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क्षमता का आंकलन कर तय करें लक्ष्य

। विजय बहादुर।। Email- vijay@prabhatkhabar.in ट्विटर पर फोलो करेंफेसबुक पर फॉलो करें पिछले सप्ताह एक इंटरव्यू में सचिन तेंदुलकर ने 1994 के न्यूजीलैंड दौरे की उस घटना को शेयर किया, जब पहली बार वन डे क्रिकेट में उन्होंने ओपनिंग बैटिंग शुरू की थी. उससे पहले सचिन टेस्ट मैच की तरह वन डे क्रिकेट में भी […]

। विजय बहादुर।।

Email- vijay@prabhatkhabar.in

पिछले सप्ताह एक इंटरव्यू में सचिन तेंदुलकर ने 1994 के न्यूजीलैंड दौरे की उस घटना को शेयर किया, जब पहली बार वन डे क्रिकेट में उन्होंने ओपनिंग बैटिंग शुरू की थी. उससे पहले सचिन टेस्ट मैच की तरह वन डे क्रिकेट में भी नंबर चार पर बल्लेबाजी करने आते थे, लेकिन ओपनिंग बैटिंग में आने के बाद सचिन का क्रिकेटिंग करियर बुंलदियों पर पहुंच गया.

सचिन ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि चार नंबर के बल्लेबाज के लिए ओपनिंग में मौका मिलना उतना आसान नहीं था. इसके लिए उन्हें टीम मैनेजमेंट के पास आग्रह करना पड़ा था. उन्होंने ये विश्वास दिलाया था कि मुझे पूर्ण विश्वास है कि मैं ओपनिंग में बढ़िया प्रदर्शन करूंगा, जिससे टीम को फायदा होगा. इसके लिए मुझे सिर्फ एक मौका दीजिए. मैंने उनसे यह भी कहा था कि अगर मैं ओपनिंग में बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाया, तो उसके बाद टीम मैनेजमेंट का जो निर्णय होगा, वो मुझे स्वीकार होगा. सचिन तेंदुलकर ने कहा कि उन्हें अपनी क्षमता का अहसास था. उन्हें भरोसा था कि वह ओपनिंग में शानदार प्रदर्शन कर सकते हैं. इसलिए उन्होंने बेझिझक रिस्क लेना बेहतर समझा.
सचिन की तरह खास हो या फिर कोई आम इंसान. मेरा मानना है कि ज्यादातर लोगों (अपवाद छोड़कर) को अपनी क्षमताओं का पता होता है. हम जब एक स्टूडेंट के रूप में होते हैं और परीक्षा देते हैं, तो हमें पता चल जाता है कि हमारी कितनी तैयारी थी. जब हम बड़े होते हैं और कोई काम करते हैं, तो हमें पता होता (अपवाद) है कि हममें कितनी क्षमता है.
ये अलग विषय है कि इंसान अपनी कमियों को दुनिया के सामने स्वीकार करने में झिझकता है. अगर हमारी तैयारी पूरी होती है, तो हम लक्ष्य जरूर हासिल करते हैं और लक्ष्य से चूकते भी हैं, तो डेविएशन थोड़ा ही होगा. ऐसा बिल्कुल संभव नहीं है कि हमने लक्ष्य कुछ तय किया और जो हमने हासिल किया, उसमें बहुत बड़ा अंतर रह गया. अगर अंतर बहुत रह गया, तो इसका अर्थ है कि हम या तो उस काम को करने के बिल्कुल काबिल नहीं थे या हमने ठीक ढंग से तैयारी ही नहीं की थी.
सबसे अहम बात ये है कि किसी भी काम को करने में सेल्फ मोटिवेशन सबसे महत्वपूर्ण है. इतिहास गवाह है. जिद से विपरीत परिस्थितियों में भी लोगों ने इतिहास रच दिया है. आप अपनी क्षमता का सही मूल्यांकन कर लक्ष्य निर्धारित करें, तो दुनिया की कोई ताकत आपको कामयाब या सफल होने से नहीं रोक सकती है. अक्सर हम अपने साथ धोखा करते हैं. अपनी क्षमता का आंकलन किये बिना हम सामाजिक दबाव या दूसरों से प्रभावित होकर लक्ष्य तय कर लेते हैं, जिसका नतीजा ये होता है कि हमें असफलता हाथ लगती है. जिंदगी में कामयाबी के लिए खुद के साथ ईमानदारी रखना बेहद जरूरी है. आप अपनी क्षमता जानते हैं और सही समय पर उसका उपयोग करते हैं, तो आपकी सफलता तय है.
कोई गुरु या मेंटर सिर्फ आपकी मदद या गाइड कर सकता है. निर्णय इंसान को स्वयं लेना पड़ता है. किसी भी निर्णय के पीछे रिस्क हमेशा रहता है. इसलिए कहा भी जाता है कि हमें ऐसा लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए, जो स्ट्रेचेबल और एचिवेबल दोनों हो. हमें अपनी क्षमता का आंकलन कर थोड़ा रिस्क लेकर लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए. कामयाबी जरूर मिलेगी.
– कामयाबी के लिए सेल्फ मोटिवेशन जरूरी है.
– आप अपनी क्षमता का सही मूल्यांकन कर लक्ष्य निर्धारित करें, तो दुनिया की कोई ताकत आपको कामयाब या सफल होने से नहीं रोक सकती है.
– सामाजिक दबाव या दूसरों से प्रभावित होकर नहीं करें लक्ष्य तय.

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