ष में तपकर कड़ी मेहनत से उन्होंने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 17, 2019 4:51 PM

।। विजय बहादुर।।

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प्रमिला भूमिज. राष्ट्रीय तीरंदाज. उम्र महज 23 साल. साधारण किसान परिवार में जन्मी झारखंड की आदिवासी बिटिया के चेहरे पर आज सफलता की मुस्कान है. आत्मविश्वास की ताकत है. पिछले नौ साल के संघर्ष में तपकर कड़ी मेहनत से उन्होंने तीरंदाजी में कामयाबी हासिल की है. संघर्षगाथा का जिक्र करने पर कहती हैं कि परिस्थितियां विपरीत हों, तो भी धैर्य रखकर कड़ी मेहनत से आसमां को छू सकते हैं. जिद से दुनिया बदली जा सकती है. तीरंदाजी की बदौलत ही आज वह बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) में हैं.

पूर्वी सिंहभूम जिले के केड़ो गांव की रहनेवाली हैं प्रमिला. यह गांव करनडीह प्रखंड की हितकु पंचायत में आता है. पिता महेश्वर भूमिज और माता प्यारी भूमिज के घर 30 नवंबर, 1996 को जन्मी प्रमिला ने कभी सपने में नहीं सोचा था कि वह तीरंदाजी में इस मुकाम पर पहुंचेंगी. दो बहन और एक भाई वाले परिवार में प्रमिला सबसे छोटी हैं. बड़ी बहन हेमोला भूमिज तीरंदाजी करती थीं. प्रमिला उनके साथ जाकर सिर्फ देखा करती थीं. वर्ष 2009 में सिदो-कान्हो हाइस्कूल, केड़ो में जब प्रमिला नौवीं कक्षा में पढ़ रही थीं, उसी वक्त टाटा स्टील द्वारा नारवा माइंस इलाके में समर कैंप आयोजित किया गया था. बड़ी बहन के साथ वहां गयीं और शौकिया तीरंदाजी करने (इंडियन राउंड) लगीं. मैट्रिक की परीक्षा को लेकर बड़ी बहन ने तीरंदाजी करना बंद कर दिया, जबकि प्रमिला रम गयीं.
डबल गोल्ड से खोला खाता
वर्ष 2009 की बात है. सरायकेला-खरसावां तीरंदाजी एकेडमी, दुगनी में ट्रायल हुआ और उनका चयन हो गया. सालभर के प्रशिक्षण के बाद वर्ष 2010 में सब जूनियर नेशनल टीम में उनका चयन हुआ. महाराष्ट्र में आयोजित सब जूनियर राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता में उन्होंने दो स्वर्ण पदक (इंडियन राउंड) जीत कर धमाकेदार शुरुआत की. खेल प्रतिभा को देख टाटा आर्चरी एकेडमी के कोच धर्मेंद्र तिवारी व पूर्णिमा महतो ने प्रमिला के कोच श्रीनिवास बीएस राव से संपर्क कर ट्रायल का ऑफर दिया. वर्ष 2010 में इनका चयन हुआ और चार साल तक तीरंदाजी (रिकर्व राउंड) का प्रशिक्षण लेकर वर्ष 2015 में टाटा आर्चरी एकेडमी से पासआउट हुईं.
अब बीएसएफ के लिए खेल रही हैं
वर्ष 2016 में पंजाब के पटियाला स्थित पंजाबी यूनिवर्सिटी के लिए ट्रायल दीं. यहां उसका चयन हो गया. तीरंदाजी (कंपाउंड राउंड) के साथ-साथ पढ़ाई भी करने लगीं. स्नातक की पढ़ाई पूरी कर वर्ष 2018 में बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल), हरियाणा के लिए आवेदन दिया. आखिरकार मेहनत रंग लायी और खेल कोटे से बीएसएफ में कॉन्स्टेबल पद पर नियुक्ति हो गयी. अभी उनके कोच मनोज कुमार हैं. रांची में आयोजित सातवीं अखिल भारतीय पुलिस तीरंदाजी प्रतियोगिता में वह बीएसएफ की ओर से खेल रही हैं.
दीपिका के साथ खेल चुकी हैं प्रमिला
देश की नामचीन तीरंदाज रांची की दीपिका कुमारी के साथ प्रमिला खेल चुकी हैं. वर्ष 2017 में सीनियर नेशनल आर्चरी चैंपियनशिप, फरीदाबाद और वर्ष 2018 में पुणे में आयोजित सीनियर नेशनल आर्चरी चैंपियनशिप में वह दीपिका के साथ खेली हैं.
स्वर्ण, रजत व कांस्य समेत 50 मेडल
रिकर्व, कंपाउंड एवं इंडियन राउंड तीनों इवेंट खेल चुकीं प्रमिला झारखंड की ओर से नेशनल आर्चरी चैंपियनशिप खेल चुकी हैं. कोई विशेष सहयोग नहीं मिलने के बावजूद गोल्ड समेत कई मेडल जीत चुकी हैं. हरियाणा में सीनियर नेशनल आर्चरी चैंपियनशिप समेत कई राष्ट्रीय तीरंदाजी प्रतियोगिता में प्रमिला बेहतर प्रदर्शन कर स्वर्ण, रजत व कांस्य समेत 50 मेडल जीती हैं. बीएसएफ की ओर से खेल रहीं प्रमिला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तीरंदाजी में बेहतर प्रदर्शन करने की तमन्ना है.
पापा ने जमीन बेच चुकाया बैंक का लोन
झारखंड के केड़ो गांव से पंजाब के पटियाला समेत बीएसएफ तक का सफर प्रमिला के लिए इतना आसान नहीं था. इस चमक के पीछे दर्द भरी कहानी है. पिता, बहन के त्याग और हर कदम पर परिवार के सहयोग की गाथा है. प्रमिला कहती हैं कि जब वह पंजाबी यूनिवर्सिटी, पटियाला में एडमिशन लीं, तो तीर-धनुष के पैसे तक नहीं थे. पापा ने मुझे हौसला दिया और बैंक से दो लाख का लोन लेकर मुझे तीर-धनुष
की पूरी कीट खरीद कर दी. बैंक से लोन लेना तो आसान था, लेकिन साधारण खेती-किसानी और दुकान से इतनी बड़ी राशि भला कैसे चुका सकते थे. आखिरकार पापा ने पुश्तैनी जमीन बेच कर बैंक का लोन चुकाया.
दीदी ने किया त्याग, तो भैया ने दिया गिफ्ट
इतना ही नहीं, बड़ी बहन हेमोला भूमिज ने भी बड़ा त्याग किया है. वह एमबीए करना चाहती थीं, लेकिन मुझ पर बड़ी राशि खर्च होने के कारण उन्होंने एमए कर लिया. मेरे सपने पूरे करने के लिए परिवार हर कदम पर साथ रहा. बड़े भाई हाराधन भूमिज ने सिटी बैंक, नयी दिल्ली में नौकरी लगते ही सबसे पहले उन्हें ढाई लाख रुपये का तीर-धनुष गिफ्ट किया.

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