सफलता और असफलता के बीच का फासला है संयम

– विजय बहादुर-Email- vijay@prabhatkhabar.intwitter से जुड़ने के लिए क्लिक करें हर व्यक्ति की आकांक्षा रहती है कि जीवन में उसे एक मुकाम मिले, लेकिन अपेक्षित पहचान या मंजिल बहुत कम लोगों को ही मिल पाती है. अधिकतर लोगों को ये लगता है कि उनकी प्रतिभा और मेहनत के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 17, 2019 1:33 PM

– विजय बहादुर-
Email- vijay@prabhatkhabar.in
twitter से जुड़ने के लिए क्लिक करें

हर व्यक्ति की आकांक्षा रहती है कि जीवन में उसे एक मुकाम मिले, लेकिन अपेक्षित पहचान या मंजिल बहुत कम लोगों को ही मिल पाती है. अधिकतर लोगों को ये लगता है कि उनकी प्रतिभा और मेहनत के साथ न्याय नहीं हो पा रहा है. इस तरह की नकारात्मक सोच कुंठा का सृजन करती है और इंसान की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है. सफल होने या नहीं होने के बीच संयम बड़ा अंतर पैदा करता है. सफल इंसान असफलता से सीखता है. जब तक उसे मंजिल नहीं मिलती, तब तक वह मंजिल की तरफ बढ़ने के लिए लगातार कड़ी मेहनत करता है. सच कहें, तो संयम सफलता और असफलता के बीच का फासला है.

भारत के सबसे सफल निशानेबाज अभिनव बिंद्रा के दिये गये व्याख्यान को अखबार में पढ़ रहा था. वो अपने जीवन में आगे बढ़ने की कहानी साझा कर रहे थे. अभिनव बिंद्रा कहते हैं कि आप पर उम्मीदों का दबाव बहुत होता है, पर पूरा खेल संयम का है. आपका संयम ही आपको सफलता दिलाता है. सबसे जरूरी है आपने लक्ष्य पर कितना ध्यान दिया है. अगर दिया है तो कामयाब भी होंगे. उन्होंने कहा कि जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं.

कई बार आपको असफलताएं भी हाथ लगती हैं, पर आप इसका सामना कर लें, तो वो आपको और मजबूत बनाती हैं. अभिनव बिंद्रा ने कहा कि बीजिंग ओलंपिक में वो इसलिए गोल्ड मेडल जीत पाये, क्योंकि वो एथेंस ओलंपिक में असफल हो गये थे. एथेंस ओलंपिक में असफलता के बाद उन्होंने ज्यादा फोकस किया. इससे उन्हें मेहनत को मुकाम तक ले जाने की सीख मिली. इसी सीख के कारण बीजिंग में सही निशाना लगा सके. उन्हें समझ में आ गया कि बड़े मौके के लिए बड़ी तैयारी की जरूरत होती है.

अभिनव बिंद्रा जैसे लगभग हरेक व्यक्ति या संस्थान की सफलता का पैटर्न लगभग एक जैसा ही होता है. 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और अमित शाह के नेतृत्व में भाजपा को प्रचंड बहुमत मिला. इस जीत में सबसे ज्यादा चर्चा बंगाल में भाजपा को मिले 18 लोकसभा सीट पर मिली जीत को लेकर है, जबकि एक साल पहले कोई भी राजनीतिक पंडित भाजपा को पांच से अधिक सीट देने को तैयार नहीं था, लेकिन पिछले पांच साल में भाजपा द्वारा जमीनी स्तर पर किये गये काम ने रंग दिखाया.

उसका परिणाम 2019 लोकसभा चुनाव में नजर आया. भाजपा ने जिस तरीके से बंगाल में संगठन का विस्तार किया, वो एक अलग विमर्श है, लेकिन इससे कोई इनकार नहीं कर सकता है कि सफल होने के लिए ज्यादा फोकस और संयमित होकर वर्षों मेहनत करने की जरूरत पड़ती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली 18 सीटों ने भाजपा को ये विश्वास दिला दिया है कि वो फोकस्ड होकर मेहनत जारी रखेंगे, तो 2022 के विधानसभा चुनाव में बंगाल में उनकी सरकार भी बन सकती है. इसलिए लोकसभा चुनाव में जीत के बाद विधानसभा फतह करने को लेकर ज्यादा मेहनत शुरू कर दी गयी है.

सफलता विभिन्न ऑर्बिट में घूमती रहती है. काम करते हुए इंसान एक ऑर्बिट में घूमता रहता है. लगातार काम करते हुए कब एक ऑर्बिट से दूसरे में चला जाता है उसे पता भी नहीं चलता है. फिर एक के बाद दूसरे ऑर्बिट में जाकर सफलता के नये मापदंड खड़ा करता है. एक ऑर्बिट से दूसरे ऑर्बिट में जाने को लेकर जिस संयम की जरूरत होती है, वही सफलता और असफलता के बीच का फासला है.

Next Article

Exit mobile version