।। विजय बहादुर ।।
Email- vijay@prabhatkhabar.in
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आज मैं आपसे आपके अजीज अखबार ‘प्रभात खबर’ की कहानी साझा करना चाहता हूं. आइआरएस के नवीनतम आंकड़ों के हिसाब से प्रभात खबर की रीडरशिप लगभग 14.03 लाख है और उसके बरक्स प्रतिद्वंद्वी अखबार हिंदुस्तान, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर अखबार की रीडरशिप क्रमशः 10.15 लाख, 8.12 लाख और 5.75 लाख है.
आप सभी जानते हैं कि प्रभात खबर झारखंड का नंबर एक अखबार है और बिहार, बंगाल में भी इसकी काफी मजबूत उपस्थिति है. प्रभात खबर ने मूलतः झारखंड से निकलकर दूसरे राज्यों में अपना प्रसार बढ़ाया है.
प्रभात खबर की स्थापना 1984 में हुई थी, लेकिन एक समय इस अखबार की बमुश्किल 500 कॉपियां (रोजाना) रह गयी थीं और अखबार लगभग बंद होने के कगार पर पहुंच चुका था, लेकिन 1989 में प्रबंधन में बदलाव हुआ और 1994-95 तक ये अखबार झारखंड में नंबर वन हो चुका था.
इसके बाद प्रभात खबर की यात्रा में वर्ष 2000, 2003 और 2010 महत्वपूर्ण पड़ाव थे. इन वर्षों में झारखंड में संसाधनों से परिपूर्ण तीन बड़े अखबार क्रमश: हिंदुस्तान, दैनिक जागरण और दैनिक भास्कर लॉन्च हुए.
हर बार संसाधन से परिपूर्ण अखबार लॉन्च हुआ. ये कयास लगाया जाता था कि प्रभात खबर की चुनौतियां काफी बढ़ जायेंगी या प्रभात खबर इनके सामने नहीं ठीक पायेगा, लेकिन हर बार नये अखबार की लॉन्चिंग के बाद प्रभात खबर ने तेजी से अपनी स्थिति और मजबूत की.
प्रभात खबर की सफलता की कहानी को जब आप देखेंगे, तो लगेगा कि वो कौन सी वजह है जिसके कारण प्रभात खबर 500 कॉपी प्रतिदिन से सफलता के शीर्ष पर विराजमान हो गया.
मेरे हिसाब से प्रतिस्पर्धा से ही विस्तार का रास्ता निकलता है क्योंकि जब आप प्रतिस्पर्धा करते हैं, तभी अपनी वास्तविक ताकत का आंकलन हो पाता है.
एक मशहूर कहावत है कुएं का मेढ़क. इंसान के सामने जब तुलनात्मक रूप से कमजोर प्रतिद्वंद्वी होता है और वह उसे परास्त कर देता है, तो इंसान अपनी जीत का जश्न तो मना लेता है, लेकिन उसे अपनी वास्तविक ताकत का पता नहीं चल पाता है क्योंकि उसका बेंचमार्क भी काफी सरल था, लेकिन एक बेंचमार्क के बाद दूसरे में अपने लक्ष्य को और ऊपर करने की जरूरत है.
दूसरी बात जब आप प्रतिस्पर्धा करते हैं तो आपको अपनी क्षमताओं पर भी विश्वास होना चाहिए. अपने मजबूत पक्ष के आधार पर ही योजना का निर्माण करना चाहिए, लेकिन ये ध्यान रहे कि आत्मविश्वास और अति आत्मविश्वास में फर्क है. अति आत्मविश्वास आपको भंवर में फंसा सकता है. इसलिए अपने मजबूत पक्ष को कोर मानकर सामने वाले की अच्छी चीजों से सीखने की जरूरत है, लेकिन सामने वाले के सम्मोहन से भी बचने की जरूरत है क्योंकि जब आप प्रतिस्पर्धा करते हैं, तो ये सिर्फ आर्थिक व शारीरिक ही नहीं, बल्कि मानसिक भी होता है और जो अपने नर्व को मजबूत बनाकर रख पाता है, वही ज्यादा बेहतर परफॉर्म कर पाता है.
तीसरी बात आपको बदलते समय के साथ खुद में बदलाव करना होगा. साथ में अगर तकनीक में बदलाव हो रहा है, तो उसके साथ अपग्रेडेशन और उसके हिसाब से अपने को ढालना भी पड़ेगा.
चौथी महत्वपूर्ण बात है ह्यूमन रिसोर्स. आपको देखना होगा कि आपकी कोर टीम आपके साथ बनी रहे, क्योंकि टीम में लगातार बदलाव होने पर काम में कभी मोमेंटम नहीं बन पाता है. मेरा मानना है कि प्रोफेशनलिज्म का मतलब सिर्फ ये नहीं है कि आपने अपने काम को बेहतर ढंग से कर लिया या आपको जो पैसे मिले उसके हिसाब से काम किया, बल्कि कार्यक्षेत्र में अपने सहकर्मियों के साथ व्यक्तिगत रूप से जुड़कर कैसे ब्रांड के प्रति उनको जोड़ा जाये, ये सही मायने में प्रोफेशनलिज्म है.
और एक बात तो कटु सत्य है कि तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का कितना भी विस्तार हो जाये, ह्यूमन रिसोर्स का कोई रिप्लेसमेंट नहीं हो सकता है. सनद रहे कि तकनीक में जो भी विस्तार हो रहा है उसके मूल में इंसानी दिमाग ही है. सबसे महत्वपूर्ण ये कि इंसानी जज्बे के सहारे हर मंजिल पायी जा सकती है. इन सभी गुणों को समाहित कर प्रभात खबर ने झारखंड में नंबर 1 के पोजिशन को और मजबूत कर लिया है.