टेक्नोलॉजी को एसेट बनाएं, लायबिलिटी नहीं
विजय बहादुर Email- vijay@prabhatkhabar.inट्विटर पर फोलो करेंफेसबुक पर फॉलो करें केस स्टडी -1 मेरे एक परिचित की शादी लगभग एक वर्ष पहले हुई है. हाल में उन्होंने बातचीत के दौरान परेशान होते हुए कहा कि उनके दाम्पत्य जीवन में कलह बढ़ गया है. इस कलह का एक कारण ये है कि उनकी पत्नी को लगता […]
विजय बहादुर
केस स्टडी -1
मेरे एक परिचित की शादी लगभग एक वर्ष पहले हुई है. हाल में उन्होंने बातचीत के दौरान परेशान होते हुए कहा कि उनके दाम्पत्य जीवन में कलह बढ़ गया है. इस कलह का एक कारण ये है कि उनकी पत्नी को लगता है कि उनके साथ स्कूल और कॉलेज में पढ़ने वाली उनकी सहेलियां उससे ज्यादा खुश हैं. मैंने पूछा कि आपकी पत्नी को ऐसा क्यों लगता है कि उनकी सहेलियां उनसे ज्यादा खुश हैं ? क्या आप अपनी पत्नी का ख्याल नहीं रखते हैं ? मेरे परिचित ने कहा कि ऐसा नहीं है कि वह पत्नी का ख्याल नहीं रखते हैं. दरअसल सोशल मीडिया में उनकी पत्नी जब अपनी सहेलियों के घूमने -फिरने या आउटिंग की तस्वीरों को देखती हैं, तो उन्हें ऐसा लगता है कि उन्हें छोड़कर सभी लोग कितने मौज में जीवन जी रहे हैं. धीरे-धीरे इसी तरह के विचारों के कारण उन्हें हीनभावना उत्पन्न हो गयी है. ये कोई एक इंसान की कहानी नहीं है, बल्कि ये घर- घर की कहानी है.
केस स्टडी – 2
सूचना आती रहती है कि सेल्फी लेने के चक्कर में अमूक जगह चलती ट्रेन में टकराने से मौत हो गयी, पुल से नीचे गिर गया, नदी में बह गया.
केस स्टडी – 3
मोबाइल में गेमिंग के दुष्प्रभाव के कारण धनबाद में आठ साल के बच्चे ने रस्सी के सहारे आत्महत्या कर ली. इसी तरह की मिलती जुलती कई घटनाएं होती रहती हैं.
टेक्नोलॉजी ने इंसानी जीवन को बदल कर रख दिया है. मूलतः इंसान आभासी जीवन जीने की कोशिश कर रहा है. आत्ममुग्धता और दिखावे की प्रवृति दिनोंदिन बढ़ती जा रही है. इस कारण मानसिक तनाव काफी बढ़ गया है. ऐसे में मन में ये प्रश्न उठता है कि क्या टेक्नोलॉजी या सोशल मीडिया की दुनिया से कोई अछूता रह सकता है. विचार के स्तर पर ये सही लगता है कि अपने जीवन में टेक्नोलॉजी के हस्तक्षेप को लेकर दायरा तय करने की जरूरत है, लेकिन इसे व्यवहार में क्रियान्वित करना उतना ही कठिन है. यथार्थ यह भी है कि दायरा बनाए बिना कोई दूसरा उपाय भी नहीं है.
दायरा तभी बनेगा जब हम एक युवा या वयस्क के रूप में टेक्नोलॉजी के उपयोग को लेकर आत्मानुशासन बनायेंगे. परिवार में छोटे सदस्यों व बच्चों को भी गाइड करेंगे कि किस तरह से कंट्रोल्ड तरीके से इसका सकारात्मक उपयोग करें. कम उम्र के बच्चों पर निगरानी जरूरी है कि वो नेट में क्या देख रहे हैं ?
स्कूल, कॉलेज और विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं के रिजल्ट प्रकाशित हो चुके हैं. मीडिया के विभिन्न माध्यमों में टॉपर्स बच्चों की सफलता की कहानी और उनकी जुबानी उनके पढ़ने के तरीकों के अनुभव को साझा किया जा रहा है. इन साझा किये जाने वाले अनुभवों में एक चीज कॉमन है. लगभग हर टॉपर कहता है कि उसकी सफलता के कई कारण हैं. इसमें एक कारण सोशल मीडिया से दूरी बना कर रखना और जरूरत के अनुसार इसका उपयोग करना भी है.